
उत्तर भारत की बात करें तो बारिश ने फिलाहल पूरी तरह से दस्तक नहीं दी है. लोगों को अभी भी तेज़ धूप और गर्मी को सहन करना पड़ रहा है. कुछ दिन पहले तक तो बिना एसी के लोगों से घर में रहा नहीं जाता था. तो आप सोच ही सकते हैं कि बाहर का आलम क्या होता होगा.
गर्मी के मौसम में कई बार हम देखते-सुनते हैं कि कोई गर्मी के कारण बेहोश हो गया. अंग्रेजी में इसे हीटस्ट्रोक कहा जाता है. अगर कोई गर्मी की वजह से बेहोश होता तो उसके आस-पास वाले लोग भी बेहोश हो जाने चाहिए, क्योंकि वह भी उसी गर्मी में हैं. लेकिन ऐसा होता तो है. तो आखिर हीटस्ट्रोक क्या होता है और इससे जुड़े कई पहलुओं को डिकोड करते हैं.
कितनी गर्मी बर्दाश्त कर सकता है कोई
बाहर का तापमान, इंसान के शरीर के अंदर के तापमान को बढ़ाता है. इससे शरीर को ठंडा रखने की जो प्रक्रिया है, वह फेल होने होने लगती है. जिसके बाद इंसान को मेडिकल हेल्प की जरूरत पड़ती है.
अगर बाहरी तापमान 50 डिग्री के करीब पहुंच जाता है, लेकिन कोई शख्स खुद को अच्छे से हाइड्रेट रखता है, तो कोई परेशानी की बात नहीं हैं. पर अगर किसी का शरीर हाइड्रेट नहीं और बाहरी तापमान के कारण उसके शरीर का तापमान बढ़ जाता है. तो वह हीटस्ट्रोक का शिकार हो जाएगा. जिसमें वह बेहोश हो जाएगा और मेडिकल हेल्प की जरूरत पड़ेगी.
क्या होता है हीटस्ट्रोक
एक इंसान के शरीर का अंदरूनी नॉर्मल तापमान 36.5-37.5 डिग्री के बीच रहता है. लेकिन अगर यह 40 डिग्री के पास पहुंचने लगे को फिक्र की बात होती है. 40 डिग्री के तापमान पर जब अंदरूनी तापमान आ जाता है तो इंसान हीटस्ट्रोक का शिकार हो जाता है. ऐसे में वह बेहोश हो जाता है. जिसके बाद उसे मेडिकल हेल्प की जरूरत पड़ती है.
क्या बाहर और अंदरूनी तापमान का कुछ लेना-देना है?
आमतौर पर बाहर का तापमान बढ़ने से इंसान के शरीर का अंदरूनी तापमान पड़ता है. जिसके बाद हीटस्ट्रोक हो जाता है. लेकिन कई बार इंसान कई ऐसी बीमारी का भी शिकार हो जाता है. जिसमें बाहर का तापमान तो नॉर्मल होता है, लेकिन उसके शरीर के अंदर का तापमान ज्यादा होता है. मेडिकल हेल्प की जरूरत उसे तब भी होती है, लेकिन वह स्थिति हीटस्ट्रोक नहीं कहलाती, क्योंकि अंदर का तापमान बाहर के तापमान के कारण नहीं बढ़ा बल्कि किसी बीमारी के कारण बढ़ा है.