
कोरोना महामारी की नई लहर फिर से देखने को मिल रही है. इस नए लहर के पीछे का कारण नए SARS-CoV-2 वेरिएंट को माना जा रहा है. इस नए वेरिएंट को लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि जो इम्युनोकॉम्प्रोमाइज्ड हैं उनमें कोरोनो वायरस वेरिएंट के क्रोनिक या लॉन्ग कोविड रोगियों से उभरने की अधिक संभावना है. इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने कहा हैं कि ये मरीज वायरस से पूरी तरह से लड़ने में असमर्थ होते हैं,
यह वेरिएंट पुराने कोविड मरीजों में अधिक घातक
फ्रंटियर्स इन वायरोलॉजी ने एमोरी विश्वविद्यालय और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में लिखा है कि लाखों मनुष्यों में यह कोरोना का नया वेरिएंट विकसित होने के बजाय पुराने या लंबे कोविड मरीजों में यह अधिक घातक हो सकता है. वहीं हाल में हुए एक दूसरे अध्ययन से पता चला है कि जो लोग एक या उससे अधिक साल से किसी बीमारी के जुझ रहे हैं. उन्हें भी यह वेरिएंट कोरोना से संक्रमित कर सकता है. शोधकर्ताओं ने इसपर जोर देते हुए कहा है कि ऐसे लोगों की पहचान करना बेहद जरूरी है. ताकि उनका केवल कोविड के इलाज में मदद ही न किया जा सके, बल्कि नए वेरिएंट SARS-CoV-2 वायरस की जीनोमिक की निगरानी भी की जा सके.
ऐसे विकसित होता है SARS-CoV-2
SARS-CoV-2 जैसे वायरस जेनेटिक कोड में म्यूटेशन के कारण लागातार विकसित होते है. वहीं यह तब विकसित होते है जब यह रिप्लिकेट करते है. आमतौर पर यह म्यूटेशन वायरस को कोई फायदा नहीं देते है. म्यूटेशन के परिणामस्वरूप वायरस के एक वेरिएंट का परिणाम होता है. जिसके चलते संक्रमण का पता लगाने और इलाज को और भी कठीन बना देते है. जिसके चलते ये और भी खतरनाक हो सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पहले तीन वेरिएंट को अल्फा, बीटा और गामा करार दिया है.
VoCs में म्यूटेशन के बड़े समूह क्यों हुए? इस सवाल का जवाब ढूढने के लिए वैज्ञानिकों ने एक यांत्रिक, सैद्धांतिक मॉडल बनाया है. इसके परिणामी मॉडल में इस सिद्धांत को खारिज करता है कि ये वेरिएंट तीव्र संक्रमणों के निरंतर संचरण से उभरे हैं. इसके साथ ही यह सिद्धांत इसका पूरी तरह से समर्थन करते हैं कि प्रत्येक वेरिएंट एक व्यक्ति के भीतर एक पुराने संक्रमण के साथ विकसित हुआ है.