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अपना लीवर देकर मां ने बचाई 9 साल के बच्चे की जान, मेदांता अस्पताल में हुआ पहला पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट

मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ एएस सोइन ने बताया कि पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. अगर इसमें थोड़ी भी देरी होती तो बच्चा कोमा में जा सकता था.

9 साल के बच्चे को मां ने दिया अपना 40 प्रतिशत लीवर 9 साल के बच्चे को मां ने दिया अपना 40 प्रतिशत लीवर
हाइलाइट्स
  • 9 साल के बच्चे को मां ने दिया अपना 40 प्रतिशत लीवर

मां की ममता को साबित करने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं होती है. लखनऊ में रहने वाली एक मां ने अपने 9 साल बच्चे के लिए अपना लीवर दे दिया. दरअसल, लखनऊ के मेदांता सुपरस्पेशियालिटी हॉस्पिटल में यूपी का पहला पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट करने का दावा किया गया है. मिली जानकारी के मुताबिक, प्रयागराज का रहने वाला 9 साल का तेजस सिंह हेपेटाइटिस ए वायरस के कारण एक्यूट लिवर फेलियर से पीड़ित था. कुछ दिन पहले ही सहारा अस्पताल से तेजस को मेदांता अस्पताल में रेफर कर दिया गया था. 

मेदांता में आने के 12 घंटे के अंदर डोनर और मरीज की जांचें की गईं और उसके बाद ट्रांसप्लांट का काम शुरू किया गया. डोनर के 40 प्रतिशत लिवर को लिया गया, ऑपरेशन के 2 हफ्ते बाद बच्चे की हालत में सुधार होने पर उसे छुट्टी दे दी गई. आज दो महीने बाद भी 9 वर्षीय तेजस बिल्कुल स्वस्थ है और एक सामान्य बच्चों की तरह जीवन जी रहा है. 

मां ने बेटे को डोनेट किया अपना लीवर 

मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांटेशन के हेड डॉ एएस सोइन ने  बताया कि पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. डॉ सोइन ने बताया कि,जैसे ही हमने तेजस की स्थिति की जांच की हमने उसके लिए लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी. तेजस के पिता ने अपने रिश्तेदारों की मदद से सभी व्यवस्थाएं की और  तेजस की मां डोनर बनी और अपने बच्चे को लीवर डोनेट करते हुए अपने लिवर का बायां हिस्सा दान कर दिया, जो लगभग 40 प्रतिशत था. 

बेहद जटिल था तेजस का केस 

कंसल्टेंट हेपेटोबिलरी और लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ रोहन चौधरी ने बताया कि तेजस का केस बेहद जटिल था, क्योंकि लिवर ट्रांसप्लांट में समय बहुत मायने रखता है. सर्जरी में किसी भी तरह की देरी होने से उसके परिणाम काफी बुरे हो सकते थे. 26 अप्रैल को बच्चे को पीलिया, हेपेटिक एन्सेफैलोपैथी और हाई आईएनआर के साथ अस्पताल में लाया गया था. एक्यूट लिवर फेलियर होने की वजह से मरीज में सेरेब्रल एडिमा भी बढ़ रहा था. बच्चे की हालत बिगड़ती जा रही थी.

रोहन चौधरी ने बताया कि अगर ट्रांसप्लांट नहीं किया गया होता तो वह कोमा में चला जाता. 27 अप्रैल  को लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट से बच्चे का सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट किया गया. ऑपरेशन के बाद तेजस के इम्यूनिटी सिस्टम को कमजोर करने के लिए इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाएं दी गईं ताकि उसका शरीर उसके अंदर अपनी मां के लिवर को रिजेक्ट न करे. तेजस को 1 साल तक कच्ची सब्जियां या बाहर का खाना खाने की अनुमति नहीं है. अब तेजस की तबीयत में भी काफी सुधार है. 

(लखनऊ से सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)

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