

70 के दशक की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘जय संतोषी मां’ की लीड एक्ट्रेस अनीता गुहा के बारे में कौन नहीं जानता. इस दौर में जितनी पॉपुलर ये फिल्म हुई उतनी ही पॉपुलर थीं अनीता गुहा. खूबसूरती ऐसी की हर कोई दीवाना हो जाए और शख्सियत ऐसी की हर कोई देवी समझकर पूजने लगे. फिल्म में संतोषी माता का किरदार निभाकर अनीता इतनी पॉपुलर हो गई थीं कि लोग उनके पोस्टर लगाकर पूजा किया करते थे. बॉलीवुड फ्लैशबैक में आज कहानी बताएंगे अनीता गुहा की.
बचपन से मॉडलिंग करना चाहती थीं अनीता
1932 में जन्मी अनीता का परिवार बंटवारे के बाद कोलकाता आकर बस गया. यहीं से अनीता ने स्कूल की पढ़ाई की. बचपन से ही उन्हें मॉडलिंग में रुचि थी इसलिए उन्होंने पढ़ाई के बाद करियर के रूप में भी इसे ही चुना. अनीता मिस कोलकाता चुनी गईं. इसके बाद महज 15 साल की उम्र में वो मुंबई आ गईं.
ब्यूटी कॉन्टेस्ट के लिए मुंबई आई थीं
अनीता मुंबई भी किसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट में हिस्सा लेने आई थीं, लेकिन किस्मत ने उन्हें एक्टिंग की दुनिया में पहुंचा दिया. अपने करियर की शुरुआत उन्होंने बांग्ला फिल्म बांशेर केला (1953) से किया और फिर दो साल बाद टांगेवाली (1955) के जरिए हिंदी सिनेमा में कदम रखा. करीब 5 साल तक शारदा (1957) और देख कबीरा रोया जैसी फिल्मों में काम करने बाद बाद अनीता ने संपूर्ण रामायण (1961) फिल्म की.
जब घर-घर में सीता बनकर मशहूर हुई
संपूर्ण रामायण (1961) में अनीता ने माता सीता का किरदार निभाया. इस फिल्म में उनके शांत, सौम्य और श्रद्धामय अभिनय ने उन्हें घर-घर में ‘सीता मां’ बना दिया. यह वही दौर था जब दर्शक पौराणिक फिल्मों को न केवल मनोरंजन के लिए बल्कि श्रद्धा भाव से भी देखते थे.
देवी समझकर पूजने लगे लोग
1969 में उन्होंने आराधना में सुपरस्टार राजेश खन्ना की गोद ली हुई मां का किरदार निभाया, जो उनके करियर में मील का पत्थर साबित हुआ. वो इन सबके बाद वो हुआ जिसकी तमन्ना हर एक्टर को होती है. 1975 में जब अनीता ने जय संतोषी मां में देवी संतोषी का किरदार निभाया तो हर कोई उनकी अदाकारी का कायल हो गया. बेहद कम बजट और बिना किसी बड़े सितारे के बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया. दर्शकों की श्रद्धा इतनी ज्यादा थी कि लोग थिएटर में जूते-चप्पल उतारकर फिल्म देखने आते थे. कई जगहों पर तो सिनेमाघरों के बाहर अगरबत्तियां और प्रसाद चढ़ने लगे थे.
शूटिंग के दौरान रखने लगीं व्रत
अनीता गुहा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शूटिंग के दौरान उनका शेड्यूल इतना बिजी रहता था कि उन्हें खाने का भी समय तक नहीं मिलता. ऐसे में उन्होंने व्रत रखना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे इस किरदार को एक आध्यात्मिक अनुभव की तरह जीने लगीं, जबकि वे संतोषी माता की भक्त नहीं थीं.
करियर के ढलान पर रहने लगीं डिप्रेशन में
कवि कालिदास (1959), कृष्णा कृष्णा (1986) जैसी कई और पौराणिक फिल्मों में अनीता गुहा ने काम किया और कुल मिलाकर 60 से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा बिखेरा. अनीता गुहा ने एक्टर माणिक दत्त से शादी की. हालांकि शादी के कुछ साल बाद ही उनके पति का निधन हो गया. मां न बन पाने और चेहरे पर सफेद दाग होने की वजह से अनीता डिप्रेशन में रहने लगीं. अनीता गुहा की निजी जिंदगी एक गंभीर और तकलीफदेह दौर से भी गुजरी. अनीता को ल्यूकोडर्मा (सफेद दाग) नाम की बीमारी हो गई. अनीता की यह बीमारी उनके चेहरे तक पहुंच गई. वह चेहरा जिसने कभी देवी सीता और संतोषी मां जैसे किरदारों को जीवंत किया था, दाग-धब्बों से ढक गया था. अपने चेहरे के इस बदलाव को अनीता स्वीकार नहीं कर पाईं और घर में ही सिमट कर रह गईं.
चेहरा छुपाने के लिए करती थीं हैवी मेकअप
वो न तो किसी समारोह में जातीं, न किसी दोस्त-रिश्तेदार से ज्यादा मिलतीं. चेहरे के दाग-धब्बों को छुपाने के लिए वे हर बार हैवी मेकअप किया करती थीं. यहां तक कि उन्होंने अपने परिवारवालों और नज़दीकी रिश्तेदारों से कह दिया था कि उनके अंतिम संस्कार से पहले उनका अच्छे से मेकअप किया जाए ताकि कोई उनके चेहरे पर पड़े दाग-धब्बों को न देख सके. 20 जून 2007 को उन्होंने लंबी बीमारी के बाद दुनिया को अलविदा कह दिया. अपने जीवन के आखिरी दिनों में भी जब वे सड़कों पर निकलतीं, तो लोग उन्हें "संतोषी मां" कहकर पुकारते थे.
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “लोग मेरा असली नाम भूल चुके हैं… आज भी जब मैं बाहर जाती हूं, तो लोग मुझे संतोषी मां कहकर बुलाते हैं.”