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Blindness Treatment: आंख में माइक्रो चिप और स्मार्ट ग्लास! ब्लाइंड मरीजों के लिए नई उम्मीद बनी यह तकनीक

अमेरिका में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा चमत्कारी आई-इंप्लांट तैयार किया है, जो ब्लाइंड लोगों को पढ़ने और देखने में मदद कर सकता है.

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दुनिया भर में लाखों लोग उम्र से जुड़ी आंखों की बीमारी एज-रिलेटेड मैक्युलर डिजेनरेशन (AMD) से पीड़ित हैं, जिससे धीरे-धीरे आंखों की रोशनी चली जाती है. लेकिन अब एक नई तकनीक ने इन मरीजों के लिए उम्मीद की किरण जगा दी है. यूरोप में किए गए एक ट्रायल में ऐसे मरीज, जो पूरी तरह से देखने की क्षमता खो चुके थे, वे अब फिर से पढ़ने और देखने में सक्षम हुए हैं वो भी एक छोटे वायरलेस चिप और ऑगमेंटेड रियलिटी ग्लासेस की मदद से.

क्या है यह तकनीक? आंख में लगाया गया 'PRIMA' चिप
इस नई तकनीक का नाम है PRIMA डिवाइस. इसमें मरीज की आंख के पीछे एक बेहद छोटा वायरलेस चिप लगाया जाता है. मरीज को खास तरह के ऑगमेंटेड रियलिटी (AR) चश्मे पहनाए जाते हैं, जिनमें एक कैमरा होता है. कैमरा जो कुछ भी देखता है, उसे इन्फ्रारेड लाइट के रूप में चिप तक भेजता है. यह चिप उस लाइट को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदलता है और आंख के अंदर मौजूद स्वस्थ सेल्स को एक्टिव करता है. इसके बाद दिमाग उन सिग्नलों को “विजुअल इमेज” यानी तस्वीर के रूप में समझता है, जिससे व्यक्ति फिर से देखने में सक्षम होता है.

38 मरीजों पर हुआ सफल ट्रायल
यह ट्रायल यूरोप के 38 मरीजों पर किया गया था, जिनकी उम्र औसतन 79 वर्ष थी और सभी को जियोग्राफिक एट्रोफी नामक AMD का गंभीर रूप था. अमेरिकन मैक्युलर डिजेनरेशन फाउंडेशन के अनुसार, सिर्फ अमेरिका में करीब 2.2 करोड़ लोग AMD से पीड़ित हैं, जिनमें से 10 लाख लोग जियोग्राफिक एट्रोफी स्टेज पर हैं. ट्रायल में शामिल 32 मरीजों में से 80% मरीजों ने एक साल बाद दृष्टि में स्पष्ट सुधार दिखाया. वे लोग अब पहले से बेहतर देख और पढ़ पा रहे हैं.

कई मरीजों में सर्जरी से जुड़े साइड इफेक्ट्स भी दिखे
इस डिवाइस से नई उम्मीदें जगी हैं, लेकिन कुछ जोखिम भी सामने आए. 38 मरीजों में से 19 मरीजों को 26 गंभीर दुष्प्रभाव झेलने पड़े जैसे आंख में रक्तचाप बढ़ना या रेटिना के आसपास खून जमा होना. हालांकि, इन ज्यादातर समस्याओं का समाधान दो महीनों के भीतर हो गया.

जर्मनी के डॉ. फ्रैंक होल्ज का कहना है, यह पहली बार है जब इस बीमारी के मरीजों में देखने की क्षमता में सुधार देखा गया है. यह एक गेम चेंजर साबित हो सकता है. वहीं, अमेरिका के डॉ. सुनीर गर्ग का कहना है कि अब तक डॉक्टर केवल लेंस और मैग्नीफायर जैसे उपकरण दे पाते थे. “यह डिवाइस उन मरीजों के लिए बड़ा बदलाव है, जिन्हें हम अब तक सिर्फ सहारा दे पाते थे.”

भविष्य में रंगीन दृष्टि और 20/20 विजन की संभावना
यह तकनीक स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. डेनियल पैलांकर द्वारा विकसित की गई है और इसे Science Corp नामक कंपनी आगे बढ़ा रही है. कंपनी अब इस चिप को 400 पिक्सल से बढ़ाकर 10,000 पिक्सल तक बनाने पर काम कर रही है. नए संस्करण से मरीजों को 20/20 विजन (सामान्य दृष्टि) और ग्रे-स्केल इमेजेस यानी चेहरे जैसी प्राकृतिक तस्वीरें देखने की क्षमता मिलने की उम्मीद है.

अंधेपन के इलाज की नई राह
विशेषज्ञों का मानना है कि PRIMA जैसी तकनीकें भविष्य में स्टारगार्ट डिजीज जैसी आनुवंशिक बीमारियों में भी मदद कर सकती हैं. इस शोध ने साबित कर दिया है कि ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक से अंधेपन जैसी गंभीर समस्याओं पर भी विजय पाई जा सकती है.