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मध्य प्रदेश के बैतूल में रेशम की फैक्ट्री चलाती हैं आदिवासी महिलाएं, सालाना कमा रहीं ढाई से तीन करोड़ का टर्नओवर

शादी हो या त्यौहार या कोई और फंक्शन अक्सर लोग चमचमाते, कड़क रेशमी कुर्ते पहने नजर आते है. इस कपड़े की चमक और नफासत तो सबको दिखाई देती है,लेकिन यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह रेशम बनता कैसे है. दरअसल मध्यप्रदेश में पहली ऐसी रेशम उत्पादक कम्पनी बनाई गई है, जो किसी शहर में नहीं बल्कि ठेठ ग्रामीण परिवेश में चल रही है. इसका संचालन चूल्हा चौका संभालने वाली आदिवासी महिलाएं कर रही है.

Betul tribal woman silk producer (Representative Image) Betul tribal woman silk producer (Representative Image)
हाइलाइट्स
  • मशीन चलाती हैं महिलाएं

  • शहतूत के खेत मे काम करती महिलाएं

मध्य प्रदेश के बैतूल में रेशम ने आदिवासी महिलाओं की जिंदगी बदल दी है. बैतूल में सतपुड़ा वूमेन मिल्क प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड चल रही है, जिसमें 755 आदिवासी महिलाएं शेयर होल्डर हैं. इस कंपनी में बनाए जा रहे रेशम के धागे देश के विभिन्न हिस्सों में भेजे जाते हैं. कंपनी का सालाना टर्नओवर ढाई से तीन करोड़ रुपए का है.

आदिवासी महिलाएं चलाती हैं फैक्ट्री
शादी हो या त्यौहार या कोई और फंक्शन अक्सर लोग चमचमाते, कड़क रेशमी कुर्ते पहने नजर आते है. इस कपड़े की चमक और नफासत तो सबको दिखाई देती है,लेकिन यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि यह रेशम बनता कैसे है. दरअसल मध्यप्रदेश में पहली ऐसी रेशम उत्पादक कम्पनी बनाई गई है, जो किसी शहर में नहीं बल्कि ठेठ ग्रामीण परिवेश में चल रही है. इसका संचालन चूल्हा चौका संभालने वाली आदिवासी महिलाएं कर रही है. जो रेशम बनाने से लेकर उसकी सप्लाई तक कि जिम्मेदारी उठाकर करोड़ो रुपये का टर्नओवर कमा रही हैं. 

दिल्ली में किया जा चुका है सम्मानित 
बैतूल में चार विकासखंडों के 40 जनजातीय बाहुल्य गांवों की 755 जनजातीय किसान महिलाओं ने रेशम उत्पादक कंपनी (एफपीओ) का गठन किया है. प्रदेश में रेशम उत्पादन के क्षेत्र में जनजातीय महिलाओं द्वारा बनाई गई यह कंपनी स्वयं में अनूठी है. कंपनी को दिल्ली में ऑल इंडिया बिजनेस डेवलपमेंट एसोसिएशन द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. यहां घोड़ाडोंगरी, शाहपुर, चिचोली एवं बैतूल विकासखंड के 40 गांवों की जनजातीय महिलाओं ने 2016 में सतपुड़ा वूमन सिल्क प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड पंजीकृत कराई थी, जिसका मुख्यालय पाढर में है. इस कंपनी में 755 रेशम उत्पादक जनजातीय किसान महिलाएं अंशधारक के रूप में शामिल हैं. 

शहतूत की खेती करती हैं महिलाएं
इन किसान महिलाओं के परिवार एक एकड़ सिंचित भूमि में शहतूत का पौधरोपण कर वर्ष में चार बार शहतूत की पत्ती की पैदावार करके शहतूत रेशम कीटपालन द्वारा कोया की फसल का उत्पादन करते हैं. जिससे एक महिला के परिवार को 70 से 80 हजार रुपए की वार्षिक आमदनी होती है. शहतूत का एक बार पौधरोपण 15 वर्ष तक गुणवत्तापूर्ण पत्तियों की उत्पादकता देता है. इन किसान महिलाओं द्वारा उत्पादित कोया कंपनी द्वारा 400 रुपए प्रतिकिलो तक की दर से खरीदा जाता है. इनका बनाया जाने वाला रेशम कर्नाटक, बाराणसी उत्तरप्रदेश, बंगाल एवं तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी भेजा जाता है.

(बैतूल से राजेश भाटिया की रिपोर्ट)