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'हिमालयन गोल्ड...' एक कीड़े के शरीर पर उगती है यह औषधि, कीमत लगभग 10 लाख प्रति किलो

कीड़ाजड़ी का जन्म प्रकृति की अद्भुत कारीगरी है. यह दरअसल एक परजीवी फंगस है जो हिमालयी इलाकों में पाए जाने वाले एक विशेष कैटरपिलर के शरीर में प्रवेश करता है. गर्मियों में मिट्टी के भीतर रहने वाले ये कैटरपिलर जब फंगस से संक्रमित होते हैं तो यह धीरे-धीरे उनके शरीर को अंदर से खा जाता है. बाद में कीट की मृत्यु हो जाती है. इसके बाद कैटरपिलर के माथे से यह फंगस पौधे की टहनी जैसी आकृति में बाहर निकलने लगती है. यही आधा कीट और आधा पौधा दिखने वाला जीव कीड़ाजड़ी कहलाता है.

Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI) Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI)

हिमालय की बर्फ़ीली ऊंचाइयों में एक अद्बभुत औषधि पाई जाती है. यह औषधि एक कीट के शरीर पर पनपती है. इसे कीड़ाजड़ी या हिमालयन गोल्ड भी कहा जाता है. अपने गुणों और दुर्लभता के कारण इसे दुनिया की सबसे महंगी औषधियों में शामिल किया जाता है. 

हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों और ऊंचे घास के मैदानों में एक ऐसा प्राकृतिक खजाना छिपा है जिसकी चमक सोने को भी फीका कर दे. यह कोई धातु या रत्न नहीं बल्कि एक अद्भुत जीव और फफूंद का संगम है जिसे दुनिया कीड़ाजड़ी या यार्सागुम्बा के नाम से जानती है. अंग्रेज़ी में इसे कैटरपिलर फंगस कहा जाता है. अपनी दुर्लभता, औषधीय गुणों और चमत्कारी प्रभावों के कारण कीड़ाजड़ी आज दुनिया की सबसे महंगी प्राकृतिक औषधियों में शुमार है. इतनी कीमती कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत कई बार 10 लाख रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. अपनी इसी कीमत के कारण इस औषधि को हिमालय का गोल्ड भी कहा जाता है. हाल ही दिल्ली में हुए फूड एक्सपो में इसका स्टॉल काफी आकर्षण का केंद्र बना. 

पैदा होने की अद्भुत कहानी 
कीड़ाजड़ी का जन्म प्रकृति की अद्भुत कारीगरी है. यह दरअसल एक परजीवी फंगस है जो हिमालयी इलाकों में पाए जाने वाले एक विशेष कैटरपिलर के शरीर में प्रवेश करता है. गर्मियों में मिट्टी के भीतर रहने वाले ये कैटरपिलर जब फंगस से संक्रमित होते हैं तो यह धीरे-धीरे उनके शरीर को अंदर से खा जाता है. बाद में कीट की मृत्यु हो जाती है. इसके बाद कैटरपिलर के माथे से यह फंगस पौधे की टहनी जैसी आकृति में बाहर निकलने लगती है. यही आधा कीट और आधा पौधा दिखने वाला जीव कीड़ाजड़ी कहलाता है. इसको खोजने और निकालने का काम बेहद मुश्किल है. बर्फ़ पिघलने के मौसम में स्थानीय लोग 3,000 से 5,000 मीटर ऊंची चोटियों तक चढ़ते हैं. वहां ऑक्सीजन की कमी, जबर्दस्त ठंड और लगातार बदलते मौसम के बीच मिट्टी को धीरे-धीरे खुरच कर इन नन्हीं टहनियों को जड़ों समेत निकालते हैं. ज़रा-सी चूक होने पर टहनियां टूट जाती हैं और इसकी कीमत घटा सकती है. कई बार यह तलाश हफ्तों चलती है. 

Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI)
Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI)

खासियत का जलवा, ओलंपिक तक पहुंची
तिब्बत, नेपाल और चीन में सदियों से इसे अद्भुत औषधि माना जाता है. पारंपरिक चीनी चिकित्सा में इसे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, ताकत देने और थकान दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इसकी यही खासियत इसे एथलीट्स के बीच भी लोकप्रिय बनाती है. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में तो चीन सरकार ने अपने खिलाड़ियों के लिए कीड़ाजड़ी का सेवन अनिवार्य किया था ताकि उनकी सहनशक्ति और प्रदर्शन बेहतर हो सके.

गोल्ड से महंगा खजाना
कीड़ाजड़ी की कीमत आसमान छूने की सबसे बड़ी वजह उसकी दुर्लभता है. चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों में इसे हिमालयन गोल्ड कहा जाता है. इसके औषधीय और ऊर्जा बढ़ाने वाले गुण इसे धनी उपभोक्ताओं और अंतरराष्ट्रीय दवा कंपनियों के लिए सोने से भी अधिक आकर्षक बना देते हैं. यही कारण है कि हर साल इसकी तस्करी के कई मामले सामने आते हैं. कीड़ाजड़ी न सिर्फ एक औषधि है बल्कि हिमालयी इलाकों में रहने वाले हजारों परिवारों के लिए रोज़गार का अहम स्रोत भी है. लेकिन अनियंत्रित दोहन और जलवायु परिवर्तन ने इसके भविष्य पर खतरे की घंटी बजा दी है. वैज्ञानिक खेती और नियंत्रित उत्पादन न सिर्फ कारोबार के लिए, बल्कि पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए भी बेहद ज़रूरी हैं. हिमालय का यह अद्भुत तोहफ़ा हमें यह एहसास कराता है कि प्रकृति के छोटे-से जीव में भी कितनी बड़ी ताक़त और रहस्य छिपा हो सकता है. लेकिन यह भी सच है कि इंसानी लालच और बदलते मौसम ने इस अनमोल खजाने को बचाना अब हमारी जिम्मेदारी बना दी है.

Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI)
Caterpillar Fungus (Photo/Gemini AI)

कई बीमारियों में जबर्दस्त उपयोगी
कीड़ाजड़ी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों खासकर तिब्बती और चीनी मेडिसिन में सदियों से इस्तेमाल की जाती है. आधुनिक रिसर्च अब भी सीमित है लेकिन इसका उपयोग मुख्य रूप से कुछ बीमारियों में कारगर है. 

शरीर की ऊर्जा और स्टैमिना बढ़ाने के लिए खिलाड़ी इसे सप्लीमेंट की तरह लेते हैं. इम्यून सिस्टम को मजबूत करने, संक्रमणों से लड़ने और बार-बार होने वाले जुकाम-खांसी में इसे सहायक माना जाता है. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस या फेफड़ों की कार्यक्षमता सुधारने पुरुषों और महिलाओं दोनों में लिबिडो और प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए पारंपरिक रूप से दिया जाता है. किडनी फंक्शन और लिवर हेल्थ बेहतर करने के लिए. रक्त संचार और दिल की सेहत को सुधारने में मददगार माना जाता है. उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी करने और सामान्य कमजोरी दूर करने के लिए टॉनिक की तरह इस्तेमाल किया जाता है. हालांकि यह ध्यान रखने वाली बात है अभी भी इस औषधि के बीमारियों पर इस्तेमाल को लेकर रिसर्च चल रही है. 

क्लाइमेट चेंज ने पैदावार घटाई
लेकिन कीड़ाजड़ी की यह समृद्ध परंपरा अब गंभीर खतरे में है. क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन इसके प्राकृतिक चक्र को बिगाड़ रहा है. हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ते तापमान, पिघलते ग्लेशियर और बदलते बारिश के पैटर्न के कारण उस मिट्टी की नमी और ठंडक कम हो रही है, जहां यह फंगस पनपता है. शोध बताते हैं कि पिछले दो दशकों में कीड़ाजड़ी की पैदावार में लगातार गिरावट आई है. स्थानीय लोग बताते हैं कि पहले जहां एक सीजन में अच्छी मात्रा मिल जाती थी, अब घंटों की मेहनत के बाद भी मुश्किल से कुछ ही नमूने हाथ लगते हैं.

लैब में पैदा करने की कोशिश
कीमत और मांग के कारण अब इसे लैब में तैयार करने की कोशिशें तेज़ हो रही हैं. हिमाचल प्रदेश में कुछ स्टार्टअप्स ने प्रयोगशालाओं में कीड़ाजड़ी के गुणों वाला उत्पाद विकसित करने की पहल की है. उद्देश्य है कि प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम किया जाए और बाजार की जरूरत पूरी हो. हालांकि प्राकृतिक कीड़ाजड़ी जैसी गुणवत्ता और असर को पूरी तरह दोहराना अभी भी बड़ी चुनौती है.

दिल्ली के फूड एक्सपो में कीड़ाजड़ी स्टॉल का आकर्षण 
दिल्ली में हाल ही में आयोजित एक फूड एक्सपो में कीड़ाजड़ी को लेकर लोगों की दिलचस्पी देखने लायक थी. हिमालय के इस दुर्लभ खजाने को करीब से देखने और समझने के लिए विशेष स्टॉल लगाया गया था. इन स्टॉल पर हिमाचल प्रदेश से आए स्टार्टअप ने असली कीड़ाजड़ी और उससे बने उत्पाद की प्रदर्शन किया. छोटे-छोटे बॉक्सेस में बेहद सावधानी से सजाई गई कीड़ाजड़ी की नन्ही टहनियां आगंतुकों के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं. आयोजकों के अनुसार यह पहली बार था जब दिल्ली जैसे महानगर में उपभोक्ताओं को सीधे कीड़ाजड़ी खरीदने और उसके बारे में जानकारी पाने का मौका मिला. स्टॉल संचालकों ने इसकी औषधीय विशेषताओं, सेवन के तरीकों और प्राकृतिक परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताया. कई लोगों ने उत्सुकता में इसकी कीमत पूछी तो उन्हें सुनकर हैरानी हुई कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह दस लाख रुपये प्रति किलो तक बिक सकती है. कुछ स्टार्टअप्स ने लैब में तैयार विकल्पों को भी प्रदर्शित किया ताकि लोग प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम करने की दिशा में जागरूक हो सकें. इस एक्सपो ने साफ दिखा दिया कि हिमालय की यह अद्भुत औषधि अब केवल पहाड़ी इलाकों तक सीमित नहीं रही, बल्कि शहरी बाजारों और स्वास्थ्य-जागरूक उपभोक्ताओं के बीच भी तेजी से अपनी जगह बना रही है.

(डिस्क्लेमरः लेख में इस औषधि के संबंध में सामान्य जानकारियां दी गई हैं. इसके सेवन के बारे में किसी तरह का फैसला डॉक्टर से परामर्श के बाद ही करें.)

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