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Amrita Pritam Birth Anniversary: अपने जमाने से आगे की सोच रखने वाली वह लेखिका जिसने बदल दिए प्रेम के मायने

Amrita Pritam Birth Anniversary: अमृता प्रीतम एक प्रसिद्ध भारतीय लेखिका और कवयित्री थीं, जिन्होंने हिंदी और पंजाबी में कई किताबें और कविताएं लिखीं. अमृता ने प्रेम के अलावा, 1947 के विभाजन के दर्द, क्रुरता और लोगों की बेबसी पर कई कविताएं और कहानियां लिखीं, जिन्होंने आज उन्हें अमर कर दिया है.

Amrita Pritam (Photo: Wikipedia) Amrita Pritam (Photo: Wikipedia)
हाइलाइट्स
  • 11 साल की उम्र में शुरू किया था लिखना

  • साल 1936 में एक प्रकाशित लेखिका बन गईं थीं अमृता

अक्सर हम बहुत से लोगों के लिए कहते हैं कि वे अपने समय से आगे की सोच रखते थे. उन्होंने जो लिखा, किया या जिया, वह उनके जमाने से बहुत आगे की बातें थीं. और ऐसे ही लोग इतिहास में अपना नाम लिख जाते हैं. जैसे की अमृता प्रीतम लिख गईं. 

अमृता प्रीतम, इस नाम को हम सबने एक न एक बार तो सुना ही होगा. मशहूर भारतीय उपन्यासकार, कवयित्री और निबंधकार थीं अमृता प्रीतम. पंजाबी भाषा में लिखने वाली पहली महिला कवयित्री और लेखिका. जितना खूबसूरत और दिलचस्प उनका लेखन था, उतनी ही दिलचस्प अमृता की जिंदगी रही. 

11 साल की उम्र में शुरू किया था लिखना
अमृता का जन्म अमृत कौर के रूप में 31 अगस्त, 1919 को पंजाब के गुजरांवाला जिले (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. उनका जन्म सिख परिवार में राज बीबी के घर हुआ था, जो स्थानीय स्कूल में शिक्षिका थीं और करतार सिंह हितकारी, जिन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका के संपादक के रूप में काम किया था. उनके पिता एक सम्मानित व्यक्ति थे और अपने खाली समय में एक प्रचारक के रूप में सेवा करते थे. वे एक प्रसिद्ध विद्वान भी थे.

वह एक पारंपरिक सिख परिवार में पैदा हुई थी. लेकिन ग्यारह साल की छोटी उम्र में, उनकी मां का निधन हो गया था. इसके बाद अमृता का भगवान में विश्वास खो गया. मां के निधन के बाद अमृता अपने पिता के साथ लाहौर चली गईं. 

वहां जाकर, उन्हें लेखन में सुकून मिला. उन्होंने 11-12 साल की उम्र में ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था. साल 1936 में एक प्रकाशित लेखिका बन गईं जब वह सिर्फ 17 वर्ष की थीं. 'अमृत लहरें' शीर्षक से कविता के अपने संकलन को जारी करने के बाद, उन्होंने 1936 से 1943 तक कविताओं के कम से कम छह और संग्रह प्रकाशित किए. 

बदल दिए प्रेम के मायने 
अमृता प्रीतम की सगाई लाहौर के एक धनी व्यापारी के बेटे प्रीतम सिंह से हुई थी. साल 1935 में उनकी शादी भी हो गई, अमृता उस समय किशोरावस्था में थी. अपनी शादी के वर्षों बाद लिखी गई अपनी आत्मकथाओं में, अमृता ने स्वीकार किया है कि अपने पति के साथ उनका संबंध अच्छी नहीं रहा. साल 1960 में दोनों अलग भी हो गए. लेकिन उनके नाम को अमृता ने सदा के लिए अपने साथ रखा. 

साल 1944 में, उनकी मुलाकात साहिर लुधियानवी से हुई थी. जो उनके साथी कवि थे और बाद में एक प्रसिद्ध फिल्म गीतकार बन गए. प्रीतम सिंह से अपनी शादी के वाबजूद वह साहिर लुधियानवी से प्रेम कर बैठीं. सबसे दिलचस्प बात यह थी कि अपने इस प्यार को अमृता ने कभी छिपाया नहीं. उन्होंने प्यार को बस प्यार ही रहने दिया कोई नाम देने की जबरदस्ती की कोशिश नहीं की. साहिर और अमृता के बीच कहीं न कहीं धर्म की दीवार भी रही. 

साहिर को अमृता अपनी आखिरी सांस तक नहीं भूल पाईं. लेकिन, उनकी हो भी नहीं पाईं. इस दौरान उनकी मुलाकात इमरोज से हुआ, जो एक प्रमुख कलाकार और लेखक थे. जिस जमाने में लोग प्रेम-विवाह करने से कतराते थे, उस जमाने में अमृता ने इमरोज के साथ लिव-इन में रहने का फैसला किया. अमृता इमरोज के कुछ उत्कृष्ट चित्रों के लिए उनकी प्रेरणा बनीं.

पाकिस्तान से भी मिला प्यार 
बात उनके लेखन की करें तो अपने अच्छे करियर के दौरान, अमृता प्रीतम ने कुल 28 से 30 उपन्यास, गद्य में 18 संकलन, साथ ही पांच लघु कथाएं लिखीं. उनकी कई रचनाएं आज भी कई युवा लेखकों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं. 

उन्हें सिर्फ भारत ही नहीं पाकिस्तान से भी बहुत प्यार मिला. भारत के बंटवारे के समय अमृता दिल्ली आ गई थीं. लेकिन उस समय जो हुआ उसे देखकर उनका दिल दहल गया. और उनकी रूह से एक ही कविता निकली- अज्ज अख्खां वारिस शाह नु. उस समय इस कविता के लिए उनकी आलोचना की गई थी. 

लेकिन सालों बाद, पाकिस्तान के एक लेखक समुह ने उनके लिए सम्मान के तौर पर चादर भेजी. उस समय उन्होंने कहा था, "बड़े दिन बाद मेरे मायके को मेरी याद आई." 

मिले हैं कई सम्मान
अमृता प्रीतम को उनके शानदार करियर में कई पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है. पंजाब रतन पुरस्कार पाने वाली अमृता प्रीतम पहली महिला थीं. वर्ष 1956 में, अमृता 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं. अमृता प्रीतम को 1982 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' मिला, जिसे भारत का सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार माना जाता है. 

वर्ष 1969 में, उन्हें कला और साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत योगदान के लिए भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री मिला. अमृता प्रीतम का 31 अक्टूबर 2005 को नई दिल्ली में निधन हो गया. पर जिंदगी को अपनी शर्तों पर जीने वाली यह लेखिका अपने लेखन के जरिए आज भी अमर है.