Polling Booth (File Photo)
Polling Booth (File Photo) गोरखपुर के चुनावी घमासान से परे इस ज़िले में एक गांव ऐसा भी है, जो आज़ाद भारत में पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेगा. गोरखपुर का वनटांगिया गांव भले ही हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का नवजात है लेकिन इसका अपना अस्तित्व एक शताब्दी से भी पुराना है.
1918 के आसपास अंग्रेज़ों के शासन के समय इन लोगों को गोरखपुर के जंगलों में बसाया गया था. लेकिन आज़ादी के कई साल बाद, अस्सी और नब्बे के दशक में शासन प्रशासन इन्हें जंगल के बीच से उजाड़ने के जतन करने लगा. गुज़रते सालों के साथ, आसपास के जंगल कटते गए. शहर उभरता गया. लेकिन बचे हुए जंगल के बीच करीब चार हजार लोग अपने वजूद, अपने वोट, अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे. पर क़ानून के अनुसार इन्हें एक ईंट रखने की भी आज़ादी नहीं मिली.
योगी आदित्यनाथ जब यहां से सांसद बने तो उन्होंने यहाँ स्कूल बनवाने की ठानी. लेकिन मामला उल्टा पड़ गया. योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मुकदमा हो गया. लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इस गांव के लोगों को उनके मूल अधिकार दिलाने की ठान ली.
प्रशासन से टकराव के बावजूद सांसद योगी की ज़िद ठनी रही और मुख्यमंत्री योगी के कार्यकाल में इस गांव को आख़िरकार राजस्व गांव का दर्जा मिल ही गया. इस साल पहली बार ये गांव विधानसभा के लिए वोट करेगा.
योगी आदित्यनाथ जब छोटी दीपावली मनाते हैं तो पूरी दुनिया अयोध्या की तस्वीरें देखती है. पर योगी आदित्यनाथ आज भी बड़ी दीपावली गोरखपुर के जंगलों के बीच वनटांगिया गाँव के लोगों के साथ ही मनाते हैं.
खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आने से वनटागंगिया गांव में दिवाली की रातें तो सालों से रौशन होती रही हैं लेकिन इस बार 3 मार्च की सुबह पहली बार वनटांगियां गांव लोकतंत्र के उजाले से रौशन होगा.
(गजेंद्र त्रिपाठी की रिपोर्ट)