 Women Voters (File Photo: PTI)
 Women Voters (File Photo: PTI)  Women Voters (File Photo: PTI)
 Women Voters (File Photo: PTI) 20 सालों से नीतीश कुमार की सबसे बड़ी ताकत रही है महिला वोट बैंक. इस बार भी वही क्रेज बरकरार है. भले ही लोग कह रहे हों कि अब उम्र का असर नीतीश पर दिखने लगा है, वे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर पड़ रहे हैं, लेकिन एक ताकत आज भी उनके साथ अडिग खड़ी है नारी शक्ति. अगर किसी चीज में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, तो वह है महिलाओं का भरोसा और समर्थन नीतीश कुमार के प्रति.
नीतीश कुमार की आलोचना महिलाओं को लेकर इसलिए भी की गई क्योंकि कभी उन्होंने स्त्री पुरुष संबंधों को लेकर सदन के भीतर कुछ अटपटा बोल दिया, कभी चुनावी मंच पर महिलाओं के गले में माला डाल दिया. उनके ऐसी बातों और हरकतों पर विपक्ष और बीजेपी के लोग भी उनकी मानसिक स्थिति से जोड़कर देखते रहे. उनकी खिल्ली उड़ाते रहे लेकिन अब जबकि नीतीश कुमार चुनाव मैदान में हैं और विपक्ष इस उम्मीद में है कि इस बार तो उन्हें पटकनी दे ही देगा. महिलाएं एक बार फिर नीतीश कुमार की ढाल बनकर खड़ी हो गई है.
बिहार चुनाव को कवर करते हुए मुझे दो दशक से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन मैंने नीतीश कुमार को देखने ओर सुनने के लिए महिलाओं में ऐसी दीवानगी पहले किसी चुनाव में नहीं देखी, जो इस चुनाव में दिख रही है. गुरुवार को नीतीश कुमार की बेगूसराय के मटिहानी विधानसभा में अपनी उम्मीदवार राज कुमार सिंह के लिए पहुंचने वाले थे. हालांकि जहां यह चुनावी सभा रखी गई थी वो स्थान है रचियाही, बरौनी टाउनशिप के पीछे. करीब 8 किमी दूर रचियाही गांव में ये सभा थी. वहां कुर्मी बिरादरी के कई गांव आसपास थे और इसे वहां के लोग नीतीश का गढ़ भी बता रहे थे लेकिन जब मैं नीतीश कुमार के उसे भाषण स्थल की ओर अपनी गाड़ी से जा रहा था तो आश्चर्य से भर गया महिलाओं का हुजूम पैदल चुनावी सभा की तरफ चला जा रहा था 10/ 20/ 30/ 40/ 50 - 50 के महिलाओं के झुंड देखकर मैं आश्चर्य में था क्योंकि चुनावी सभाओं में पुरुषों की भीड़ नेताओं को सुनने इस तरीके से अमूमन ऐसे आप देखेंगे लेकिन सिर्फ महिलाओं के जत्थे वह भी स्वतः स्फूर्त जाते दिखाई दे रहे थे.
मेरे लिए यह दृश्य चौंकने के लिए काफी था महिलाओं में नीतीश के क्रेज की बात तो मैं जानता हूं लेकिन जब सभा स्थल पहुंचा तो नज़ारा ही कुछ और था, सिर्फ और सिर्फ चारों तरफ महिलाएं लड़कियां और बूढ़ी बुजुर्ग महिलाएं तक मौजूद थी और वो भी ज्यादातर स्वतः स्फूर्त. महिलाओं ने पूरी तरह पुरुषों को out number कर रखा था यह चुनावी सभा ऐसी थी जहां आगे की तरफ पुरुषों का कब्जा था और पीछे महिलाएं थी लेकिन नीतीश कुमार के हेलीकॉप्टर के उतरते ही महिलाओं का हुजूम आगे बैरिकेड तक पहुंच गया और पुरुष जैसे तैसे पीछे होते चले गए. जो भी महिलाएं नीतीश कुमार को सुनने आई दरअसल वह देखने भी आई थी कि नीतीश कुमार की मानसिक और शारीरिक स्थिति कैसी है और वो और क्या वो अब भी उनके लिए सोचने और करने में सक्षम है या नहीं.
नीतीश कुमार की बॉडी लैंग्वेज मंच पर ठीक ठाक थी, उनकी स्पीच यह बता रही थी की उम्र का असर तो है लेकिन नीतीश कुमार अब भी अपने कंट्रोल में है. महिलाएं खासकर नीतीश कुमार की बॉडी लैंग्वेज को ध्यान से पढ़ रही थी. सभा के बाद जब मैं नीतीश कुमार के स्वास्थ्य के बारे में महिलाओं से पूछा तो चाहे पुरुष हो या महिला सभी का कहना था उम्र हो रही है लेकिन नीतीश जी अब भी मुख्यमंत्री के लिए हमारे सबसे पसंदीदा हैं और हमारे लिए सोचने और करने वाले वही हैं.
