
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों और आधुनिक विज्ञान के मेल से नई हर्बल दवाओं का आविष्कार कर रहा है. CSIR की तीन प्रमुख प्रयोगशालाओं ने अब तक 13 हर्बल दवाएं बनाई हैं, जिन्हें स्टार्टअप्स के जरिए मरीजों तक पहुंचाने की पहल शुरू हो गई है. इसी विषय पर लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान संस्थान (एनबीआरआई) में दो दिवसीय स्टार्टअप कॉन्क्लेव का आयोजन किया गया.
बीजीआर-34 पर सबसे ज्यादा फोकस
कॉन्क्लेव में सबसे ज्यादा चर्चा डायबिटीज की हर्बल दवा बीजीआर-34 की रही. इसे एनबीआरआई और सीमैप ने मिलकर छह प्रमुख जड़ी-बूटियों से तैयार किया है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह दवा ब्लड शुगर कंट्रोल करने के साथ-साथ लंबे समय में डायबिटीज रिवर्सल की दिशा में भी असरदार है.
एमिल फार्मास्युटिकल्स के कार्यकारी निदेशक डॉ. संचित शर्मा ने कहा, 'दुनिया अब सिर्फ कंट्रोल नहीं, बल्कि डायबिटीज रिवर्सल पर जोर दे रही है. बीजीआर-34 आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान का संगम है, यही आने वाले समय में डायबिटीज-मुक्त समाज की नींव रखेगा.'
13 हर्बल दवाएं बनीं पहचान
लखनऊ की तीन प्रयोगशालाएं एनबीआरआई, सीमैप और सीडीआरआई अब तक 13 महत्वपूर्ण हर्बल दवाएं विकसित कर चुकी हैं. इनमें बीजीआर-34 (डायबिटीज के लिए), अर्जुन की छाल से बनी पैक्लिटैक्सेल (ब्लड कैंसर के लिए) और पिक्रोलिव (फैटी लीवर और लीवर कैंसर के लिए) सबसे प्रमुख हैं.
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने उद्घाटन सत्र में कहा कि यह आयोजन ‘प्रयोगशाला से जनमानस तक’ की अवधारणा का बेहतरीन उदाहरण है. उन्होंने स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित किया कि वे हर्बल दवाओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिस्पर्धी बनाएं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी प्रदर्शनी का अवलोकन किया और वैज्ञानिकों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.
दुनिया में बढ़ रही हर्बल उपचारों की मांग
कॉन्क्लेव ऐसे समय में हुआ है जब दुनियाभर में प्राकृतिक और हर्बल उपचारों की मांग तेजी से बढ़ रही है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के पास वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित दवाओं के जरिए वैश्विक हेल्थकेयर बाजार में नेतृत्व करने का बड़ा मौका है.
डॉ. संचित शर्मा ने कहा- “यह सिर्फ दवा नहीं, बल्कि विज्ञान और परंपरा का ऐसा मॉडल है जो आने वाले सालों में दुनिया का हेल्थ एजेंडा तय कर सकता है.”
किसानों और मरीजों दोनों को फायदा
एनबीआरआई और सीमैप औषधीय पौधों की उन्नत किस्मों पर भी शोध कर रहे हैं. इससे किसानों को अधिक उत्पादन और बेहतर आय का अवसर मिलेगा. वहीं मरीजों को सस्ती और दुष्प्रभाव रहित हर्बल दवाएं आसानी से मिल सकेंगी.
भारत बनेगा हर्बल हेल्थकेयर का केंद्र
लखनऊ का यह कॉन्क्लेव साबित करता है कि भारत के पास परंपरा और आधुनिक विज्ञान को मिलाकर दुनिया को नई दिशा देने की ताकत है. बीजीआर-34 जैसी हर्बल दवाएं इस बदलाव का प्रतीक हैं, जो भारत को हर्बल हेल्थकेयर का वैश्विक केंद्र बना सकती हैं.