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हर्निया के इलाज में नहीं खर्च करने होंगे लाखों रुपए, केजीएमयू के डॉक्टरों ने खोज निकाली सस्ती तकनीक

किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के जनरल सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर ने हर्निया के ऑपरेशन को सस्ते में करने की तकनीक खोज ली है. इस तकनीक में पैसे भी कम लगेंगे और समय भी बचेगा.

Hernia Hernia
हाइलाइट्स
  • अब सस्ते में होगी हर्निया की सर्जरी

  • सर्जरी में कम आता है खर्च

मरीजों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए चिकित्सा विज्ञान में नए-नए शोध हो रहे हैं. लेकिन कई बार इसमें काफी ज्यादा महंगे ट्रीटमेंट होते हैं, आम मरीजों के लिए उतना सहन करना आसान नहीं होता है. अब तक हर्निया जैसी बीमारी के लिए काफी महंगी सर्जरी होती थी. लेकिन अब लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के जनरल सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने हर्निया के इलाज की सस्ती तकनीक खोज निकाली है. जिसे टार्म्स तकनीक कहते हैं. 

जनरल सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. अवनीश कुमार ने बताया कि ये तकनीक उस ऑपरेशन में इस्तेमाल की जाती है जो हर्निया के ऑपरेशन के बाद वाली होती है. चाहे वह नाभि वाली हर्निया हो या फिर बड़े पेट की हर्निया जिसे इंसीजनल हर्निया कहते हैं. उस हर्निया के इलाज में कम खर्च होता है. पहले इन्हीं ऑपरेशनों में मरीजों की हर्निया की स्थिति के अनुसार रुपया लगता था. जिसमें 50 हजार से 1 लाख के बीच तक खर्च होता था लेकिन हम लोगों ने ऐसे ऑपरेशनों में सस्ती तकनीक खोज निकाली है." 

अब सस्ते में होगी हर्निया की सर्जरी
अश्विनी कुमार ने बताया कि जो हर्निया के ऑपरेशन चीरा लगाकर किए जाते है, उसमें नॉर्मल जाली प्रयोग होती है उसमें कम खर्चा आता है. लेकिन जो दूरबीन के जरिए हर्निया का इलाज करके जाली लगाई जाती है. जिसमें ज्यादा खर्चा आता है. इसी दूरबीन वाले महंगे ऑपरेशनों को हम लोगों ने लेप्रोसिक टर्म्स एब्डोमिनल रेट्रो मस्क्यूलर टेक्निक का इस्तेमाल करते हुए कम खर्चे में कर दिया है. 

सर्जरी में कम आता है खर्च
इस पद्धति में हम यह करते हैं कि जो चीरे वाले ऑपरेशन में नार्मल जाली लगती है उसी जाली को हम दूरबीन वाले ऑपरेशन में टर्म्स टेक्निक का इस्तेमाल करके सर्जरी कर देते हैं. जिसमें जाली का खर्चा 3 से 4 हजार के आसपास आता है पूरे ऑपरेशन की बात करें तो 5 से 7 हज़ार में पूरा ऑपरेशन हो जाता है और अच्छी बात यह रहती है कि इस टेक्निक के प्रयोग करने से संक्रमण का खतरा भी कम रहता है और तो और आंतो से जाली चिपकने का डर भी नहीं रहता है. साथ ही मरीजों को जल्दी छुट्टी मिल जाती है.

समय भी कम लगता है
डॉ अवनीश कुमार बताते हैं कि, "इस पद्धति को करने में लगभग 3 घंटे का समय लगता है. लेकिन यदि केस थोड़ा क्रिटिकल है तो 4 घंटे भी लग जाते हैं तब जाकर ऑपरेशन पूरा होता है. डॉ अवनीश ने आगे बताया कि इस तकनीक से अभी तक 30 से 40 सफल ऑपरेशन मरीजों के किए जा चुके हैं. प्रोफेसर कुमार ने यह भी बताया कि, ओपीडी में उनके पास लगभग 1 दिन में 20 से 25 हर्निया के पेशेंट उनको दिखाने के लिए आ जाते हैं और उनकी सर्जरी भी उनके बजट में फिट हो जाती है."

(सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)