
निधि कुमारी की कहानी इस बात की मिसाल है कि संकल्प हो तो कोई भी कमी रास्ता नहीं रोक सकती. सहरसा की रहने वाली निधि जन्म से मूक-बधिर हैं, लेकिन उन्होंने अपनी इस चुनौती को कभी अपनी पहचान पर हावी नहीं होने दिया. शब्द भले उनके पास न हों, लेकिन उनकी कला बोलती है और इतनी प्रभावशाली कि हर कोई देखता रह जाता है.
8 साल की उम्र से सीखना किया शुरू-
निधि ने महज 8 साल की उम्र में ब्लॉक प्रिंटिंग सीखनी शुरू कर दी थी. लकड़ी के ब्लॉकों से कपड़ों पर उकेरे गए डिजाइन उनके लिए सिर्फ सजावटी चित्र नहीं, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति के साधन हैं. अपनी कठिनाइयों को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अपने हुनर के ज़रिए उड़ान भरी और आज वही कला उनकी सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है.
पटना के उपेंद्र महारथी संस्थान से मिली उड़ान-
निधि को ब्लॉक प्रिंटिंग का पारंपरिक प्रशिक्षण राजधानी पटना के उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान में मिला. वहां उन्होंने अपने कौशल को धार दी और कई प्रतियोगिताओं में पुरस्कार भी जीते. बिहार कला उत्सव जैसे मंचों पर उनके कार्य को सराहा गया और सरकारी प्रोत्साहन भी मिला.
हर डिजाइन में दिखता है जीवन का सार-
निधि की कृतियों में ग्रामीण संस्कृति, प्रकृति, और लोक परंपराएं जीवंत रूप से उभरती हैं. उनके प्रत्येक प्रिंट में भावनाएं, अनुशासन और सौंदर्य का अद्भुत संगम दिखता है. उनकी कला सिर्फ देखने की वस्तु नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक संवाद है.
वो जो खुद मिसाल बन गईं-
निधि सिर्फ एक कलाकार नहीं, एक प्रेरणा हैं. उन्होंने यह साबित किया है कि ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए आवाज़ से ज़्यादा ज़रूरी है आत्मविश्वास और जुनून. उनकी कहानी उन सभी लोगों को नई राह दिखाती है, जो कभी हालात से हार मान लेते हैं.
क्या है ब्लॉक प्रिटिंग-
ब्लॉक प्रिटिंग एक पारंपरिक कला है, जिसमें लकड़ी, लिनोलियम या अन्य सामग्री से बने ब्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है और कपड़े या कागज पर डिजाइन छापे जाते हैं. पहले ब्लॉक को स्याही या रंग में डुबोया जाता है, उसके बाद इसे कपड़े या कागज पर दबाया जाता है. जिससे उसपर छाप बन जाती है. यह एक हस्तकला है, जिसमें हर डिजाइन को ब्लॉक को हाथ से दबाकर बनाया जाता है.
(धीरज कुमार की रिपोर्ट)
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