Devika Rotawan was youngest 9/11 witness (Image: Facebook/HoB) 
 Devika Rotawan was youngest 9/11 witness (Image: Facebook/HoB) 26 नवंबर 2008- यह वह तारीख है जिसने न सिर्फ मुंबई को बल्कि पूरे देश को दहला दिया था. अपने घरों में सुरक्षित बैठे लोगों की भी रूह कांप गई थी तो जरा उनका सोचिये जिन्होंने इस आतंकी हमले को खुद अपनी आंखों से देखा. जिन्होंने इस हमले में अपनों को खोया या खुद हमलावरों का शिकार हुए.
इन्हीं में से एक देविका रोटवान. जिन्हें मुंबई के छत्रपति शिवजी टर्मिनस पर अजमल कसाब ने गोली मारी थी. गोली देविका के पैर पर लगी थी. उस समय देविका मुश्किल से 10 साल की थीं. देविका के पैर की कई सर्जरी हुई और उन्हें लगभग डेढ़ महीने तक अस्पताल में रहना पड़ा.
देविका जब अस्पताल से डिस्चार्ज हुई तो अपने पिता के साथ अपने गांव लौट गईं. लेकिन देविका की कहानी यहां खत्म नहीं होती है बल्कि यहां से शुरू होती है. क्योंकि देविका उन लोगों में से एक थीं जो अजमल कसाब को उसके अंजाम तक पहुंचाने की वजह बने.
‘कसाब ने जब मुझे गोली मारी, वह हंस रहा था’
देविका आज 22 साल की हैं और अपने पिता और भाई के साथ मुंबई में ही रहती हैं. मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में देविका ने बताया था कि उस दिन वह अपने पिता और छोटे भाई के साथ पुणे जा रही थी. जब वे स्टेशन पर थे तो कुछ देर बाद अचानक से भगदड़ मच गई.
देविका के पिता भी अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए भागे. लेकिन कसाब और उसके साथी लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चला रहे थे. और कसाब की एक गोली देविका के पैर पर लगी और वह गिर पड़ीं. देविका का कहना है कि बेहोश होने से पहले उन्होंने सिर्फ अजमल कसाब को देखा था.
और वह हंस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो वह लोगों को मारकर खुश है.
रिश्तेदारों ने छोड़ा साथ लेकिन फिर भी दी गवाही:
देविका का कहना है कि वह अस्पताल में डेढ़ महीना रहीं लेकिन अजमल कसाब का चेहरा नहीं भूलीं. अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद वह अपने परिवार के साथ अपने गांव लौट गई. और वहां कुछ दिनों बाद उनके पिता से मुंबई पुलिस ने संपर्क किया.
मुंबई पुलिस ने देविका और उनके पिता को अदालत में आतंकवादियों को पहचानने और गवाही देने के लिए बुलाया था. हालांकि, देविका के रिश्तेदारों और जानने वालों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था. क्योंकि सबको डर था कि कसाब के खिलाफ गवाही देकर कहीं वे आतंकियों के निशाने पर न आ जाएं.
लेकिन देविका और उनके पिता पीछे नहीं हटे. उनके बहुत से रिश्तेदारों ने उनसे संबंध तोड़ लिया. लेकिन देविका अपनी बैसाखी के सहारे अदालत में पहुंची और तुरंत अजमल कसाब को पहचान गई. उस समय वह मात्र 10 वर्ष की थीं. कसाब के खिलाफ गवाही देने वालों में देविका सबसे कम उम्र की गवाह थीं.
... पर नहीं खत्म हुआ संघर्ष:
एक बच्ची जिसने लोगों को अंधाधुंध गोलियों से मरते हुए देखा, खुद अपने पैर पर गोली खाई. एक-डेढ़ महीने तक अस्पताल में रही. लेकिन फिर भी उसने बहादुरी दिखाई और अदालत में आकर अजमल कसाब के खिलाफ गवाही दी.
इसके बदले में देविका को सराहना और प्रोत्साहन तो मिला लेकिन लोगों से मदद नहीं मिली. उन्हें कहा गया था कि उन्हें एक घर मिलेगा लेकिन अब तक नहीं मिला. उनके पिता का रोजगार नहीं रहा और उनके नाते-रिश्तेदारों ने साथ छोड़ दिया.
बहुत घूमने-फिरने के बाद उन्हें कुछ सहायता राशि मिली लेकिन फिर भी घर और रोजगार की समस्या वैसी ही बनी हुई है. हालांकि, इतने संघर्ष के बावजूद देविका का कहना है कि उन्हें एक पल के लिए भी कसाब के खिलाफ गवाही देने पर अफ़सोस नहीं हुआ है. क्योंकि उन्हें यह करना था.