
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग अपने खाने को लेकर पहले से कहीं ज्यादा सतर्क हो गए हैं. बाजार में उपलब्ध ढेर सारे खाद्य पदार्थों के बीच एक नया ट्रेंड तेजी से उभर रहा है - क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स. लेकिन आखिर ये क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स हैं क्या? क्यों लोग इनके दीवाने हो रहे हैं, और क्यों आर्टिफिशियल सामग्री को नकार रहे हैं?
क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स वो फूड प्रोडक्ट्स हैं, जिनमें नेचुरल, आसान और पहचानने वाली सामग्री का इस्तेमाल होता है. इनमें आर्टिफिशियल कलर, स्वाद, प्रिजर्वेटिव्स या ऐसी सामग्री नहीं होती, जिनके नाम पढ़कर आपका दिमाग चकरा जाए. आसान शब्दों में, क्लीन लेबल का मतलब है- पारदर्शिता. ये प्रोडक्ट्स आपको बताते हैं कि आपकी थाली में क्या है, कहां से आया है, और इसे कैसे बनाया गया है. उदाहरण के लिए, अगर आप एक पैकेट स्नैक्स खरीद रहे हैं, तो क्लीन लेबल प्रोडक्ट में आपको सामग्री की सूची में "माल्टोडेक्सट्रिन" या "मोनोसोडियम ग्लूटामेट" जैसे मुश्किल नामों की जगह "हल्दी", "नमक", "मूंगफली का तेल" जैसे परिचित नाम दिखेंगे.
क्यों हो रहा है क्लीन लेबल का बोलबाला?
आज के उपभोक्ता पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हैं. वे न सिर्फ स्वस्थ खाना चाहते हैं, बल्कि ये भी जानना चाहते हैं कि उनका खाना कहां से आ रहा है. एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 74% उपभोक्ता खाद्य पदार्थ खरीदते समय सामग्री की पारदर्शिता को जरूरी मानते हैं. लोग अब उन लंबी-चौड़ी सामग्री सूचियों से तंग आ चुके हैं, जिनमें आर्टिफिशियल केमिकल्स के नाम होते हैं.
कई स्टडी ने बताया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर और प्रिजर्वेटिव्स, जैसे नाइट्रेट्स और नाइट्राइट्स, सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ आर्टिफिशियल स्वीटनर आंतों के माइक्रोबायोम को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जबकि प्रोसेस्ड मीट में इस्तेमाल होने वाले प्रिजर्वेटिव्स को कोलोरेक्टल कैंसर से जोड़ा गया है. इसके अलावा, लोग अब ये जानना चाहते हैं कि उनके खाने में क्या है. वे उन ब्रांड्स को पसंद करते हैं, जो अपनी सामग्री और उत्पादन प्रक्रिया के बारे में खुलकर बात करते हैं.
बाजार पर क्या है असर?
क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स की मांग ने फूड इंडस्ट्री में एक बड़ा बदलाव ला दिया है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक अनुमान के अनुसार, क्लीन लेबल सामग्री का बाजार 2029 तक 69.3 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा. प्राकृतिक खाद्य प्रिजर्वेटिव्स का बाजार भी तेजी से बढ़ रहा है, जो 2023 में 0.5 बिलियन डॉलर था और 2033 तक 1.1 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
इसके अलावा, स्वस्थ स्नैक्स जैसे वेजी चिप्स, ड्राय फ्रूट्स और ग्रेनोला बार्स की मांग में भी भारी उछाल देखा जा रहा है. 2029 तक हेल्दी स्नैक मार्केट के 152 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. प्लांट-बेस्ड फूड्स और फंक्शनल फूड्स (जैसे दिमागी स्वास्थ्य के लिए एंटीऑक्सिडेंट्स और ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थ) भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं.
भारत में क्लीन लेबल
भारत में भी क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स की मांग तेजी से बढ़ रही है. 2032 तक भारत का प्राकृतिक और जैविक खाद्य बाजार 8.9 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. युवा पीढ़ी (जेन जेड और मिलेनियल्स) तो इनके लिए ज्यादा कीमत चुकाने को भी तैयार है, लेकिन अब बुजुर्ग पीढ़ी भी इस ट्रेंड में शामिल हो रही है. 90% उपभोक्ता कम से कम कुछ समय के लिए स्वस्थ खाना चाहते हैं, और 63% लोग ज्यादातर समय स्वस्थ भोजन को प्राथमिकता देते हैं.
क्लीन लेबल प्रोडक्ट्स सिर्फ एक ट्रेंड नहीं हैं, बल्कि ये एक ऐसी जीवनशैली का हिस्सा बन रहे हैं, जो स्वास्थ्य, पारदर्शिता और स्थिरता पर जोर देती है. ये प्रोडक्ट्स आपको न सिर्फ स्वस्थ रखते हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी बेहतर हैं. उदाहरण के लिए- आलू के चिप्स की जगह अब लोग रागी चिप्स, काले चने के स्नैक्स या खजूर से बने मिठाई को चुन रहे हैं. इसके अलावा, कई लोग अब घर पर ही पेस्टीसाइड-मुक्त सब्जियां उगा रहे हैं, ताकि वे पूरी तरह प्राकृतिक भोजन खा सकें. दिमागी स्वास्थ्य के लिए एंटीऑक्सिडेंट्स और ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थ तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं.