आज के डिजिटल समय में स्मार्टफोन ने ऑफिस और घर के बीच की रेखा लगभग मिटा दी है. छह बजे के बाद काम खत्म होने का कॉन्सेप्ट अब बीते दिनों की बात लगता है. देर रात आने वाले ईमेल, व्हाट्सऐप मैसेज और बॉस के निर्देश अब रोजमर्रा की आदत बन चुके हैं. लगातार ऑनलाइन रहने की इस मजबूरी ने कर्मचारियों को कभी भी पूरी तरह काम से अलग होने नहीं दिया. इसी चिंता को समझते हुए संसद में एक अहम प्रस्ताव पेश किया गया है ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ जिसे लोकसभा सांसद सुप्रिया सुले लेकर आई हैं.
भारत में कर्मचारी लंबे समय से डिजिटल कम्युनिकेशन और रिमोट वर्क के कारण बढ़ते दबाव का सामना कर रहे हैं. कंपनियों की उम्मीदें और लगातार उपलब्ध रहने का कल्चर कर्मचारियों के निजी जीवन में दखल देने लगा है. परिवार, आराम और मानसिक संतुलन सब कुछ प्रभावित हो रहा है. इसी टूटते संतुलन को ठीक करने की कोशिश करता है यह नया बिल.
हर मैसेज का जवाब जरूरी नहीं
इस बिल का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों को ऑफिस टाइम के बाद काम से जुड़े कॉल, ईमेल या मैसेज से बचने की कानूनी आज़ादी देना है. यानी काम का समय खत्म होते ही कर्मचारी बिना किसी डर या दबाव के खुद को ऑफलाइन कर सकेंगे. बिल साफ कहता है कि बॉस आपात स्थिति में संपर्क कर सकते हैं, लेकिन कर्मचारी का जवाब देना अनिवार्य नहीं होगा. यह सुविधा पॉजिटिव वर्क कल्चर को बढ़ावा देगी और मानसिक थकान को कम करेगी.
वर्किंग आवर्स के बाद काम, बनेगा ओवरटाइम
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि कर्मचारी को काम के बाद कॉल या मैसेज न लेने पर किसी तरह की सज़ा नहीं दी जा सकेगी. अगर कोई कर्मचारी अपनी मर्जी से घंटों के बाद जवाब देता है, तो कंपनी को स्टैंडर्ड वेतन दर पर ओवरटाइम भुगतान करना होगा. इससे कर्मचारियों की मेहनत को उचित मान्यता भी मिलेगी.
जुर्माना भरने का भी है प्रस्ताव
नियमों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए बिल में सख्त प्रावधान भी शामिल हैं. जिन बॉस ने कर्मचारियों के डिस्कनेक्ट होने के अधिकार की अवहेलना की, उन पर उनके कुल कर्मचारी वेतन के 1% तक का जुर्माना लगाने का प्रस्ताव है. यह व्यवस्था इस बात को पक्का करती है कि कंपनियां नई गाइडलाइंस को हल्के में नहीं लेंगी.