
उत्तर प्रदेश सरकार की स्कूल पेयरिंग नीति केवल एक प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि हर बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को सुनिश्चित करने की एक दूरदर्शी पहल है. पेयरिंग के जरिए स्कूलों को एक-दूसरे के पूरक बनाकर न सिर्फ आधुनिक बनाया जा रहा है, बल्कि उनको संसाधनों, सुविधाओं और गुणवत्ता से जोड़ा जा रहा है. यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि हर बच्चे को समान अवसर, योग्य शिक्षक और समृद्ध शैक्षणिक माहौल मिले. यह नीति शिक्षा की दिशा में मजबूत कदम साबित हो सकती है.
क्या है स्कूल पेयरिंग नीति?
उत्तर प्रदेश सरकार की स्कूल पेयरिंग नीति का मकसद सरकारी स्कूलों को और अधिक बेहतर बनाना और बच्चों को बेहतर सुविधा प्रदान करना है. इस नीति के तहत दो सरकारी स्कूलों को एक व्यवस्था के तहत जोड़ना है. इनमें से एक स्कूलों को प्री-प्राइमरी और दूसरे को प्राइम, मिडिल क्लासेज तक के लिए नामित किया जा रहा है. यह नीति खास तौर पर उन स्कूलों के लिए बनाई गई है, जहां छात्र संख्या बहुत कम है और स्कूल का संचालन व्यावहारिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया है. ऐसे छोटे स्कूलों को आसपास के बड़े और संसाधन युक्त स्कूलों से जोड़ा जा रहा है.
क्या सुविधाएँ मिलेंगी बच्चों को?
अब उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल सिर्फ पढ़ाई के केंद्र नहीं, बल्कि बच्चों के भविष्य की तैयारी कर रहे हैं. पेयरिंग नीति के तहत स्कूलों को पूरी तरह बदला जा रहा है. जहां बच्चों को स्मार्ट क्लासरूम में डिजिटल तकनीक से पढ़ाया जाएगा. कंप्यूटर लैब की सुविधाएं होगी, जहां बच्चों को आधुनिक ज्ञान मिलेगा. बच्चों को खेलने के लिए मैदान मिलेगा, जिससे सेहत और नेतृत्व का अभ्यास होगा. इतना ही नहीं, बच्चों को डिजिटल तकनीक से पढ़ाया जाएगा.
पेयरिंग नीति के फायदे-
स्कूल पेयरिंग नीति का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अब कोई भी स्कूल खाली नहीं रहेगा. पहले जहां स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हुआ करती थी, लेकिन अब इस नीति के तहत बच्चों की संख्या संतुलित हो जाएगी और बच्चों को समूह में पढ़ने, सीखने और संवाद करने का बेहतर मौका मिलेगा. पेयरिंग वाले स्कूलों में पढ़ाई को रोचक और बच्चों की रुची के अनुसार बनाया जाएगा. इसमें समूह चर्चा, प्रोजेक्ट वर्क, खेलकूद को टीम वर्क, और प्रतिस्पर्धा शामिल होगी, ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास होगा. आपको बता दें कि स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक होंगे, जिससे शिक्षण का स्तर और गुणवत्ता दोनों में सुधार होगा. साथ ही शिक्षकों की संख्या बढ़ेगी. स्कूलों में क्षमता के अनुसार ही छात्र-छात्राओं की संख्या रहेगी.
अभिभावकों की सहमति है जरूरी-
पेयरिंग नीति को लागू करते समय यह विशेष ध्यान रखा गया है कि किसी भी अभिभावक पर कोई भी निर्णय थोपा नहीं जाए. यह योजना पूरी तरह से लचीली और सहमति आधारित है. अभिभावकों को यह अधिकार दिया गया है कि वह स्वयं तय करें कि वह अपने बच्चों को पेयर किए गए स्कूल में भेजना चाहते हैं या नहीं. यदि उन्हें लगता है कि नए स्कूल बेहतर हैं, वातावरण अच्छा हैं और उनके बच्चों को लाभ होगा तो ही वह इस विकल्प को अपना सकते हैं. लेकिन यदि वह वर्तमान स्कूल से संतुष्ट हैं तो उन्हें बदलाव के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा. सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि पेयरिंग कोई जबरदस्ती नहीं, बल्कि बेहतर भविष्य के लिए एक विकल्प है. इसका उद्देश्य बच्चों को अधिक संसाधन, योग्य शिक्षा और समग्र विकास का अवसर देना है. लेकिन अंतिम निर्णय अभिभावकों की सहमति से ही लिया जाएगा. यह पहल दर्शाती है कि सरकार केवल नीतियां नहीं बना रही, बल्कि हर परिवार की सोच और भावनाओं का सम्मान भी कर रही है.
(ये स्टोरी पूजा कदम ने लिखी है. पूजा जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं.)
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