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Konark Sun Temple: ASI का बड़ा कदम... 120 साल बाद कोणार्क सूर्य मंदिर के गर्भगृह से रेत हटाने का काम शुरू

कोणार्क के सूर्य मंदिर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा रेत हटाने और मंदिर को फिर से भक्तों के लिए खोलने का काम शुरू कर दिया गया है. लगभग 120 सालों में यह पहली बार हुआ है जब मंदिर में किसी ने प्रवेश किया है, जिसको ब्रिटिश सरकार द्वारा 1903 में बंद करवा दिया गया था.

हाइलाइट्स
  • मंदिर से रेत हटाने का काम शुरू

  • होगी वैज्ञानिक जांच

  • ब्रिटिश के समय में बंद हुआ था मंदिर

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने मंगलवार को 13वीं सदी के प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर के अंदर मौजूद रेत को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी. यह पहला मौका है जब करीब 120 साल बाद मंदिर के सील किए गए मंदिर परिसर में किसी के द्वारा प्रवेश किया गया है. यह कदम मंदिर के संरक्षण के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

रेत हटाने का काम शुरू
ASI के अधिकारियों के अनुसार, विशेषज्ञों की टीम ने उस रेत की परत तक पहुंच बना ली है, जिसे 1903 में ब्रिटिश इंजीनियरों ने मंदिर के ढहने के डर से गर्भगृह में भर दिया था. सोमवार शाम तक विशेषज्ञों ने मंदिर के पश्चिमी हिस्से से लगभग 9 मीटर लंबी और 16 सेंटीमीटर चौड़ी कैनल बना ली है. इस ड्रिलिंग का केंद्र जमीन से करीब 80 फीट ऊंचाई पर मौजूद है, जबकि पूरा सूर्य मंदिर लगभग 127 फीट ऊंचा है.

होगी वैज्ञानिक जांच
ड्रिलिंग के दौरान निकाले गए शुरुआती सैंपल में रेत और पत्थर के छोटे टुकड़े शामिल हैं. इन्हें अब वैज्ञानिक जांच के लिए भेजा जा रहा है. शुरुआती परीक्षण में रेत की परत में नमी पाए जाने का संकेत मिला है, जो आगे की प्रक्रिया और आंतरिक स्थिति को समझने के लिए बेहद अहम है.

कोर-ड्रिलिंग के इस काम में 10 एक्सपर्ट्स की टीम शामिल है, इस प्रोसेस में डायमंड ड्रिल तकनीक और शून्य वाइब्रेशन मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है ताकि मंदिर की पुरानी पत्थर संरचना को कोई नुकसान न पहुंचे. ड्रिलिंग शुरू करने से पहले विशेषज्ञों ने लेजर माप, एंडोस्कोपिक फोटोग्राफी और अन्य आधुनिक तकनीकों से मंदिर की संरचना की सुरक्षा का पूरा अध्ययन किया था.

यह अभियान मंदिर के पश्चिमी हिस्से के पहले स्तर पर चल रहा है, जहां भविष्य में एक सुरंग बनाई जाएगी ताकि गर्भगृह में 100 साल पहले भरी गई रेत को सुरक्षित तरीके से हटाया जा सके.

ब्रिटिश के समय में बंद हुआ था मंदिर
ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि ब्रिटिश काल में मंदिर में कमजोर हो रही संरचना को बचाने के लिए गर्भगृह में रेत और पत्थर भर दिए गए थे. उस समय मंदिर के चारों ओर 15 फीट ऊंची दीवार भी बनाई गई थी. बाद में रिपोर्ट्स में बताया गया कि 1999 के सुपर साइक्लोन के बाद से गर्भगृह के पास मौजूद दरारों से पानी मंदिर के अंदर घुसता रहा, जिसके कारण रेत और ज्यादा सख्त होकर लगभग 17 फीट तक जम गई है. वर्तमान ड्रिलिंग टीम का लक्ष्य अब उसी भरी गई रेत के हिस्से तक पहुंच है, जिसका जिक्र पुराने रिकॉर्ड में मिलता है. 

(रिपोर्ट- अजय नाथ)

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