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Uttarakhand Traditonal Art: पोलियो ने बचपन में छीने पैर लेकिन नहीं तोड़ पाया हौसला... अब चीड़ की छाल से बना रहे खूबसूरत कलाकृतियां, ऐसी है जीवन जोशी की कहानी

जीवन जोशी बचपन में ही पोलियो का शिकार हो गए थे. लेकिन यह मजबूरी उनके अंदर की कला को नहीं मार सकी. आज जब उत्तराखंड पलायन का दंश झेल रहा है तो जोशी की कला इस राज्य के लिए आत्मनिर्भरता का एक उदाहरण बनकर खड़ी हुई है.

जीवन जोशी की उम्र 65 साल हो चुकी है. जीवन जोशी की उम्र 65 साल हो चुकी है.

उत्तराखंड के हलद्वानी में रहने वाले 65 साल के जीवन जोशी अपने नाम के अनुरूप ही जिंदगी को खास अंदाज में जी रहे हैं. बचपन में पोलियो का शिकार बने जीवन उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहते हैं. उन्होंने सूखे चीड़ की छाल से बेहतरीन कलाकृतियां बनाने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दी. इसे वह 'बगेट' के नाम से पुकारते हैं. 

जीवन की कला में उत्तराखंड के मंदिरों की प्रतिकृतियों से लेकर पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों तक की झलक दिखती है. वह अपनी इन कृतियों से अपने राज्य की सांस्कृतिक विरासत की मिसाल पेश कर रहे हैं.  

वेस्ट से बेस्ट बना रहे जोशी
जोशी कहते हैं कि चीड़ की छाल को उसके लचीलेपन की वजह से विभिन्न आकार दिए जा सकते हैं. उन्होंने इस तरह से इसके इस्तेमाल के पर्यावरणीय फायदों की ओर भी इशारा किया. जीवन चंद्र जोशी अपने काम के बारे में कहते हैं, "इसमें हर तरह की चीज बन सकती है. यह एक ऐसी चीज है जिसमें एक तो पर्यावरण को नुकसान नहीं करतीं." 
 

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जीवन अपनी कला में उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को दिखाने की कोशिश करते हैं.

वह बताते हैं, "हम जब हम इसको जंगल से निकालकर बाहर ले आते हैं तो हम पर्यावरण की रक्षा कर रहे होते हैं क्योंकि दावाअग्नि जब जलती है तो ये छाल भी वहां पड़ी हुई जलती है. इसकी एक खासियत है कि एक बार जलने के बाद ये बुझ जाता है तो दोबारा ये कोयले के रूप में इकट्ठा हो जाता है. फिर इसे दो, तीन या चार बार भी जलाया जा सकता है." 

जोशी बताते हैं कि वह अपने काम के लिए पेड़ की ऐसी छाल का इस्तेमाल करते हैं, जो किसी काम की नहीं होती. वह बताते हैं कि जो पेड़ काट दिए जाते हैं या सूख जाते हैं, उनकी छाल के इस्तेमाल से वह अपनी कलाकृतियां बनाते हैं. इसके अलावा सफाई करके जो बैगुएट जलाने वाले होते हैं या पानी में बह जाते हैं, उनके इस्तेमाल से भी वह स्कल्पचर तैयार करते हैं.

काम के बूते हासिल की समाज में इज्जत
जीवन जोशी बचपन से ही पोलियोग्रस्त हैं, लेकिन उन्होंने अपनी शारीरिक अक्षमता को कभी भी अपने काम के आड़े नहीं आने दिया. लोग उनके बुलंद इरादे और अपने काम के प्रति समर्पण की तारीफ करते है. लोगों का मानना है कि अगर जीवन जोशी को उनके काम के लिए सरकार और सामाजिक संगठनों से समर्थन मिलता तो वे इलाके में रोजगार के मौके भी पैदा कर सकते थे. 
 

जीवन ऐसी छाल का इस्तेमाल करते हैं जो किसी काम की नहीं होती.

हल्द्वानी के रहने वाले गिरीश चंद्र कहते हैं, "ये अच्छे स्वभाव के और काफी मेहनती आदमी हैं. जब से यहां पर आए हैं, देखते हैं हमेशा लगे रहते हैं अपने ही काम में और काफी अच्छी अच्छी चीजें बनाई हैं. पोलियो होने के बावजूद भी इन्होंने ढोल, नगाड़े और मंदिर और पहाड़ी हमारी संस्कृति से जुड़ी काफी चीजें बना रखी हैं." 

हलद्वानी के सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र शर्मा बताते हैं, "जोशी जी ने अपनी काष्ठ कला को आगे बढ़ाया है ये अपने आप में बहुत बड़ा काम है. हमारे राज्य से बहुत ज्यादा पलायन हो रहा है. ऐसे में उन्होंने रोजगार अर्जित करने के लिए जो काम शुरू किया है, वह उत्तराखंड के पलायन को रोकने के लिए सार्थक सिध्द हो सकता है. उत्तराखंड सरकार को ऐसे कलाविद की कला को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग देना चाहिए." 

सामाजिक कार्यकर्ता गणेश रावत कहते हैं, "जोशी जी ने इतनी सुंदर कलाकृतियां प्रस्तुत की हैं कि उसको उन कलाकृतियों को पर्यटक भी अपने साथ सहेज कर ले जा सकते हैं. उन्हें अगर और प्रोत्साहन दे सरकार और विभिन्न संस्थाएं तो वह और भी बेहतरीन काम कर सकते हैं." 

उन्होंने कहा, "इससे यहां की अनमोल धरोहरों को हम लोग जो वेस्टेज है, उसको भी हम इस्तेमाल सकर सकेंगे. सैलानियों को भी एक ऐसा मोंमेंटो या अपना ऐसा स्मृतिचिह्म दे सकेंगे. वहीं नए बच्चों को भी इस कला से रूबरू करवाया जा सकेगा. मैं समझता हूं कि यह अपने आप में कला का नया नमूना और नया आयाम होगा." 

जीवन जोशी को सूखी चीड़ की छाल से कलाकृतियां बनाने के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने सीनियर फेलोशिप भी दी है. जोशी कहते हैं कि इस शिल्प में उनकी दिलचस्पी उनके पिता की वजह से बढ़ी, जिन्होंने उन्हें कला और शिल्प की दुनिया से परिचित कराया. अब 65 साल के जोशी कहते हैं कि वह स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देना जारी रखेंगे और साथ ही युवा पीढ़ी को इसे अपनाने के लिए प्रशिक्षित भी करेंगे.