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Multitasking करना कोई खूबी नहीं, बल्कि है दिगाम पर जोर डालने का नाम... जानें इसके नुकसान

रिसर्च का कहना कि मल्टीटास्किंग है दिमाग के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक. कम होती है याद्दाश्त और फोकस करने की क्षमता. लेकिन किया जा सकता है मानसिक स्वास्थ्य को ठीक.

नौकरी के लिए जब भी आप कभी इंटरव्यू देने जाते हैं, आप एक बात तो जरूर करते होंगे, कि आप मल्टीटास्किंग इंसान है. ऐसा सुन सामने वाला भी सोचता है कि आप एक ही समय पर कई चीज़ों पर ध्यान दे सकते हैं. लेकिन इस मल्टीटास्किंग शब्द का आपके जीवन पर गहरा असर पड़ता है.

केवल नौकरी ही नहीं आप अपने जीवन में भी कई काम एकसाथ करने की कोशिश करते है. जैसे टीवी देखते-देखते फोन चलाना. या पढ़ाई करते समय फोन पर लेक्चर सुनना और साथ ही साथ नोट्स बनाते जाना. सुनने में तो यह लगता है कि आपमें कई काम एकसाथ करने की क्षमता है. लेकिन इसका असर आपके दिमाग पर काफी गहरा पड़ता है.

गिरता है मानसिक स्वास्थ्य
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार इंसानी दिमाग मल्टीटास्किंग के लिए बना ही नहीं है. वह इस तरह बना ही नहीं कि कई काम एक साथ कर सके. मल्टीटास्किंग के दौरान इंसानी दिमाग को एक चीज़ से दूसरी चीज़ पर फोकस करते रहना पड़ता है. जिसका असर यह होता है कि आपके काम में गड़बड़ी होने की ज्यादा संभावना होती रहती है. इसके अलावा इससे दिमाग पर स्ट्रेस पड़ता और कार्यक्षमता कमजोर होती है.

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वहीं स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि जो लोग मल्टीटास्किंग करते हैं वह अपने काम में मुश्किलों का सामना करते हैं. साथ ही वह काम के दौरान काम से गैरजरूरी चीज़ को भी दूर नहीं कर पाते हैं. जिसका असर होता है कि मेमोरी कमजोर हो जाती है. और कार्य पर फोकस करने की क्षमता भी कम हो जाती है. 

कैसे स्वस्थ रहेगा मानसिक स्वास्थ्य
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अनुसार जिन लोगों की याद्दाश्त कमजोर है उन्हें अपनी डाइट में बदलाव की जरूरत है. उन्हें डाइट में फल, ताज़ा सब्जियां, नट्स, मछली, पोलट्री और डेयरी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें. ऐसा करने से आपके मानसिक स्वास्थ्य के कमजोर होने के चांस काफी हद तक कमजोर हो जाते हैं.

शारीरिक गतिविधी में हों शामिल
आमतौर पर शारीरिक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल करने की सलाह दी जाती है. ऐसा करने से आपका स्ट्रेस लेवल भी कम होता है. साथ ही लगातार मेडिटेशन करने से दिमाग की इंफोरमेशन को प्रोसेस और कार्य में फोकस करने की क्षमता बढ़ी है.

नींद है बेहद जरूरी
कई लोग होते है जो रात-रात भर जागते है और दिन में सोते हैं. या फिर कम समय के लिए सोते है. तो उनके लिए बता दें कि दिन में सोने से रात की नींद पूरी नहीं होती और एक स्वस्थ जीवन के लिए कम से कम 7-8 घंटे की नींद लेना जरूरी होता है.

डिजिटल स्क्रीन का दखल
वर्कप्लेस हो या पर्सनल प्लेस. लोगों का डिजिटल स्क्रीन टाइम इतना बढ़ गया है कि इससे उनकी आंखों पर काफी गहरा असर पड़ता है. साथ ही यह उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बिलकुल ठीक नहीं.