
हैदराबाद के एआईजी हॉस्पिटल्स ने एक अत्याधुनिक बायो बैंक स्थापित किया है, जो रिसर्च करने के उद्देश्य से ह्यूमन टिशूज का संरक्षण और विश्लेषण करेगा. यह बैंक तीन लाख से अधिक बॉयो सैंपल 15 वर्षों से अधिक समय तक रख सकता है, जिससे जीनोमिक अनुसंधान में मदद मिलेगी. प्रख्यात अमेरिकी जीवविज्ञानी डॉ. लेरॉय हुड (Dr. Leroy Hood)ने इसका उद्घाटन किया. इस तरह ये बायोबैंक दक्षिण भारत में इस तरह की पहली पहल बन गई है.
कुल 23 फ्रीजर
बायोबैंक में कुल पंद्रह 80 डिग्री फ्रीजर, पांच -20 डिग्री फ्रीजर और तीन "-160 डिग्री" तरल नाइट्रोजन टैंक हैं, जिनकी संचयी क्षमता तीन लाख से अधिक बायोसैंपल संग्रहीत करने की है. बैंक का मुख्य उद्देश्य शोधकर्ताओं, संस्थानों और इंडस्ट्री पार्टनर्स के बीच सहयोग को बढ़ावा देना है, जिससे प्रिवेंटिव मेडिसन के क्षेत्र में डिस्कवरी और इनोवेशन में तेजी लाने के लिए एक सहयोगी मंच प्रदान किया जा सके. एआईजी अस्पताल के अध्यक्ष डॉ. डी नागेश्वर रेड्डी ने कहा, "बायोबैंक शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में काम करेगा, जो उन्हें अन्य महत्वपूर्ण बायोसैंपलों के बीच उच्च गुणवत्ता वाले ह्यूमन टिशू सैंपल के विशाल भंडार तक पहुंच प्रदान करेगा."
रोगों का पहले लग जाएगा पता
इस बायोबैंक के साथ अस्पताल अगले 5 से 10 सालों के लिए रोगियों की के हजारों बायोसैंपलों का विश्लेषण करने में सक्षम होगा. डॉ. रेड्डी को ने आगे कहा, "लेटेस्ट एआई सिस्टम के साथ इसे मिलाकर हमें कैंसर, मधुमेह, हृदय फेलियर जैसी पुरानी बीमारियों के लक्षण दिखने से पहले ही भविष्यवाणी करने की स्थिति में सक्षम बनाएगा." डॉ डी नागेश्वर रेड्डी ने बताया कि वो डीएनए और आरएनए नमूनों की जांच करके बीमारियों की भविष्यवाणी कर पाएंगे. डॉ. लेरॉय ने अपने शोध में पाया है कि कई बीमारियों की शुरुआत से 10 साल पहले ही भविष्यवाणी की जा सकती है. बायोबैंक शोधकर्ताओं, चिकित्सकों और वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में काम करेगा.