जन्म से बिना हाथ लेकिन हिम्मत में आसमान की ऊंचाई लिए झारखंड के बरंगा गांव के गुरु जी गुलशन लोहार की कहानी आज पूरे प्रदेश में प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी है. पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे गुलशन के जन्म पर परिवार के लिए निराशा का क्षण तब आया था, जब उनकी मां ने एक सप्ताह तक उन्हें स्तनपान कराने से इनकार कर दिया था. लेकिन वक्त ने करवट ली और वही मां उनकी सबसे बड़ी ताकत बनीं, जिन्होंने बेटे को पैरों से लिखना सिखाया और आगे बढ़ने की राह दिखाई.
अपने गांव से 65 किलोमीटर दूर चक्रधरपुर तक रोजाना ट्रेन से सफर करते हुए गुलशन ने बीएड और एमएड की पढ़ाई पूरी की. कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी. पढ़ाई के बाद उन्होंने पश्चिमी सिंहभूम के तत्कालीन उपायुक्त से नौकरी हेतु संपर्क किया, और वर्ष 2011 में SAIL की पहल पर बरंगा उत्क्रमित उच्च विद्यालय में गणित शिक्षक के रूप में संविदा पर नियुक्ति मिली.
हालांकि आज भी उन्हें स्थायी सरकारी नौकरी ना मिलने का मलाल है, लेकिन पत्नी और बेटी के बेहतर भविष्य के लिए वह लगातार संघर्षरत हैं. अपनी व्यक्तिगत चुनौतियों के बावजूद गुलशन सिर्फ गणित नहीं पढ़ाते बल्कि वह बच्चों के मन में उम्मीद जगाते हैं, उन्हें बताना चाहते हैं कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, सपनों की उड़ान रोकी नहीं जा सकती. यही वजह है कि गांव के लोग उन्हें 'प्रेरणा का स्तंभ' और बच्चे प्यार से 'गुरुजी' कहकर पुकारते हैं.
गुलशन बचपन से ही पैरों की उंगलियों से लिखते आए हैं और शैक्षणिक प्रदर्शन हमेशा उत्कृष्ट रहा है. उनका कहना है, "मेरी ज़िंदगी का मकसद यही है कि मैं साबित कर सकूं कि दिव्यांगता किसी इंसान की मंजिल तय नहीं करती. अगर हिम्मत हो तो हर बाधा छोटी है." अपने गांव लौटकर उन्होंने शिक्षा की कमी को दूर करने का संकल्प लिया और आज वही संकल्प उनकी पहचान है.
छात्र उनसे बेहद प्रभावित रहते हैं. कक्षा 10 के एक छात्र ने कहा, "गुलशन सर के पढ़ाने में कभी महसूस नहीं होता कि वह दिव्यांग हैं. वह हमें बहुत सरल तरीके से समझाते हैं और चाहे जितनी बार पूछो, कभी नाराज नहीं होते."
उनके सहकर्मी भी उनकी दृढ़ता की मिसाल देते हैं. शिक्षिका सुनीता कंठ कहती हैं, "गुलशन सर भले ही शारीरिक रूप से हम जैसे न हों, लेकिन मानसिक रूप से वह हम सब से कहीं अधिक मजबूत हैं. उनसे रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है." विद्यालय के प्राचार्य राजीव शंकर महतो के अनुसार, 'गुलशन लोहार इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि अगर मन में अटल निश्चय हो तो कोई भी व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों को पार कर सम्मानजनक जीवन जी सकता है.'
बरंगा गांव के लोग भी उनके संघर्ष की कहानी को गर्व से दोहराते हैं. गांव के बुजुर्ग दशरथ महतो कहते हैं, "गुलशन लोहार हमारे लिए सिर्फ शिक्षक नहीं, हमारी शान हैं. उनकी यात्रा हमें सिखाती है कि चाहे मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, लक्ष्य हमेशा ऊंचा होना चाहिए."
(रिपोर्ट-सत्यजीत)