
अगर कभी आपने फिजियोथेरेपी कराई हो तो आपको पता होगा कि फिजियोथेरेपी सर्विसेज भारत में बहुत ज्यादा महंगी हैं. एक सेशन के लिए ही आपको 500 रुपये से 2000 रुपये तक फीस देनी पड़ सकती है. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे फिजियोथेरेपिस्ट के बारे में जो सिर्फ 10 रुपये में लोगों को फिजियोथेरेपी सर्विसेज दे रहे हैं.
यह कहानी है आंध्र प्रदेश के 37 वर्षीय डॉ. कोनंकी श्रीधर चौधरी जो कभी न्यूज़ीलैंड में करोड़ों की सैलरी कमाते थे, वहां पर ग्रीन कार्ड होल्डर थे और लक्ज़री लाइफस्टाइल जी रहे थे. लेकिन साल 2017 में उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई और तब उन्होंने कुछ ऐसा करने का फैसला किया जो आज उन्हें हर तरफ पहचान दिला रहा है. लोग अब उन्हें प्यार से “10 रुपये वाला डॉक्टर” कहते हैं.
न्यूज़ीलैंड में था अच्छा करियर
न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2002 में अनंतपुर मेडिकल कॉलेज से फिजियोथेरेपी की डिग्री पूरी करने और उस्मानिया मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप के बाद, श्रीधर 2007 में न्यूज़ीलैंड चले गए. करीब 10 सालों तक उन्होंने फिजियोथेरेपिस्ट के तौर पर काम किया, 16 देशों की यात्रा की और 100 से अधिक एयर एंबुलेंस ट्रिप्स किए. उस समय वे करोड़ों कमा रहे थे. उनका कहना है, “मुझे लगता था पैसा सब कुछ खरीद सकता है… लेकिन किस्मत के अलग ही प्लान थे.”
एक दुर्घटना ने बदल दी ज़िंदगी
20 दिसंबर 2017 को अनंतपुर में अपने पिता के साथ दोपहिया वाहन पर जाते समय, एक आवारा कुत्ते से बचने के चक्कर में श्रीधर का एक्सीडेंट हो गया. उनकी टांग बुरी तरह घायल हो गई. उन्हें बेंगलुरु ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि वह शायद कभी चल नहीं पाएंगे. 10 महीनों तक वह बिस्तर पर पड़े रहे, शारीरिक दर्द और मानसिक आघात से जूझते हुए.
श्रीधर ने न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उस दिन सड़क पर वह तड़प रहे थे, लेकिन लोग मदद करने के बजाय वीडियो बना रहे थे. उस बेपरवाही ने उन्हें शारीरिक दर्द से ज्यादा चोट पहुंचाई.
पिता की सीख बनी जीवन का मकसद
इस कठिन दौर में उनके पिता ने उनके कहा कि कभी किसी के खून और मांस का सौदा मत करना. जब ठीक हो जाओ, तो कम से कम कीमत में दूसरों की चलने में मदद करना. इस सलाह ने श्रीधर की ज़िंदगी बदल दी.
साल 2018 में श्रीधर ने “श्री लक्ष्मी फिजियोथेरेपी सेंटर” खोला. यहां राशन कार्ड धारकों से सिर्फ 10 रुपये में इलाज मिलता है. ठीक-ठीक घरों से आने वाले मरीजों को 50 रुपये और एडवांस्ड ट्रीटमेंट के लिए 100 रुपये देने होते हैं. महंगे टेस्ट के लिए मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भेजते हैं. अब तक वह 1 लाख से ज्यादा मरीजों का इलाज कर चुके हैं, जिनमें हजारों मरीजों का इलाज मुफ़्त में किया गया है.
श्रीधर का कहना है कि उनके पास इतनी सेविंग्स हैं कि वह और 30 साल तक यह सेवा कर पाएंगे. उनका छोटा भाई सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं, जो पांच फिजियोथेरेपिस्ट्स की सैलरी का खर्च उठाता है. आज श्रीधर अपने पिता की याद में बने रिहैबिलिटेशन सेंटर से यह मिशन चला रहे हैं.
------------End------------