World Stroke Day
World Stroke Day विश्व स्ट्रोक दिवस के मौके पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के आंकड़ों ने एक बड़ा खुलासा किया है. लकवा (स्ट्रोक) आने के पहले 28 दिन सबसे ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं. ICMR के पॉपुलेशन बेस्ड स्ट्रोक रजिस्ट्री (PBSR) के अनुसार, लकवे से होने वाली कुल मौतों में से 92.9 प्रतिशत मरीज शुरुआती 28 दिनों में ही दम तोड़ देते हैं, जबकि केवल 7.1 प्रतिशत मरीजों की मौत 28 दिन बाद होती है.
ICMR का 5 राज्यों में चल रहा बड़ा प्रोजेक्ट-
यह प्रोजेक्ट देश के पांच राज्यों के पांच शहरों में चल रहा है. राजस्थान के कोटा, ओडिशा के कटक, असम के कछार, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली और उत्तर प्रदेश के वाराणसी. इन पांचों सेंटर्स में स्ट्रोक मरीजों का आंकलन किया जा रहा है, ताकि मौत के पैटर्न और रिस्क फैक्टर्स को समझा जा सके. वर्ष 2018 से 2024 तक कोटा मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी विभाग में इस प्रोजेक्ट के तहत 8760 मरीजों का पंजीयन किया गया.
इनमें से 1249 मरीजों की मृत्यु दर्ज हुई, जिसमें से 1160 मरीजों की मौत लकवा आने के 28 दिन के भीतर हो गई, जबकि 89 मरीज 28 दिन बाद दम तोड़ बैठे. स्पष्ट है कि लकवा आने के शुरुआती चार सप्ताह इलाज और सावधानी के लिहाज से सबसे नाजुक समय है.
कोटा में सबसे कम मृत्यु दर-
ICMR के अध्ययन में कोटा ने राहत भरा प्रदर्शन किया है. पांचों राज्यों के डेटा में सबसे कम मृत्यु दर कोटा में दर्ज हुई है.
कटक (ओडिशा): 16.7%
कछार (असम): 41.2%
तिरुनेलवेली (तमिलनाडु): 17.8%
वाराणसी (उत्तर प्रदेश): 37.9%
कोटा (राजस्थान): 12.2%
यह उपलब्धि कोटा मेडिकल कॉलेज की स्ट्रोक टीम की सक्रियता और बेहतर मॉनिटरिंग को दर्शाती है. कोटा के स्ट्रोक रजिस्ट्री डेटा में लकवा के मुख्य जोखिम कारक इस प्रकार सामने आए हैं.
हाइपरटेंशन (उच्च रक्तचाप): 49.8%
डायबिटीज: 23.9%
तंबाकू का सेवन (चबाने वाले): 28.4%
इस रिपोर्ट के अनुसार कोटा में प्रति एक लाख लोगों में औसतन 117 लोगों को लकवा हुआ.
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं कम-
पुरुषों की तुलना में महिलाओं में यह संख्या लगभग आधी रही. जहां पुरुष मरीजों का प्रतिशत 62% (5434) रहा, वहीं महिलाओं का 38% (3326).
60 साल से कम उम्र के लोगों में भी बढ़े केस-
रजिस्ट्री के अनुसार अब लकवा केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं है. 60 वर्ष से कम आयु के मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है. कुल 8760 मरीजों में से सबसे ज्यादा 75 साल से अधिक उम्र के मरीज लकवा के शिकार हुए हैं. हालांकि कम उम्र के लोगों के लिए भी घातक है.
18–29 वर्ष के मरीज: 3.1%
30–44 वर्ष के मरीज: 11.6%
45–59 वर्ष के मरीज: 28%
60–74 वर्ष के मरीज: 38.2%
75 वर्ष से अधिक के मरीज: 19.1%
इससे साफ है कि तनाव, अनियमित जीवनशैली और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियाँ युवाओं में भी स्ट्रोक के खतरे को बढ़ा रही हैं.
चलाया जा रहा जागरूकता अभियान-
विश्व स्ट्रोक दिवस की पूर्व संध्या पर कोटा मेडिकल कॉलेज में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर सीनियर प्रोफेसर डॉ. विजय सरदाना ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया कि इस साल की थीम “Every Minute Matters” (हर मिनट मायने रखता है) रखी गई है. उन्होंने कहा कि अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) स्ट्रोक की पहचान, जागरूकता और पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. AI आधारित चैटबॉट्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म के ज़रिए लोग अपनी भाषा में लकवे के लक्षण, जोखिम और बचाव की जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी व्यक्ति को बस टाइप या वॉइस कमांड से सवाल पूछना होता है, और तुरंत जानकारी मिल जाती है.
ब्रेन में एक बार नुकसान हुआ तो स्थायी- डॉ. विजय
डॉ. विजय सरदाना ने कहा कि लकवा के मामलों में 'समय' सबसे बड़ा फैक्टर है. ब्रेन शरीर का ऐसा अंग है, जो खुद को रीजनरेट नहीं कर सकता. यानी शरीर के दूसरे अंगों में कोशिकाएं दोबारा बन जाती हैं, लेकिन ब्रेन में एक बार नुकसान हुआ तो उसकी भरपाई असंभव है.
इसलिए लकवा आने के पहले चार घंटे इलाज के लिहाज से ‘गोल्डन पीरियड’ माने जाते हैं.
उन्होंने बताया कि कोटा में चल रहा ICMR स्ट्रोक प्रोजेक्ट पूरे शहरी क्षेत्र को कवर करता है और उसकी मॉनिटरिंग सीधे आईसीएमआर स्तर से होती है.
रिपोर्ट साफ तौर पर बताती है कि स्ट्रोक आने के बाद शुरुआती 28 दिन बेहद नाजुक होते हैं. यदि मरीज को समय पर इलाज मिले और जोखिम कारकों जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और तंबाकू सेवन पर नियंत्रण रखा जाए, तो मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है.
(चेतन गुर्जर की रिपोर्ट)
ये भी पढ़ें: