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इन्फ्लूएंजा H3N2, बर्ड फ्लू, मंकीपॉक्स, या फिर मारबर्ग... अचानक क्यों बढ़ रहे Viruses के मामले?

हम हर दिन सुबह उठते हैं और किसी न किसी देश में उभरने वाले वायरस के बारे में सुनते हैं, पर क्या आपने कभी सोचा है ये दुनिया पहले भी थी. वायरस से लोगों की मौत भी होती थी लेकिन आज के समय में ही इनकी इतनी चर्चा क्यों हो रही है.

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हाइलाइट्स
  • इन्फ्लूएंजा H3N2 से देश में अब तक 9 मौतें:

  • देश में कोरोना के बढ़ते मामले फिर डराने लगे हैं.

मंकीपॉक्स के व्यापक प्रकोप से लेकर, बर्ड फ्लू, मारबर्ग वायरस और  इन्फ्लूएंजा H3N2 के बढ़ते मामलों तक हाल के दिनों में हर तरफ अगर कुछ सुनाई दे रहा है तो सिर्फ और सिर्फ किसी न किसी नए वायरस का नाम...दुनिया के कई देशों में अब COVID इतना भयावह नहीं रह गया है जितना पहले हुआ करता था.

हम हर दिन सुबह उठते हैं और किसी न किसी देश में उभरने वाले वायरस के बारे में सुनते हैं, पर क्या आपने कभी सोचा है ये दुनिया पहले भी थी. वायरस से लोगों की मौत भी होती थी लेकिन आज के समय में ही इनकी इतनी चर्चा क्यों हो रही है. क्या देश दुनिया में वायरस का प्रकोप बढ़ रहा है? या कोविड महामारी के दौरान विकसित की गई बेहतर तकनीक की बदौलत हम वायरस का जल्दी पता चलाने में सक्षम हो गए हैं? जवाब थोड़ा मुश्किल है.

827,000 वायरस इंसानों को कर सकते हैं संक्रमित

एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में अभी भी करीब-करीब 1.67 मिलियन वायरस की पहचान की जानी बाकी है, जो कि इंसानों और जानवरों को संक्रमित करते हैं. इनमें से 827,000 वायरस ऐसे हैं जो सीधे इंसानों को संक्रमित करने की क्षमता रखते हैं. यह समझने के लिए कि वायरस कैसे जन्म लेते हैं, हमें पृथ्वी की शुरुआत के बारे में जानना होगा. वायरस कैसे अस्तित्व में आए इसे लेकर कई सिद्धांत हैं और हो सकते हैं लेकिन वे सभी इस बात से सहमत हैं कि वायरस अरबों सालों से जीवित चीजों के साथ-साथ विकसित होते हैं.

क्लाइमेट चेंज का वायरस फैलने में योगदान

इंसानों की दुनिया में वायरस के आने की वजह भी इंसान ही हैं. इंसानों ने जब खेती शुरू की तभी से जानवरों से उनका संपर्क भी स्थापित हो गया, और इस घटना ने जानवरों और इंसानों के बीच वायरस के ट्रांसमिशन को बढ़ावा दिया. जानवरों से इंसानों में फैलने वाले वायरस को जूनोसिस कहा जाता है. बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, रेबीज, निपाह, लेप्टोस्पाइरोसिस,हुकवार्म, साल्मोनेलोसिस, ग्लैंडर्स, एवियन इन्फ्लूएंजा, वेस्ट नाइल वायरस जैसी बीमारियां जूनोसिस हैं. अर्बनाइजेशन ने वायरस स्प्रैड करने के लिए आइडल वातावरण दिया. क्लाइमेट चेंज का भी वायरस के फैलने और नए वायरस के उभरने में बहुत योगदान है. उदाहरण के लिए, नई जगहों में अर्बोवायरस (मच्छरों से फैलने वाले वायरस) का पता लगाया जा रहा है क्योंकि उन जगहों पर मच्छरों को ऐसा वातावरण मिलता है, जहां वे लंबे समय तक जिंदा रह पाते हैं.

सर्विलांस के जरिए मिल सकती है मदद

SARS-CoV-2 ने दुनियाभर के लोगों को हैरान किया. कोई इसकी गंभीरता से इस कदर वाकिफ नहीं हुआ था जितना वायरस फैलने के बाद हुआ. COVID महामारी के दौरान विज्ञान बेहद तेजी से आगे बढ़ा है. और इसके परिणामस्वरूप वायरस की निगरानी के तरीकों और इका पता लगाने की टेक्नॉलजी का विकास हुआ है. जब कोई शख्स किसी वायरस से संक्रमित होता है, तो उस वायरस का कुछ genetic material इंसानों के शौचालय के जरिए बाहर आता है. वेस्ट वॉटर में ये दिखाने की शक्ति होती है कि किस क्षेत्र में संक्रमण की दर कितनी है. वैज्ञानिक इसी सर्विलांस के द्वारा वायरस के प्रकोप का पता चलाते हैं. इन्फ्लूएंजा, खसरा, यहां तक ​​कि पोलियो जैसे वायरस का पता लगाने के लिए इसी तकनीक का उपयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए 2022 में लंदन में वेस्ट वॉटर के जरिए ही पोलियो का पता लगाया गया था. अगर viral surveillance बढ़ाया जाता है तो जाहिर है दुनियाभर में ज्यादा वायरस फैलने की रिपोर्ट सामने आएगी. 

surveillance महामारी को रोकने का एक बेहतर तरीका हो सकता है. लेकिन दुनिया भर की सरकारों, स्वास्थ्य और विज्ञान एजेंसियों को वायरस के उभरने और वायरस संबंधी प्रोटोकॉल (नियमित रूप से अपडेट) को समय पर समझने की जरूरत है. ताकि कोविड जैसे वायरस दुनियाभर में इतने बड़े स्तर तक न फैलें.