
IIT बॉम्बे (IIT-B) के शोधकर्ताओं की टीम ने एक शोध में पाया कि बंद जगहों पर (enclosed area ) कोरोना के वायरस ज्यादा पाए जाते हैं. इन क्षेत्रों में जैसे वॉशरूम में वॉशबेसिन, दरवाजे के कोने, और फर्नीचर के आसपास का अध्ययन किया गया और ये पाया कि इन जगहों पर वायरस के संक्रमण का खतरा ज्यादा पाया जाता है. इस खोज के बारे में बात करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अब रेस्तरां, थिएटर, मॉल और स्कूल और कॉलेजों के साथ तमाम सार्वजनिक जगह तेजी से खुल रहे हैं.
कम हवा वाली जगहों पर कोरोना का खतरा ज्यादा
आईआईटी-बी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर कृष्णेंदु सिन्हा ने कहा कि , IIT बॉम्बे (IIT-B) की टीम ने नतीजे पर पहुंचने के लिए एक सार्वजनिक शौचालय में हवा के बहाव पर अध्ययन किया. आमतौर पर एक कमरे में हवा के बेहतर वेंटिलेशन के लिए ताजी हवा होना जरूरी है, लेकिन दरवाजे, खिड़कियां, और फर्निचर की वजह से कहीं न कहीं इस ताजी हवा पर असर पड़ता है. यानी ये ताजी हवाएं कोनों में फंस जाती है. तकनीकी रूप से इन्हें रीसर्कुलटी जोन कहा जाता है. अध्ययन के लिए कंप्यूटर सिमुलेशन का इस्तेमाल करके इन क्षेत्रों की पहचान की गई.
बंद जगहों से दूसरी खुली जगहों पर कोरोना फैलने का खतरा काफी ज्यादा
कृष्णेंदु सिन्हा ने आगे कहा कि अध्ययन के लिए, उन्होंने वॉशरूम का एक कंप्यूटर मॉडल बनाया और पाया कि वॉशबेसिन के ऊपर का क्षेत्र एक मृत क्षेत्र (dead zone)पाया गया . "वेंटिलेशन सिस्टम अक्सर प्रति घंटे (एसीएच) को ध्यान में रखते हुए हवा में बदलाव की जांच के लिए डिजाइन किए जाते हैं. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि हर कोने को ताजी हवा मिलती रहे, लेकिन इस सिमुलेशन में ये पाया गया कि कुछ कोनों को दूसरे खुले हिस्सों की तरह ताजी हवा नहीं मिलती है. और संक्रमित लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं, तो इन क्षेत्रों में ताजी हवा तेजी से पास करने की जरूरत है. ऐसे में इन मृत क्षेत्रों में संक्रमण की संभावना काफी ज्यादा है क्योंकि संक्रामक एरोसोल (कोविड-संक्रमित व्यक्ति द्वारा वॉशरूम का उपयोग करने के बाद) कमरे के दूसरे अच्छी तरह हवादार हिस्सों की तुलना में 10 गुना से ज्यादा वक्त तक रह पाता है.