
अमेरिका की रहने वाली अकाइशा और उनके पति बिली कडरली ने करीब 30 साल पहले नौकरी छोड़ दी थी ताकि वे पूरी दुनिया घूम सकें. यह कोई छुट्टी नहीं थी, बल्कि उनकी ज़िंदगी का तरीका बन गया था. कडरली दंपती ने FIRE (Financial Independence, Retire Early) मूवमेंट अपनाया था। उन्होंने शेयर मार्केट में निवेश किया और सस्ती जगहों पर रहकर पैसे बचाए.
हालांकि, जब अकाइशा को तीसरे स्टेज का ब्रेस्ट कैंसर डिटेक्ट हुआ तो उनके सामने सवाल था कि क्या वे अमेरिका लौटकर महंगा इलाज करवाएं या विदेशों में सस्ते इलाज का रास्ता चुनें? उन्होंने विदेश में इलाज कराने का फैसला किया. उन्होंने थाईलैंड में टेस्ट करवाए, वियतनाम में फॉलो-अप किया, मैक्सिको में सर्जरी और रेडिएशन लिया और कुछ समय वेस्ट इंडीज में आराम किया.
इस सबपर कुल खर्च सिर्फ18,807 डॉलर हुआ, जबकि अमेरिका में यही इलाज इंश्योरेंस के बावजूद 100,000 डॉलर से ज्यादा का हो सकता था. उनका कहना है कि अमेरिका में इलाज कराना महंगा है और इसमें काफी समय भी जाता है. इसलिए उन्होंने 'मेडिकल टूरिज्म' को चुना और अब 72 साल की उम्र में वह फिर से घूमना शुरू कर रहे हैं.
क्या होता है 'मेडिकल टूरिज्म'
अब सवाल है कि मेडिकल टूरिज्म क्या है? मेडिकल टूरिज्म को हेल्थ टूरिज्म भी कहा जाता है. मेडिकल टूरिज्म का मतलब है कि लोग किसी दूसरे देश में इलाज करवाने के लिए सफर करते हैं. यह चलन COVID-19 महामारी के बाद तेजी से बढ़ा है. आने वाले 10 सालों में यह इंडस्ट्री हर साल 15–25% की दर से बढ़ने की उम्मीद है.
पहले ऐसा माना जाता था कि गरीब और कम विकसित देशों के लोग बेहतर इलाज पाने के लिए अमीर देशों में जाते हैं. कई बार मरीज उन देशों में भी जाते हैं जो किसी खास बीमारी या इलाज में स्पेशलिस्ट होते हैं. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. अब अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित देशों के लोग भी सस्ते इलाज के लिए भारत, थाईलैंड, मेक्सिको जैसे देशों में जाने लगे हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि उनके अपने देश में इलाज बहुत महंगा हो गया है.
तेजी से बढ़ रहा है मेडिकल टूरिज्म
जिन देशों में सरकारी इलाज की सुविधा नहीं है (जैसे अमेरिका), वहां के लोग इलाज के लिए हजारों डॉलर खर्च करते हैं. ऐसे में, अगर वे किसी और देश में जाकर सस्ता और अच्छा इलाज पा सकते हैं, तो यह उनके लिए एक अच्छा विकल्प बन जाता है. यह मेडिकल टूरिज्म उन लोगों के लिए खास तौर पर फायदेमंद है जिनके पास मेडिकल इंश्योरेंस नहीं है, बहुत कम है, या जिनका इंश्योरेंस लिमिट खत्म हो चुका है.
आज एक बहुत बड़ा और तेजी से बढ़ता हुआ इंडस्ट्री बन चुका है जो पूरी दुनिया में फैला हुआ है. साल 2020 में पूरी दुनिया में हेल्थ टूरिज्म की वैल्यू करीब 54 अरब डॉलर थी. लेकिन अंदाजा है कि साल 2027 तक यह चार गुना बढ़कर 207 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगी. हर साल लाखों लोग इलाज के लिए दूसरे देशों की यात्रा कर रहे हैं, और यह चलन बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है.
कौन-से देश हैं बेस्ट डेस्टिनेशन
अमेरिका मेडिकल टूरिज्म का सबसे बड़ा बाजार है. वहां इलाज का खर्च बहुत ज्यादा है, इसलिए हर साल 20 लाख से ज्यादा अमेरिकी नागरिक इलाज के लिए विदेश जाते हैं. ये संख्या दुनिया के कुल मेडिकल टूरिस्ट्स का लगभग 9% है. खर्च की तुलना करें तो फर्क साफ है, उदाहरण के लिए, अमेरिका में हार्ट वाल्व सर्जरी की कीमत लगभग 150,000 अमेरिकी डॉलर होती है, लेकिन वही इलाज भारत में सिर्फ 9,500 अमेरिकी डॉलर में हो जाता है.
अब दुनियाभर में बहुत सी कंपनियां हैं जो मेडिकल टूरिज्म की सुविधा देती हैं. कई बार वे मरीज को उसके अपने देश में पहले कंसल्टेशन देती हैं, फिर इलाज के लिए विदेश ले जाती हैं. इलाज के दौरान मरीज को आसानी और लग्जरी सुविधाएं मिलती हैं. कुछ कंपनियां मरीज के देश के डॉक्टरों को भी साथ लाने की सुविधा देती हैं. इलाज की कीमत में अक्सर फ्लाइट, होटल, और कुछ घूमने का समय भी शामिल होता है.
अगर टॉप डेस्टिनेशन्स की बात करें तो मेडिकल टूरिज्म इंडेक्स 2020-21 के हिसाब से देश के वातावरण, मेडिकल टूरिज्म की लागत और मेडिकल सर्विसेज की क्वालिटी के आधार पर कनाडा मेडिकल टूरिज्म के लिए टॉप डेस्टिनेशन है. इसके बाद सिंगापुर, जापान, स्पेन, यूके, दुबई, कोस्टा रिका, इजरायल, अबू धाबी और फिर भारत का नंबर आता है.
भारत में ज्यादातर कार्डियक ट्रीटमेंट्स के लिए लोग आते हैं. इसके अलावा, ऑर्थोपेडिक सर्जरी, कैंसर, कॉस्मैटिक, डेंटल और IVF व फर्टिलिटी ट्रीटमेंट्स के लिए मेडिकल टूरिस्ट्स भारत आते हैं. भारत में वीज़ा प्रोसेस आसान है, यहां इलाज जल्दी होता है, वर्ल्ड क्लास हॉस्पिटल्स हैं, और स्किल्ड डॉक्टर्स व स्टाफ उपलब्ध है.