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अब जेनेटिक बीमारियों की पहचान होगी आसान, 640 गुना ज्यादा सटीक है ये नई टेक्नोलॉजी

AIIMS दिल्ली के वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. वैज्ञानिकों ने एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी प्राइमरी सिलीअरी डिस्किनेशिया (PCD) की पहचान के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. ये अब तक के सबसे सटीक तरीकों में से एक मानी जा रही है.

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हाइलाइट्स
  • ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी पर बेस्ड है तकनीक

  • और भी बीमारियों को पकड़ सकती है ये तकनीक

AIIMS दिल्ली के वैज्ञानिकों ने मेडिकल साइंस में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है. वैज्ञानिकों ने एक दुर्लभ जेनेटिक बीमारी प्राइमरी सिलीअरी डिस्किनेशिया (PCD) की पहचान के लिए एक नई तकनीक विकसित की है. ये अब तक के सबसे सटीक तरीकों में से एक मानी जा रही है.

ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी पर बेस्ड है तकनीक
PCD फेफड़ों और सांस की नली को प्रभावित करती है और समय से पहचान न होने की वजह से ये गंभीर हो जाती है और जानलेवा बन जाती है. AIIMS की यह तकनीक ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (TEM) पर आधारित है, जो सूक्ष्म स्तर पर सिलीअरी संरचनाओं में होने वाले बदलावों को दिखाती है.

Microscopy and Microanalysis में पब्लिश हुई है स्टडी
इस रिसर्च को डॉ. सुभाष चंद्र यादव (एनाटॉमी विभाग) और प्रोफेसर काना राम जात (पीडियाट्रिक्स विभाग) ने लीड किया है. यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की फेमस जर्नल Microscopy and Microanalysis में भी पब्लिश हुई है.

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640 गुना ज्यादा स्पष्टता से जांच सकती है
इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने 200 मरीजों पर यह तकनीक आजमाई है, जिनमें से 135 मामलों में सटीक पहचान हो पाई. खास बात यह है कि यह तकनीक अब तक की सबसे एडवांस मानी जाने वाली जीनोम सीक्वेंसिंग से भी ज्यादा सटीक है. TEM तकनीक 640 गुना ज्यादा स्पष्टता से सूक्ष्म दोषों को पहचानने में सक्षम है. 

और भी बीमारियों को पकड़ सकती है ये तकनीक
PCD के अलावा, ये टेक्नोलॉजी कई और बीमारियों जैसे सांस से जुड़ी बीमारियां, किडनी और आंखों की परेशानी, शारीरिक विकास की गड़बड़ियां और बांझपन की पहचान भी कर सकती है.

रिसर्चर्स ने बताया कि सैंपल कलेक्शन से लेकर अल्ट्रा-थिन सेक्शनिंग और TEM इमेजिंग तक, हर स्टेप को इतने बारीकी से डिजाइन किया गया है कि सबसे छोटी दिक्कतें भी नजर आने लगती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह तकनीक भविष्य में जेनैटिक बीमारियों की पहचान और इलाज में गेम-चेंजर साबित हो सकती है. इससे मरीजों का जल्दी और सटीक इलाज संभव होगा.