
आमिर खान की हालिया रिलीज 'लाल सिंह चड्ढा' काफी वक्त से सुखियों में है और अब जब फिल्म सिनेमा घरों में सबके सामने है. इस फ़िल्म को काफी खट्टी-मीठी प्रतिक्रिया मिल रही है. आखिर ऐसा क्या है इस फिल्म में जो चर्चा का विषय है? आखिर क्यों इस फ़िल्म को लेकर किसी में गुस्सा और उत्सुकता है. क्यों यह फिल्म किसी को रुला रही है या फिर हँसा रही है और कुछ को तो बोर भी कर रही है? तो चलिए जानते है इस फिल्म की कुछ छोटी -छोटी बातें जो इस फिल्म को अलग बनाती है.
फॉरेस्ट गम्प का भारतीय नजरिया
जैसा ही सबको पता है ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित टॉम हैंक्स की फिल्म फॉरेस्ट गम्प लाल सिंह चड्ढा की कहानी है. तो ऐसा नहीं है वह फिल्म इस फिल्म की प्रेरणा है. जैसे शेक्सपियर की कहानियां विशाल भारद्वाज की फिल्मों की प्रेरणा होती है. बाक़ी आजाद भारत के 70 के दशक से लेकर आज के जमाने की प्रमुख सामाजिक घटनाओं का एक ब्योरा है. जो फ़िल्म के सूत्रधार लाल सिंह अपनी ज़िंदगी के साथ फिल्म में बताता है.
भारत के 5 दशकों का आइना है लाल सिंह चड्ढा
आजादी के बाद भारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण साल था 1975 जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इमर्जेन्सी लगायी थी. फ़िल्म की कहानी वहीं से शुरू होती है फिर 80 के दशक के दंगे और ऑपरेशन ब्लू स्टार से लेकर 90 के दशक के बाबरी मस्जिद, मुंबई के बम धमाके और कारगिल युद्ध से लेकर मुंबई 26/11 के धमाके. फ़िल्म की कहानी का पड़ाव है. सिलसिलेवार अन्दाज़ में लाल सिंह चड्ढा की ज़िंदगी का घटनाक्रम इन घटनाओं के साथ आगे बढ़ता है और आज के भारत पर जाकर थमता है.
आमिर खान क्या कहना चाहते है फिल्म में?
बतौर अभिनेता और निर्माता आमिर खान अपनी फिल्मों के साथ पूरी तरह जुड़ जाते है और इस बार भी उनका जुड़ाव इस फ़िल्म में कुछ वैसा ही है. इस बात उनका किरदार लाल सिंह जो भले की समाज नज़र में अलग है क्यूंकि वो दिव्यांग है. इसका मस्तिष्क बाक़ी की तरह नहीं सोचता लेकिन जब सोचता है तो कर दिखाता है. टॉम हैंक्स का किरदार फ़ॉरेस्ट भी देश के ऐतिहासिक घटनाओं के साथ अपनी माँ की सीख और अपने बचपन के प्यार और दोस्त का साथ नहीं छोड़ता. तो हॉलीवुड फिल्म की मूल कहानी के साथ आमिर निर्देशक अद्वैत और लेखक अतुल कुलकर्णी ने भारत की सोच को जोड़ा है बिना कुछ सही-गलत बताते हुए.
एक प्रेम कहानी है लाल सिंह चड्ढा
चूंकि लाल सिंह चड्ढा एल डॉक्यूमेंट्री नहीं बल्कि एक बॉलीवुड की फिल्म है. इसलिए फिल्म पूरे ढाई घंटे दरअसल लाल और रूपा की प्रेम कहानी है. जो बचपन से लेकर उनके बुढ़ापे तक जाती है. 3 इडियट्स के बाद आमिर और करीना की कहानी दिल को छूती तो है लेकिन फ़िल्म का अंत थोड़ा बोझिल हो जाता है. इसी प्रेम कहानी को थोड़ा छोटा कर दिया जाता तो फ़िल्म दर्शकों के दिल पर ज्यादा छाप छोड़ती
मोना सिंह है फ़िल्म की असली हिरोइन
लाल सिंह चड्ढा देखकर एक बात समझ आती है की आमिर खान के किरदार के बाद जो दरअसल फिल्म की हीरोइन है वो है मोना सिंह. आमिर खान की माँ के किरदार और लाल सिंह के सफ़र में उसकी माँ का एक अहम हाथ था. मोना ने अपने इस किरदार से छाप छोड़ी है. एक ऐसी माँ जो अपने बच्चे को देश के कड़वे हालातों को मलेरिया का प्रकोप बताकर ज़िंदगी जीने का एक नया नजरिया सिखाती है. फिल्म में मोना शुरू से लेकर अंत तक है और आमिर से उमर में छोटी होने के बाद भी मोना उर्फ़ टीवी की जस्सी अपने किरदार से सबपे भारी पड़ी है.
नागा चैतन्य का फीका चड्डी बनियान हास्य
तेलुगु फ़िल्मी के मशहूर हीरो नागा चैतन्य लाल सिंह चड्ढा से हिंदी फिल्मों में नज़र आएँगे. उनका किरदार बाला एक दक्षिण भारतीय किरदार है जो हँसाने की कोशिश करता है. फिल्म में नागा का रोल छोटा है लेकिन अहम है . वो एक ऐसे फौजी बने है जो अपने परिवार के चड्डी बनियान के बिजनेस को आगे लेकर जाना चाहते है. लेकिन कारगिल के युद्ध के दौरान शहीद होने के बाद उसका फ़ौज का दोस्त लाल सिंह चड्ढा इस सपने को पूरा करता है. लेकिन उनका ये चड्डी बनियान हास्य रस दिल को नहीं छूता .
आमिर खान का अभिनय
फिल्म शुरू से लेकर आखिर तक आमिर खान की फिल्म है. पहली बार एक पंजाबी सिख किरदार निभाया है. जो सिलसिला आमिर ने फिल्म लगान से शुरू किया था वही इस फिल्म में उन्होंने पूरी दिल से किया है. आमिर अपने पिछले किरदार जैसे 3 इडियट्स के राँचो, दंगल के महावीर, पीके के पीके, तारे ज़मीन पर के राम के जैसी ही कोशिश की है. उनकी पिछली फ़िल्म थग्ज़ ओफ़ हिंदुस्तान एक बेहद निराशाजनक फ़िल्म थी लेकिन लाल सिंह चड्ढा में वो अपने वही कुछ हट के वाले अन्दाज़ में हैं.