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The Showman of Indian Cinema: जब मॉस्को में राज कपूर की टैक्सी को फैन्स ने उठा लिया था अपने कंधों पर

Filmy Friday: राज कपूर को भारतीय सिनेमा का शोमैन कहा जाता था और उनके चाहने वाले सिर्फ भारत में नहीं थे बल्कि रूस, तुर्की, चीन जैसे देशों में भी उनकी फैन-फॉलोइंग थी.

Raj Kapoor: The Showman of Indian Cinema Raj Kapoor: The Showman of Indian Cinema
हाइलाइट्स
  • 21 साल की उम्र में बने डायरेक्टर

  • विदेशों में भी पॉपुलर थे राज कपूर

भारतीय सिनेमा का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. इतने लंबे सफर में भारतीय सिनेमा ने देश को ऐसे सितारे दिए हैं जिनकी चमक सिर्फ भारत में नहीं ब्लकि पूरी दुनिया में रही है. और आज #FilmyFriday में हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे ही भारतीय सितारे के बारे में जिसका स्टारडम ऐसा था कि विदेशों में लोग आज भी उनकी फिल्मों और गानों की चर्चा करते हैं. 

हम बात कर रहे हैं भारतीय सिनेमा के शोमैन- राज कपूर की. राज कपूर ने भारतीय सिनेमा को एक अलग दिशा दी. उनका योगदान सिर्फ भारत में सिनेमा को पॉपुलर करने में नहीं है बल्कि उन्होंने भारत की फिल्मों को विदेशों तक पहुंचाया. एक समय था जब उनकी फिल्मों भारत से भी ज्यादा दूसरे देशों में प्रसिद्ध थीं. 

सबसे कम उम्र के निर्देशक 
कपूर का जन्म 14 दिसंबर, 1924 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में एक पठान-हिंदू परिवार में पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी देवी कपूर के घर हुआ था. राज कपूर ने एक स्टूडियो में असिस्टेंट प्रोड्यूसर के रूप में काम करने के लिए बहुत पहले ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी. साल 1935 में, कपूर ने 10 साल की उम्र में देबकी बोस की इंकलाब में अपनी शुरुआत की. कुछ साल बाद, वह अपने पिता की कंपनी, पृथ्वी थिएटर में शामिल हो गए, जहां उन्होंने एक अभिनेता के रूप में और बैकस्टेज मैनेजर के रूप में भी काम किया. 

मधुबाला के साथ 1947 की नील कमल में मुख्य भूमिका निभाने से पहले कपूर ने कई फिल्मों में अभिनय किया. साल 1948 में अपना खुद का प्रोडक्शन आर.के. स्टूडियो स्थापित करने के बाद वह अपने समय के सबसे कम उम्र के निर्देशक बन गए. 21 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी पहली बड़ी फिल्म आग का निर्देशन और अभिनय किया था. इसकी सफलता ने उन्हें इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया. इसके बाद उन्होंने उस दशक की सबसे सफल फिल्मों में से एक बरसात बनाई.

विदेशों में भी पॉपुलर थे राज कपूर
उनके अपने निर्देशन आवारा (1951) के साथ उनका करियर पीक पर था. आवार की सफलता ने भारतीय सिनेमा को एक नय मुकाम दिया. अपने आकर्षक संगीत के अलावा कपूर की एक्टिंग ने फिल्म को न केवल भारत में बल्कि पूरे अरब जगत में और तत्कालीन सोवियत संघ में भी पॉपुलर कर दिया. फिल्म का गाना, 'आवारा हूं' आज तक चीन, रूस, तुर्की और अन्य एशियाई देशों में गाया जाता है. कपूर की फिल्मों के साथ, यूएसएसआर में हिंदी सिनेमा की लोकप्रियता चरम पर थी. 

निमाई घोष की चिन्नमुल वहां रिलीज होने वाली पहली फिल्म थी, लेकिन वहां दर्शकों के दिल को छूए राज कपूर ने. रूस में कपूर दर्शकों के लिए आशावाद का प्रतीक बन गए थे क्योंकि उनकी फिल्में समाजवाद और सामान्य मुद्दों के ओत-प्रोत थीं जिनसे रूस हर दिन संघर्ष कर रहा था. आज भी लोग रूस में राज कपूर को याद करते हैं. 

जब फैन्स ने उठा ली राज कपूर की टैक्सी 
राज कपूर का स्टारडम कितना था इस बात का अंदाजा सिर्फ एक छोटी सी घटना से लगाया जा सकता है जिसका जिक्र खुद ऋषि कपूर ने किया था. साल 2016 में, पहले ब्रिक्स फिल्म फेस्टिवल के उद्घाटन समारोह में स्वर्गीय ऋषि कपूर ने अपने पिता राज कपूर के कुछ किस्से बताए थे. उन्होंने बताया था कि राज कपूर मेरा नाम जोकर बना रहे थे और यह शायद 1960 के दशक की बात थी जब राज फिल्म का हिस्सा बनने के लिए एक रूसी सर्कस के साथ बातचीत कर रहे थे. 

उस समय राज कपूर लंदन में थे लेकिन उन्हें मास्को, रूस जाना था - जो उस समय सोवियत संघ था. लेकिन उनके पास मॉस्को आने का वीजा नहीं था. फिर भी उन्हें मॉस्को आने दिया गया. उन्होंने किसी को बताया नहीं था और अचानक मॉस्को में लैंड किया तो उनके स्वागत में वहां कोई नहीं था. इसलिए वह बाहर निकलकर टैक्सी का इंतजार करने लगे. तब तक आसपास के लोग उन्हें पहचानने लगे थे कि राज कपूर मॉस्को में हैं. इतने में उनकी टैक्सी आ गई और वह उसमें बैठ गए. 

हालांकि, कुछ देर में राज को महसूस हुआ कि उनकी टैक्सी आगे नहीं बढ़ रही है बल्कि ऊपर जा रही है. उन्होंने खिड़की से देखा तो पाया कि उनके रूसी फैन्स ने कार को अपने कंधों पर ले रखा है. हालांकि, यह घटना उनके स्टारडम की सिर्फ एक झलक थी. राज कपूर इतने ज्यादा पॉपुलर थे कि 70 के दशक में  एक बार खुद चीन ने उन्हें अपना यहां आमंत्रित किया था और यह तब था जब भारत-चीन के संबंध ठीक नहीं थे.