
आज के तेज़ रफ्तार और तनाव भरे लाइफस्टाइल में युवाओं की प्राथमिकताएं तेजी से बदल रही हैं. अब करियर की दौड़ में आगे बढ़ने के साथ-साथ युवा अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत को लेकर भी सजग हो रहे हैं. जिम, योग, मेडिटेशन और हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाने के साथ अब वे वर्कप्लेस पर भी काम करने के पारंपरिक तौर-तरीकों में बदलाव ला रहे हैं.
खासतौर पर मल्टीनेशनल कंपनियों (MNCs) और कॉर्पोरेट जगत में काम करने वाले युवाओं में अब “पोमोडोरो तकनीक” काफी लोकप्रिय हो रही है. यह तकनीक न सिर्फ उनके काम को अधिक प्रभावी बना रही है, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में भी मददगार साबित हो रही है.
क्या है पोमोडोरो तकनीक?
पोमोडोरो तकनीक एक विशेष टाइम मैनेजमेंट विधि है जिसमें काम को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर किया जाता है. इसमें इंसान लगभग 25 मिनट तक पूरी तरह एकाग्र होकर काम करता है और फिर पांच मिनट का छोटा ब्रेक लेता है. इसे एक “पोमोडोरो सत्र” (Pomodoro Session) कहा जाता है.
इस तकनीक को पोमोडोरो नाम इसलिए दिया गया क्योंकि इसकी खोज करने वाले इटली के फ्रांसेस्को चिरिलो ने अपने शुरुआती प्रयोग में टमाटर जैसे दिखने वाले एक किचन टाइमर का इस्तेमाल किया था. टमाटर को इटालियन में पोमोडोरो कहा जाता है.
इस तकनीक में चार सत्रों के बाद थोड़ा लंबा ब्रेक लिया जाता है. इस प्रक्रिया को दिनभर दोहराया जाता है. यह तकनीक भले ही चिरिलो ने 1980 के दशक में विकसित की थी, लेकिन आज के डिजिटल युग में इसका प्रचलन युवाओं के बीच और भी तेजी से बढ़ रहा है.
21वीं सदी में कैसे आ रहा काम 'पोमोडोरो'
जयपुर के सीतापुरा में स्थित एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले अविनाश शर्मा बताते हैं कि पहले लगातार घंटों तक कंप्यूटर पर बैठकर काम करने से उन्हें मानसिक थकान और फोकस की कमी महसूस होती थी. लेकिन जब उन्होंने पोमोडोरो तकनीक को अपनाया, तो उन्हें बड़ा बदलाव देखने को मिला.
वह बताते हैं कि अब वे हर 25 मिनट के बाद पांच मिनट का ब्रेक लेते हैं. इस दौरान वह वॉक करते हैं, स्ट्रेचिंग करते हैं या कभी-कभी हल्के फुल्के मनोरंजक काम करते हैं. इससे उनका फोकस बना रहता है, थकान कम होती है और काम की गुणवत्ता में भी सुधार हो रहा है.
इस तकनीक की उपयोगिता सिर्फ ऑफिस तक सीमित नहीं है. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे कई विद्यार्थी भी इसका फायदा उठा रहे हैं. 27 वर्षीय विशाल बताते हैं कि उन्हें पहले लगातार लंबे समय तक पढ़ने में परेशानी होती थी. बोरियत और थकावट के चलते पढ़ाई में मन नहीं लगता था.
पोमोडोरो तकनीक को अपनाने के बाद अब वह 25-25 मिनट के फोकस्ड स्टडी सेशन करते हैं और छोटे-छोटे ब्रेक लेते हैं. इससे उनका मन पढ़ाई में लगा रहता है और वह ज्यादा प्रोडक्टिव महसूस करते हैं. उनके अनुसार यह न सिर्फ एक टाइम मैनेजमेंट टूल है, बल्कि एक मानसिक रूप से राहत देने वाला अभ्यास भी है.
क्या कहते हैं डॉक्टर?
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अखिलेश जैन का मानना है कि इस तरह की तकनीकें आधुनिक वर्क कल्चर में बेहद जरूरी होती जा रही हैं. लंबे समय तक लगातार काम करने से मानसिक थकान, चिड़चिड़ापन, और स्ट्रेस बढ़ता है. यह बाद में गंभीर मानसिक समस्याओं का कारण बन सकता है.
अगर समय-समय पर छोटे ब्रेक लिए जाएं तो दिमाग को आराम मिलता है और इंसान तरोताजा महसूस करता है. ब्रेक के दौरान सहकर्मियों से हल्की-फुल्की बातचीत करना भी टीम भावना को मज़बूत करता है और वर्क एनवायरनमेंट को सकारात्मक बनाए रखता है.
पोमोडोरो तकनीक की एक और बड़ी खासियत यह है कि यह व्यक्ति को “मल्टीटास्किंग” से बचाकर “सिंगल टास्क फोकस” की ओर ले जाती है. यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि एक ही समय पर कई कार्य करने की कोशिश करने से न केवल काम की क्वालिटी प्रभावित होती है, बल्कि दिमाग पर भी ज्यादा दबाव पड़ता है.
क्यों खास है यह तकनीक?
मोडोरो तकनीक इंसान को एक समय में एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करती है. इससे काम जल्दी और बेहतर तरीके से पूरा होता है. वर्क फ्रॉम होम कल्चर के बाद से ऑफिस और घर की सीमाएं धुंधली हो गई हैं. ऐसे में काम का समय बढ़ना आम हो गया है. कई बार बिना ब्रेक के 8-10 घंटे तक काम करते रहना शरीर और मन दोनों पर बुरा असर डालता है.
जो युवा इस तकनीक को अपनाते हैं, वे टाइम मैनेजमेंट के साथ-साथ खुद की देखभाल करना भी सीख रहे हैं. उनकी सोच अब केवल “वर्क हार्ड” तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि वे “वर्क स्मार्ट” की ओर बढ़ रहे हैं. वे समझते हैं कि निरंतरता और संतुलन ही सफलता की असली कुंजी है.
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पोमोडोरो तकनीक आज की तेज रफ्तार दुनिया में एक सरल लेकिन प्रभावी उपाय बनकर उभर रही है. यह न केवल युवाओं को बेहतर कार्य प्रबंधन सिखा रही है, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ बनाए रखने में सहायक सिद्ध हो रही है. आने वाले समय में इस तरह की तकनीकों का प्रयोग वर्कप्लेस की मुख्यधारा का हिस्सा बन सकता है, जो कि वर्क कल्चर में सकारात्मक परिवर्तन की दिशा में एक अहम कदम होगा.