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Story of Sixth General Election: आपातकाल के बाद का वो सूर्योदय जब देश में गूंजा “इंदिरा हटाओ देश बचाओ" का नारा, पढ़ें देश के छठे लोकसभा चुनाव की कहानी

India's Sixth General Election: 1977 का चुनाव लोकतंत्र में एक खास जगह रखता है. ये आपातकाल के बाद का समय था. इमजेंसी ने भारतीय लोकतंत्र के ताने-बाने में उथल-पुथल मचा दी थी. ऐसे में ये पहला चुनाव था जब जनता ने कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया था. कांग्रेस ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया था.

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हाइलाइट्स
  • आपातकाल के बाद का सूर्योदय

  • देश में गूंजा “इंदिरा हटाओ देश बचाओ" का नारा

India's Sixth General Election: राजनीति के इतिहास में साल 1977 लोकतंत्र के लचीलेपन और मानवीय भावना की विजय का एक मार्मिक प्रमाण है. यह वह समय था जब राष्ट्र अत्याचार और स्वतंत्रता के चौराहे पर खड़ा था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल (Emergency in India) लगा दिया था. आपातकाल की घोषणा ने भारतीय लोकतंत्र (Indian Democracy) के ताने-बाने में उथल-पुथल मचा दी थी. लोग इसे निरंकुश शासन और क्रूर दमन के युग की शुरुआत बता रहे थे. मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण सहित प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल की कोठरियों में डाल दिया गया था. हालांकि, उनकी आवाजें भले ही खामोश कर दी गईं हों, लेकिन उनकी आत्माएं अटूट रहीं.
 
दो सालों तक देश के नागरिकों की आजादी को कुचल दिया गया था. असहमति की सभी आवाजों को दबा दिया जा रहा था. प्रेस की स्वतंत्रता भी छीन ली गई थी. लेकिन मार्च 1977 में आपातकाल हटा दिया गया. इस दौरान भारत अपनी लोकतांत्रिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा था. नए चुनावों के लिए इंदिरा गांधी के आह्वान ने राजनीतिक जागृति की एक नई सुबह की शुरुआत की. अब राष्ट्र अपने भाग्य को चुनने के अपने संप्रभु अधिकार का प्रयोग करने के लिए तैयार था.

चुनावी राजनीति की उथल-पुथल के बीच, एक गठबंधन उभरा, जो एक सामान्य लक्ष्य से एकजुट था: लोकतंत्र को बहाल करना और जवाबदेह शासन के युग की शुरुआत करना. जनता पार्टी, अलग-अलग राजनीतिक ताकतों का एक गठबंधन था. इसमें मोरारजी देसाई (Morarji Desai) और चरण सिंह जैसे नेता शामिल थे. 

प्रचार अभियान "इंदिरा हटाओ देश बचाओ" (indira Hatao Desh Bachao) के जोरदार नारे से गूंज उठा. जनता पार्टी ने सत्तावादी शासन के खिलाफ जनता को एकजुट कर लिया था. जनता पार्टी लगातार मतदाताओं के साथ तालमेल बिठा रही थी. 

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जैसे-जैसे चुनावी लड़ाई अपने चरम पर पहुंची, मतपेटी के फैसले की गूंज पूरे देश में सुनाई देने लगी. जनता ने कांग्रेस को सिरे से खारिज कर दिया था. जनता पार्टी विजयी हुई और सत्ता के एकाधिकार को खत्म कर दिया. आजादी के बाद ऐसा पहली बार था जब कांग्रेस ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया था. 41.32 प्रतिशत वोट शेयर के साथ, जनता पार्टी ने जीत हासिल की और 405 सीटों में से 295 सीटों पर विजयी हुई. कुल 542 सीटों में से जनता पार्टी और उसकी सहयोगी पार्टियों ने 330 सीटें अपने नाम की. वहीं, कांग्रेस पार्टी ने 492 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 34.52 वोट शेयर के साथ केवल 154 सीटें जीतीं. 
 
आखिरकार, मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए, जो भारत के राजनीतिक विकास में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुआ. मोरारजी देसाई ने 24 मार्च, 1977 को पद की शपथ ली और लाखों लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की यात्रा पर निकल पड़े.  जनता पार्टी की जीत सिर्फ लोकतंत्र की जीत नहीं थी; यह भारतीय लोगों की अदम्य भावना का प्रमाण था, जिन्होंने उत्पीड़न की ताकतों से डरने से इनकार कर दिया था. आजादी के बाद पहली बार, राष्ट्र एक गैर-कांग्रेसी सरकार के उदय का गवाह बना, निरंकुशता पर लोकतंत्र की विजय का प्रतीक थी. 

और इसलिए, सभी बाधाओं के बावजूद, भारत आपातकाल के अंधेरे से मुक्ति की रोशनी में उभरा, और सभी के लिए स्वतंत्रता, न्याय और समानता के सिद्धांतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की.