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Army Village in Bihar: बिहार का एक ऐसा गांव जहां हर घर से निकलता है सेना का एक जवान, कारगिल में शहीद हुए थे यहां के दो लोग... छह दशक से बरकरार है जज़्बा

जब भी देश की सेना के गौरव गाथा की बात होगी, बिहार के इस गांव का जरूर जिक्र होगा. यह कटिहार जिले के मनिहारी अनुमंडल का बाघार पंचायत और पंचायत के अंतर्गत आने वाला मिर्जापुर गांव है. मिर्जापुर ऐसा गांव है जिसमें हर घर से कम से कम एक व्यक्ति सेना में है.

Representational Image: AI Representational Image: AI

बिहार में गंगा किनारे बसे शहर कटिहार को मकई की उपज के लिए पहचाना जाता है. एक समय पर कटिहार को बिहार का जूट कैपिटल (Jute Capital) भी कहा जाता था. लेकिन कटिहार का एक गांव ऐसा भी है जिसने अपनी पहचान एग्रीकल्चर या इकॉनमी से नहीं, बल्कि सेना में अपने योगदान से बनाई है. गंगा किनारे बसे कटिहार के मिर्जापुर गांव की खास बात यह है कि इस गांव के हर घर से सैनिक निकलता है.

सेना में भर्ती का जज़्बा देखने लायक
जब भी देश की सेना के गौरव गाथा की बात होगी, बिहार के इस गांव का जरूर जिक्र होगा. यह कटिहार जिले के मनिहारी अनुमंडल का बाघार पंचायत और पंचायत के अंतर्गत आने वाला मिर्जापुर गांव है. मिर्जापुर ऐसा गांव है जिसमें हर घर से कम से कम एक व्यक्ति सेना में है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार मिर्ज़ापुर गांव की आबादी करीब 4064 है. इसमें से 2092 पुरुष जबकि 1972 महिलाएं हैं.
 

इस गांव के दो सैनिक कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

इस गांव के 300 से ज्यादा युवक इस समय भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं. जबकि कई अन्य सेना में पहुंचने का सपना देखते हैं और उसके लिए ट्रेनिंग भी कर रहे हैं. गांव के ही रहने वाले एक शख्स ने जीएनटी टीवी से खास बातचीत में कहा, "यह शहीदों की भूमि है. हमारे गांव के दो-दो जवान कारगिल युद्ध में शहीद हुए हैं. लगभग 300 लोग हमारे गांव के इस समय सेना में मौजूद हैं." 

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छह दशक से चला आ रहा सिलसिला
गांव में ज्यादातर परिवार खेती और श्रमिक हैं. गांव में उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं है, लेकिन पंचायत में दो स्कूल है. पंचायत और गांव के बच्चे इसी स्कूल में पढ़कर आगे की पढ़ाई करने के लिए मनिहारी या जिला मुख्यालय कटिहार जाते हैं. इस गांव के युवकों में सेना में भर्ती होने का चलन करीब छः दशक से चला रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का दिया हुआ नारा जय जवान जय किसान आज भी गूंज रहा है. 

इस गांव में फिज़िकल ट्रेनिंग को पढ़ाई जितनी ही तरजीह दी जाती है.

एक अन्य ग्रामीण ने कहा, "मेरे पिताजी के उम्र से ही लोग सेना में जाने के लिए तैयार हैं. अभी इस गांव के 300 से ज्यादा लोग सेना में हैं. गांव के जो अन्य युवा हैं वे भी सोचते हैं कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हमें मौका दें तो पाकिस्तान या चीन के लिए 20 मिनट नहीं, 10 मिनट ही काफी हैं." 

गांव में हर नौजवान का लक्ष्य पढ़ लिखकर सेना में भर्ती होना है. यही वजह है कि पढ़ाई के साथ-साथ युवा सेना में भर्ती होने के लिए फिजिकल ट्रेनिंग भी लेते हैं. यहां के हर बच्चे में सेना में पहुंचने का जुनून है. करगिल युद्ध में इस गांव के दो लाल शहीद हुए. ऑपरेशन सिंदूर की भी यहां हर घर में चर्चा है. गांव के नौजवान सेना में भर्ती होकर दुश्मन को सबक सीखाना चाहते हैं. इनका जोश हाई है और सेना में भर्ती होने के लिए ये दिन रात मेहनत कर रहे हैं.
 

(कटिहार से विपुल राहुल की रिपोर्ट)