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वीरांगना Panna Dhai की कहानी, जिन्होंने बेटे का बलिदान देकर मेवाड़ के महाराणा Udai Singh की जान बचाई थी

पन्ना धाय ने अपने बेटे का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश की रक्षा की थी. उन्होंने महाराणा उदय सिंह की जगह अपने बेटे को हत्यारे बनवीर के सामने पेश कर दिया. पन्ना धाय को राजवंश के रक्षक के तौर पर याद किया जाता है.

उदयपुर में पन्ना धाय की प्रतिमा (Twitter) उदयपुर में पन्ना धाय की प्रतिमा (Twitter)
हाइलाइट्स
  • वीर माता पन्ना धाय ने बचाई थी उदय सिंह की जान

  • पन्ना धाय ने अपने बेटे का दिया था बलिदान

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राजस्थान के उदयपुर में पन्ना धाय की मूर्ति का अनावरण किया. इसके साथ ही महाराणा उदय सिंह और चंदन की प्रतिमा भी है. इस दौरान राजनाथ सिंह ने कहा कि पन्ना धाय जैसी वीरांगना की प्रतिमा का अनावरण करके खुद को खुश किस्मत समझता हूं. सम्राट और सामाज्य को तो सब याद रखते हैं, लेकिन ये साम्राज्य किनके बलिदान से बने हैं. उनका अभिनंदन जरूरी है.

9.6 फीट की है पन्ना धाय की मूर्ति-
उदयपुर के गोवर्धन विलास के पन्ना धाय पार्क में पन्ना धाय की 9.6 फीट की प्रतिमा लगी है. जबकि उदयपुर बसाने वाले महाराणा उदय सिंह की प्रतिमा 5.6 फीट की है. इसके साथ ही मेवाड़ के लिए बलिदान हुए चंदन की मूर्ति 4.11 इंच की है. इन मूर्तियों को बनाने पर 13 लाख रुपए खर्च हुए हैं. जबकि इसका वजन 113 किलोग्राम है.

कौन थीं पन्ना धाय-
पन्ना धाय का का जन्म 8 मार्च 1490 को चितौड़गढ़ के गांव माताजी की पांडोली में हुआ था. पन्ना धाय का असली नाम पन्ना गुजरी था. वो गुर्जर समुदाय से थीं. जब चितौड़गढ़ के किले में आंतरिक साजिश चल रही थी.  मेवाड़ का राणा उदय सिंह किशोर था. इसी बीच उदय सिंह के चचेरे चाचा बनवीर ने साजिश रची और महाराजा विक्रमादित्य सिंह की हत्या कर दी. उदय सिंह को भी मारने के लिए महल की तरफ चल पड़ा. जब इसकी भनक पन्ना धाय को लगी तो उन्होंने बांस की टोकरी में उदय सिंह को सुलाकर महल से बाहर ले गई. पन्ना धाय न बनवीर को धोखा देने के लिए अपने बेटे को उदय सिंह के पलंग पर सुला दिया. जब बनवीर महल में आया और उसने उदय सिंह के बारे में पूछा तो पन्ना धाय ने उस पलंग की तरफ इशारा किया, जिसपर उनका खुद का बेटा सोया था. बनवीर ने पन्ना धाय के बेटे को उदय सिंह समझकर मार डाला. इसके बाद पन्ना धाय ने उदय सिंह को सुरक्षित जगह पहुंचाया. इस तरह से पन्ना धाय ने मेवाड़ राजवंश को बचाया.

कुंभलगढ़ में मिली शरण-
उदय सिंह को लेकर पन्ना धाय जगह-जगह भटकती रहीं. आखिरकार कुलंभलगढ़ में उनको शरण मिली. उदय सिंह किलेदार का भांजा बनकर रहने लगे. 13 साल की उम्र में मेवाड़ी उमरावों ने उदय सिंह को राजा स्वीकार कर लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया. उदय सिंह साल 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए. उदय सिंह ने बनवीर को हराकर मेवाड़ के महाराणा बने थे. उदय सिंह के बड़े बेटे का नाम महाराणा प्रताप था. 

कौन थे उदय सिंह-
उदय सिंह का जन्म चितौड़गढ़ में साल 1522 में हुआ था. उदय सिंह के पिता महाराणा सांगा के निधन के बाद रतन सिंह द्वितीय शासक बनाया गया. साल 1534 में गुजरात के बहादुर शाह ने चितौड़गढ़ पर हमला कर दिया. इस कारण उदय सिंह को सुरक्षित रखने के लिए बूंदी भेज दिया गया. महाराणा सांगा की महारानी कर्मवती से दो बेटे थे. जिनका नाम विक्रमादित्य और उदय सिंह था. बनवीर ने मेवाड़ पर कब्जा करने की नियत से विक्रमादित्य की हत्या कर दी और उदय सिंह को भी मारने की कोशिश की. लेकिन पन्ना धाय ने उदय सिंह को बचा लिया.

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