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Anuradha Paudwal Birthday: इस वाकये से बदली 'भजनों की लता मंगेशकर' की जिंदगी

17 साल की उम्र में, उनकी शादी एक पारिवारिक मित्र अरुण पौडवाल से हुई. वह संगीत निर्देशक एसडी बर्मन के साथ उनके असिस्टेंट के रूप में काम करते थे. अरुण हर वो गाना जो उन्होनें रिकॉर्ड किया होता था अनुराधा से गवाते थे ताकि वो यह समझ सके कि यह एक महिला की आवाज में कैसा होगा.

Anuradha Paudwal Anuradha Paudwal
हाइलाइट्स
  • कभी नहीं लिया शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण

  •  बचपन में कर्कश थी आवाज़

  • 19 वर्ष की उम्र में प्लेबैक सिंगिंग में किया था डेब्यू 

  • लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने किया हमेशा सपोर्ट

  • कई मशहूर सिंगर्स के साथ किया काम 

  • 1991 में हुई पति की मृत्यु 

  • 1985 में मिला नेशनल अवार्ड

  • बेटे की मौत के बाद शुरू की चैरिटी 

जब भी मन बेचैन होता है, भजन हमारे मन को शांति पहुंचाते हैं. इसे सुनते हुए ऐसा लगता है मानो आत्मा का परमात्मा से मिलन हो रहा हो. और अगर वह भजन अनुराधा पौडवाल का हो तो फिर क्या ही कहने ! भजनों में अपनी आवाज़ से मिठास घोलने वाली अनुराधा का आज जन्मदिन है. अपनी आवाज़ से देश के घर-घर में छाने वाली अनुराधा ने भजन इंडस्ट्री में अपना एक अलग मुकाम बनाया है. हालांकि उनके पिता कभी नहीं चाहते थे कि वो संगीत को अपना करियर बनाए.

कभी नहीं लिया शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण

कर्नाटक के कारवार में एक रूढ़िवादी हिंदू परिवार में जन्मी, अलका नाडकर्णी यानी अनुराधा संगीत के प्रति जुनूनी थीं, लेकिन उनके पिता का मानना ​​था कि सम्मानित परिवारों की लड़कियों को शो बिजनेस से नहीं जुड़ना चाहिए. लता मंगेशकर की फैन अनुराधा ने कभी शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण नहीं लिया था. उन्होनें बताया था कि उन्होनें लता के गीतों को सुनकर और उनके साथ अभ्यास करके गाना सीखा. बात तब की है जब वह चौथी कक्षा में थी. उन्होनें रेडियो पर लता का एक गीत सुना, जिसके बाद उनकी संगीत के प्रति रूचि जागी. वह एक दोस्त के साथ के साथ लता मंगेशकर की लाइव रिकॉर्डिंग में गई थीं, जिसने उन्हें गाने के लिए प्रेरित किया.

 बचपन में कर्कश थी आवाज़

अनुराधा की मधुर आवाज़ के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. शुरुआत में उनकी आवाज़ कर्कश थी और उनके सहपाठी अक्सर उन्हें "मोर" कह कर चिढ़ाया करते थे. उनकी जिंदगी तब बदली जब निमोनिया के कारण वह 40 दिनों से अधिक समय तक बिस्तर पर पड़ी रहीं. अनुराधा ने लता मंगेशकर की भगवद गीता की रिकॉर्डिंग को लगातार सुना और जब वह बीमारी से उबर गईं, तो उनकी आवाज बदल गई थी. उन्होनें इस चमत्कार को गंभीरता से  लिया और अपने गुरु लता मंगेशकर की मदद से अपनी आवाज को गीतों के अनुसार ढालने की कोशिश की.

19 वर्ष की उम्र में प्लेबैक सिंगिंग में किया था डेब्यू 

17 साल की उम्र में, उनकी शादी एक पारिवारिक मित्र अरुण पौडवाल से हुई. वह संगीत निर्देशक एसडी बर्मन के साथ उनके असिस्टेंट के रूप में काम करते थे. अरुण हर वो गाना जो उन्होनें रिकॉर्ड किया होता था अनुराधा से गवाते थे ताकि वो यह समझ सके कि यह एक महिला की आवाज में कैसा होगा. एक बार एसडी बर्मन ने ऐसी ही एक रिकॉर्डिंग सुनी और उन्हें अनुराधा को स्टूडियो में लाने के लिए कहा. उन्होंने अनुराधा से शिव श्लोक रिकॉर्ड करवाया, जिसे अभिमान में जया बच्चन पर फिल्माया गया था. इस प्रकार 19 वर्ष की उम्र में अनुराधा ने 1973 में बॉलीवुड संगीत जगत में अपना सफर शुरू किया.

लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने किया हमेशा सपोर्ट 

1976 में, उन्होंने हिंदी फिल्मों में प्लेबैक सिंगर के रूप में अपनी शुरुआत राजेश रोशन के गीत "एक बटा दो, दो बटा चार" के साथ की. यह गाना सुभाष घई की फिल्म कालीचरण का था, जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा और रीना रॉय मुख्य किरदार में थे. उन्होंने अपना पहली सोलो गाना, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के लिए गाया. ‘हम तो गरीब हैं’ बोल वाले इस  को फिल्म  हेमा मालिनी और शशि कपूर स्टारर ‘आपबीती’ में फिल्माया गया. अनुराधा की आवाज के प्रति उनके लगाव के कारण, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने न केवल अनुराधा के सिंगिंग करियर को एक नींव दी, बल्कि उनकी गायिकी को और निखारा और उनके संघर्ष के वर्षों में लगातार उनके साथ खड़े रहे.

कई मशहूर सिंगर्स के साथ किया काम 

इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने कई फिल्मों के गानों के लिए अपनी आवाज़ दी. उन्होंने उस वक़्त के लेजेंड्री सिंगर किशोर कुमार के साथ ‘ओ दिल जानी’, ‘बिन साथी के जीवन क्या’, ‘गुमसुम सी खोई खोई’, ‘ओ मेरी जान’ जैसे गाने गाए. तो वहीं मोहम्मद रफ़ी के साथ ‘माथे की बिंदिया बोले’ और ‘ये गीत कौन मेरे मन मधुबन’ के लिए अपनी आवाज़ दी. बाद में उन्होनें बॉलीवुड को ‘धीरे-धीरे से मेरी जिंदगी में आना’, ‘छोटी-छोटी रातें’, ‘मैनु इश्क़ दा लगया रोग’, ‘बहुत प्यार करते हैं’ जैसे कई सदाबहार गाने दिए.

1991 में हुई पति की मृत्यु 

उनकी जिंदगी का दुखद मोड़ 1991 में आया जब उनके पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. उस वक़्त वह पूरी तरह टूट गईं थी. उन्हें अपने बच्चों आदित्य और कविता के लिए माता और पिता दोनों की जिम्मेदारियां अकेले ही निभानी थीं. इसी वक़्त उनकी मुलाकात गुलशन कुमार से हुई. टूटी हुई अनुराधा को गुलशन का सहारा मिला और वो उनके करीब आती गईं. उन्होनें गुलशन कुमार की टी सीरीज के लिए 10 साल से भी अधिक समय के लिए काम किया.

इस फैसले से करियर हुआ प्रभावित 

एक बार उन्होंने मीडिया के सामने कह दिया था कि अब वो सिर्फ गुलशन कुमार की कंपनी टी सीरीज के लिए ही गाना जाएंगी. उस वक़्त वो अपने करियर के पीक पर थी. इसके बाद उन्होनें टी सीरीज के सिवाय किसी और के लिए नहीं गया. इस बात का फायदा उस समय स्ट्रगल कर रहीं अन्य सिंगर्स को मिला और फ़िल्मी गानों में अनुराधा की लोकप्रियता धीरे-धीरे घटने लगी. फिर अचानक गुलशन कुमार की मौत हो गई. इसके बाद अनुराधा ने फ़िल्मी गानों से हमेशा के लिए दूरी बना ली और भजन गाने लगीं. 

1985 में मिला नेशनल अवार्ड

अनुराधा ने कई भाषाओं में गाने गाए और कई अवार्ड भी जीते. उन्हें आशिकी, दिल है कि मानता नहीं और बेटा के लिए तीन फिल्मफेयर अवार्ड मिले. म्यूजिक कंपोजर ओ पी नैय्यर ने तो एक बार ये तक कह दिया था कि अनुराधा ने लता को रिप्लेस कर दिया है. अनुराधा को उनके गाने ‘मेरा मन बाजा मृदंग’ के लिए 1985 में नेशनल अवार्ड से भी नवाज़ा गया था. उन्हें संगीत में उनके योगदान के लिए साल 2017 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया है.

बेटे की मौत के बाद शुरू की चैरिटी 

पिछला साल अनुराधा के लिए एक तूफ़ान से काम न रहा. पिछले साल सितम्बर में अनुराधा के बेटे आदित्य पौडवाल की 35 वर्ष की उम्र में मौत हो गई. इस घटना ने अनुराधा को बिलकुल अकेला कर दिया. अब वो आदित्य के नाम पर चैरिटी चलाती हैं. कोविड महामारी के दौरान भी उन्होनें बढ़-चढ़ कर लोगों की मदद की थी. उन्होंने अस्पतालों में ऑक्सीजन कन्संट्रेटर और वेंटिलेटर उपलब्ध कराया था. 

अगर हम अनुराधा के सफर पर नज़र डालें तो जिंदगी ने हर मुकाम पर उन्हें कमजोर करने की कोशिश की लेकिन वो डट कर खड़ी रही. चाहे प्लेबैक सिंगिंग हो या भजन, अनुराधा दोनों में ही सबसे आगे रहीं. ऐसी प्रेरणा देने वाली सुर साम्राज्ञी अनुराधा को जन्मदिन की शुभकामनाएं!