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Symptoms Of Kidney Disease: शरीर के लिए क्या काम करती है किडनी? क्या हैं इसकी बीमारी के लक्ष्ण... जानें सबकुछ

किडनी हमारे शरीर का एक अहम अंदरूनी अंग है. यह शरीर से टॉक्सिन्न को बाहर करने का काम करती है. ऐसे में इस अहम अंग को होने वाली किसी भी बिमारी से शुरुआती लक्षणों को पहचानना जरूरी हो जाता है.

किडनी शरीर का प्राकृतिक फिल्टर है जो खून से अपशिष्ट और अतिरिक्त पानी-खनिज हटाकर पेशाब बनाती, हार्मोन बनाती, विटामिन D सक्रिय करती और रक्तचाप-संतुलन संभालती है. किडनी खराब होने के शुरुआती चरणों में अक्सर लक्षण नहीं दिखते, पर आगे चलकर सूजन, थकान, पेशाब में बदलाव, खुजली, सांस फूलना, भूख कम होना और झागदार पेशाब जैसे संकेत उभरते हैं.

किडनी क्या करती है

किडनी खून को छानकर शरीर से विषैले अपशिष्ट (जैसे यूरिया, क्रिएटिनिन) और अतिरिक्त पानी बाहर निकालती है, जिससे पेशाब बनता है और आंतरिक संतुलन बना रहता है. यह इलेक्ट्रोलाइट्स और अम्ल-क्षार संतुलन नियंत्रित करती है, जिससे सोडियम‑पोटैशियम स्तर, नसों‑मांसपेशियों की क्रियाएं और पीएच स्थिर रहते हैं. किडनी एरिथ्रोपोयटिन जैसे हार्मोन बनाकर लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करती है, विटामिन D को सक्रिय कर हड्डियों और मांसपेशियों को सहारा देती है, और रेनिन‑एंजियोटेंसिन प्रणाली के माध्यम से रक्तचाप नियंत्रित करती है. सामान्य स्थिति में हर मिनट काफी मात्रा में रक्त किडनी से होकर फ़िल्टर होता है, जिससे निरंतर डिटॉक्सिफिकेशन और द्रव‑संतुलन संभव होता है.

किडनी के मुख्य कार्य

किडनी का प्रमुख कार्य खून की शुद्धि और पेशाब बनाकर अपशिष्ट का निष्कासन है, जिसमें ग्लोमेरुलस एक सूक्ष्म “छन्नी” की तरह कार्य करता है. यह शरीर में पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स का संतुलन बनाए रखती है, अतिरिक्त पानी न निकाल पाने पर शरीर में सूजन जमा हो सकती है. किडनी अम्ल‑क्षार संतुलन नियंत्रित करती है; पोटैशियम‑सोडियम में गड़बड़ी हृदय, मस्तिष्क और स्नायु तंत्र पर गंभीर असर डाल सकती है. इसके अतिरिक्त किडनी हार्मोन निर्माण, विटामिन D सक्रियण और रक्तचाप नियंत्रण जैसे होमियोस्टैटिक कार्य करती है, जो पूरे शरीर की समग्र सेहत के लिए अनिवार्य हैं.

किडनी रोग के प्रकार

किडनी की खराबी तीव्र (एक्यूट) और दीर्घकालिक (क्रोनिक) रूप में दिख सकती है—तीव्र में अचानक पेशाब घटना, सूजन और वजन बढ़ना जैसे बदलाव जल्दी दिखते हैं, जबकि क्रोनिक में क्षति धीरे‑धीरे बढ़ती है और देर से लक्षण प्रकट होते हैं. भारत सहित दुनिया भर में क्रोनिक किडनी रोग के मामले बढ़ रहे हैं; यह सार्वजनिक स्वास्थ्य की बड़ी चिंता है और कई बार देर से पकड़ा जाता है. क्रोनिक किडनी रोग चरणों में बांटा जाता है, जहां प्रारंभिक चरणों में कार्य लगभग सामान्य रह सकता है पर सूक्ष्म संकेत जैसे पेशाब में प्रोटीन या रक्त, तथा इमेजिंग में क्षति दिखाई दे सकती है.

शुरुआती संकेत और बदलाव

किडनी रोग के शुरुआती चरण अक्सर बिना लक्षण रहते हैं, इसलिए नियमित जांच के बिना पहचान मुश्किल होती है. प्रारंभिक संकेतों में पेशाब में प्रोटीन की वजह से झागदार पेशाब, रात में बार‑बार पेशाब आना, और हल्की सूजन शामिल हो सकती है, जो आगे चलकर बढ़ सकती है. कुछ लोगों में उच्च रक्तचाप, मूत्र मार्ग संक्रमण की आवृत्ति, या इमेजिंग में संरचनात्मक परिवर्तन शुरुआती सुराग देते हैं.

बढ़ते रोग के लक्षण

जैसे‑जैसे किडनी की कार्यक्षमता घटती है, थकान, कमजोरी, भूख में कमी, मतली‑उल्टी, त्वचा में खुजली और मांसपेशियों में ऐंठन दिखाई दे सकती है. पैरों‑टखनों‑हाथों में सूजन, चेहरा फूला हुआ दिखना, ध्यान‑एकाग्रता में कमी, और सांस फूलना (फेफड़ों में तरल जमा होने से) रोग की प्रगति का संकेत होते हैं. पेशाब में बदलाव—बहुत ज्यादा या बहुत कम आना, रात में बार‑बार उठना, पेशाब में खून या स्थायी झाग—किडनी की बिगड़ती छानने की क्षमता दर्शाते हैं.

जांच और पुष्टि

किडनी स्थिति जानने के लिए रक्त में ईजीएफआर, क्रिएटिनिन‑यूरिया, और पेशाब में प्रोटीन‑खून की जांच प्रमुख हैं, जिन्हें नियमित रूप से जोखिम वाले व्यक्तियों में करवाना चाहिए. अक्सर प्रारंभिक चरण में रोग केवल नियमित ब्लड‑यूरिन जांच में पकड़ा जाता है, इसलिए मधुमेह, उच्च रक्तचाप या पारिवारिक इतिहास वाले व्यक्तियों में समय‑समय पर स्क्रीनिंग जरूरी है. इमेजिंग (अल्ट्रासाउंड/सीटी/एमआरआई) और जरूरत पर बायोप्सी संरचनात्मक क्षति का पता लगाने में सहायक होती है, खासकर शुरुआती चरणों में जब लक्षण नहीं होते.

जोखिम कारक और कारण

क्रोनिक किडनी रोग के आम कारणों में मधुमेह, उच्च रक्तचाप और ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस प्रमुख हैं, जबकि तीव्र क्षति में निर्जलीकरण, दवाओं/जहर का प्रभाव, मूत्र मार्ग अवरोध और संक्रमण शामिल हो सकते हैं. लंबे समय तक अनियंत्रित उच्च रक्तचाप और मधुमेह किडनी की सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर धीरे‑धीरे फिल्टरिंग क्षमता कम करते हैं, जिससे समय के साथ लक्षण उभरते हैं.