सभा के बाद कई महिलाओं की शिकायतें भी सुनने को मिली कि मुझे 10 हजार अभी तक नहीं मिले, सोने का भाव इतना ज्यादा बढ़ गया है कि हम अब सोना नहीं खरीद सकते एक नाक की नथुनिया तक गरीब महिला नहीं खरीद सकती, बच्चों को नौकरी नहीं मिल रही है इतने कम पैसे में कैसे गुजर चलेगा जो सरकार दे रही है. लेकिन इतनी शिकायतों के बाद भी जब मैंने पूछा कि आप नाराज भी हैं शिकायतें भी हैं तो वोट आप किसे देगी तो तमाम शिकायतें एक तरफ और वोट की बात आने पर नीतीश कुमार उनकी पसंद एक तरफ, यह है नीतीश कुमार का महिलाओं में जलवा.
दरअसल उम्र के इस पड़ाव पर जब महिलाओं का हुजूम नीतीश को सुनने उमड़ता है तो यह सिर्फ महज कुछ चुनावी रेवड़िया या घोषणाएं नहीं है जिन्होंने महिलाओं को नीतीश का फैन बना रखा है बल्कि यह नीतीश कुमार के 20 साल के मुख्यमंत्री रहते महिलाओं के लिए किए गए काम और लड़कियों के लिए उनके विजन और सोच की वह पूंजी है जिसने 
उम्र के इस पड़ाव पर जब स्वास्थ्य भी सौ फीसदी साथ नहीं हो तो भी नारी शक्ति उनके लिए संजीवनी बनी हुई है.
नीतीश कुमार ने अपने भाषण महिलाओं और लड़कियों के लिए किए गए अपने कामों को गिनाया, जीविका दीदियों की चर्चा की, अपने भाषण में बताया कि कैसे 2005 में सरकार आने के बाद उन्होंने महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप का विजन सामने रखा कैसे माइक्रोफाइनेंस से उन्हें जोड़ा और कैसे उनकी एक-एक योजनाएं महिलाओं तक सीधे पहुंचती चली गई. कम ही लोगों को मालूम होगा कि मुख्यमंत्री बनने के पहले जब नीतीश कुमार सांसद थे या केन्द्र में मंत्री थे और बिहार में लालू राबड़ी का शासन था तब भी उनकी सांसद निधि का पूरा पैसा लड़कियों के स्कूल की चहारदीवारी और लड़कियों के स्कूल में उनके टॉयलेट बनाने पर ही खर्च होता था.
जब मुख्यमंत्री बने तो सबसे पहले उन्होंने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल योजना की शुरुआत, हर साल 10वीं और 12वीं की जिले के टॉपर लड़कियों के घर नीतीश जाने लगे जो बिल्कुल नया था, नौवीं में पहुंचने वाली हर लड़की को मुफ़्त साइकिल देना, लड़कियों के शिक्षा को मुक्त करना लेकिन वुमन एंपावरमेंट का सबसे बड़ा दांव उन्होंने तब चला जब पंचायत और नगर निकाय के चुनाव में नीतीश कुमार ने महिलाओं को 50 फीसदी दिया आरक्षण दे दिया, पुलिस की भर्ती में 35 फीसदी लड़कियों को आरक्षण यह सब कुछ ऐसे मुद्दे रहे जिसे देखते ही देखते नीतीश को महिलाओं में सबसे लोकप्रिय बना दिया. डीबीटी के जरिए सीधे महिलाओं के खातों में पैसे और आंगनबाड़ी से लेकर जीविका दीदी तक के मानदेय मे बढ़ोतरी कर दी. सामाजिक सुरक्षा पेंशन, जिसमें वृद्धा और विधवा पेंशन भी शामिल है इसे भी दोगुना कर दिया. महिलाओं के खाते में 10 हजार का जादू सर चढ़कर बोल रहा है.
कहते हैं 2020 के विधानसभा चुनाव में जब शाहाबाद भोजपुर और मगध में नीतीश कुमार का लगभग सफाया हो गया जिसमें चिराग पासवान की बड़ी भूमिका थी तब भी गंगा पार के इलाकों मे खासकर मिथिलांचल, चंपारण ,तिहुत और सारण के इलाके में महिलाओं ने NDA की दिलाई थी.