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World Thalassemia Day: हर साल 8 मई को मनाया जाता है विश्व थैलेसीमिया दिवस, जानिए क्या है इस बीमारी के लक्षण और बचाव

थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार यानी क्रोनिक ब्लड डिसऑर्डर है. यह एक आनुवांशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के आरबीसी में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है. इस बीमारी से गंभीर रूप में पीड़ित होने पर नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है.

World Thalassemia Day (photo symbolic) World Thalassemia Day (photo symbolic)
हाइलाइट्स
  • एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल 10,000 बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी के साथ होते हैं पैदा 

  • पांच साल के बच्चों का हीमोग्लोबिन 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर से होना चाहिए ज्यादा 

हर साल 8 मई को वर्ल्ड थैलेसीमिया डे मनाया जाता है. लोगों को जागरूक करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान और थैलेसीमिया एजुकेशन के माध्यम से लोगों को स्वस्थ, लंबा और प्रोडक्टिव जीवन जीने में मदद करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है. वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2023 की थीम है-जागरूक रहें, शेयर करना, देखभाल: थैलेसीमिया केयर गैप को पाटने के लिए शिक्षा को मजबूत करना.

विरासत में मिलती है यह बीमारी
थैलेसीमिया की बीमारी हमें विरासत के रूप में माता-पिता से मिलती है. ये इनहेरिट किया हुआ ब्लड डिसआर्डर है. थैलेसीमिया के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य से कम हो जाता है. हमेशा थकान महसूस करने के अलावा गंभीर परिस्थितियों में यह जानलेवा भी हो जाता है. डॉक्टरों के मुताबिक यदि हल्का थैलेसीमिया है, तो व्यक्ति को उपचार की आवश्यकता नहीं हो सकती है. गंभीर रूप में पीड़ित होने पर नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है. थकान से निपटने के लिए हेल्दी फूड और नियमित एक्सरसाइज को अपनाया जा सकता है.

थैलेसीमिया के प्रकार 
माइनर: थैलेसीमिया माइनर से प्रभावित लोगों को देखकर नहीं पहचान सकते हैं कि यह बीमारी उनमें है. इसमें व्यक्ति को केवल हल्का एनीमिया होता है.
इंटरमीडिया: अगर कोई थैलेसीमिया इंटरमीडिया है तो उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन की कभी-कभी जरूरत पड़ती है लेकिन उनके शारीरिक विकास पर असर पड़ता है.
मेजर: थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित मरीज को एक महीने या उससे कम दिनों में स्थिति के अनुसार ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है.

खून की होने लगती है कमी
बच्चों में जन्म से ही यह रोग मौजूद रहता है. लेकिन तीन महीने बाद इस रोग की पहचान हो पाती है. एक्सपर्ट्स के अनुसार इस बीमारी के दौरान बच्चे के शरीर में भारी मात्रा में खून की कमी होने लगती है. इसके कारण बच्चे के शरीर को बाहरी खून की आवश्यकता होती है. खून की कमी होने से बच्चे के शरीर में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है और बार-बार खून चढ़ाने की वजह से मरीज के शरीर में अतिरिक्त लौह तत्व जमा होने लगता है. यह हृदय में पहुंच कर जानलेवा साबित होता है. थैलेसीमिया इंडिया के मुताबिक हर साल में 10,000 बच्चे बीटा थैलेसीमिया बीमारी के साथ पैदा होते हैं और उन्हें ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत पड़ती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पांच साल के बच्चों का हीमोग्लोबिन 11 ग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा होना चाहिए.

थैलेसीमिया के लक्षण
1. शरीर में पीलापन बना रहना व दांत बाहर की ओर निकल आना.
2. आयु के अनुसार शारीरिक विकास नहीं होना.
3. कमजोरी और उदासी रहना.
4. सांस लेने में तकलीफ होना.
5. बार-बार बीमार होना.
6. सर्दी-जुकाम से हमेशा पीड़ित रहना.
7. कई तरह के संक्रमण होना.
8. शरीर में लौह की अधिकता.
9. भूख नहीं लगना. 

ऐसे किया जाता है इलाज
थैलेसीमिया का इलाज ब्लड ट्रांसफ्यूजन, केलेशन थेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से किया जाता है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट महंगा है. इसके लिए डोनर का एचएलए मिलना भी जरूरी है. इसलिए अधिकांश मरीज ब्लड ट्रांसफ्यूजन पर जीवित रहते हैं. थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चे के शरीर में आयरन की मात्रा बढ़ने लगती है. आयरन बढ़ने से लिवर, हृदय पर दुष्प्रभाव होने लगता है. हालांकि, आयरन की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए कुछ दवाएं दी जाती हैं. इस बीमारी से बचने के लिए मरीज का हीमोग्लोबिन 11-12 बनाए रखने का प्रयास करें. शादी से पहले महिला-पुरुष की ब्लड की जांच कराएं. समय पर दवाइयां लें और इलाज पूरा कराएं. विशेषज्ञों के अनुसार पौष्टिक भोजन और व्यायाम के जरिए इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. नवजात और गर्भवती मां का नियमित टीकाकरण भी कारगर साबित हो सकता है.