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भोपाल गैस त्रासदी: सैंकड़ों लोगों के लिए मसीहा बन कर आए ये स्टेशन मास्टर, लोगों को बचाते-बचाते दे दी अपनी जान

दस्तगीर ने आस-पास के सभी स्टेशनों पर एक एसओएस भेजा. उसी वक्त पैरामेडिक्स के साथ चार एम्बुलेंस पहुंचीं और रेलवे के डॉक्टर जल्द ही उनके साथ जुड़ गए. स्टेशन एक बड़े अस्पताल के इमरजेंसी रूम जैसा बन गया था. दस्तगीर को जलन और खुजली हो रही थी, लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया. उन्होंने उस वक्त अपने परिवार के बारे में भी नहीं सोचा.

Bhopal Gas Tragedy: Unsung hero Ghulam Dastagir Bhopal Gas Tragedy: Unsung hero Ghulam Dastagir
हाइलाइट्स
  • एक लापरवाही के कारण गई थी हजारों लोगों की जान

  • आसपास के स्टेशनों के सभी ट्रेनों को किया निलंबित 

  • खतरे का पता चलते ही ट्रेन को 20 मिनट पहले किया रवाना

  • अपनी नौकरी को खतरे में डाला 

  • अपनी जान जोखिम में डाल की दूसरों की मदद 

  • परिवार भी बना इस त्रासदी का शिकार 

  • जहरीले धुएं के संपर्क में आने से हुई मौत

  • गुलाम दस्तगीर एक भूले-बिसरे नायक

हम सभी जानते हैं कि स्टेशन मास्टर को भारतीय रेलवे के आइकॉन के रूप में जाना जाता है. अगर सभी स्टेशन मास्टर सिर्फ 10 मिनट के लिए काम करना बंद कर दें तो पूरे देश में हलचल मच जाएगी. आज हम एक ऐसे बहादुर स्टेशन मास्टर की कहानी बताने वाले हैं, जिन्होंने दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी. इस गुमनाम नायक का नाम, डिप्टी स्टेशन अधीक्षक गुलाम दस्तगीर था.

एक लापरवाही के कारण गई थी हजारों लोगों की जान  

बात सैंतीस साल पहले की है, जब 2 दिसंबर 1984 की रात को भोपाल दुनिया की सबसे भयानक औद्योगिक आपदा की चपेट में था. भोपाल में यूनियन कार्बाइड कीटनाशक संयंत्र में हुई एक लापरवाही के कारण पूरे शहर में लगभग 30 टन मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस फैल गई थी, जिससे शहर गैस के एक विशाल चैंबर में तब्दील हो गया था. इस वजह 6 लाख से अधिक लोग घातक गैस के संपर्क में आए जिससे हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी.

आसपास के स्टेशनों के सभी ट्रेनों को किया निलंबित 

उस रात डिप्टी स्टेशन अधीक्षक गुलाम जब वह गोरखपुर मुंबई एक्सप्रेस के आगमन की जांच करने के लिए निकले तो वह अपनी नाइट ड्यूटी कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने प्लैटफॉर्म पर कदम रखा, उनके गले में खुजली और आंखों में जलन महसूस हुई. अचानक से उनका दम घुटने लगा, दस्तगीर को तब पता नहीं था कि उनके बॉस, स्टेशन अधीक्षक हरीश धुर्वे सहित उनके तेईस रेल साथी पहले ही मर चुके हैं. दस्तगीर स्थिति को पूरी तरह से नहीं समझ पाए लेकिन व्यस्त रेलवे में वर्षों के प्रशिक्षण से उन्हें यह अनुभव हो गया था कि कुछ तो गलत था. उन्होंने विदिशा और इटारसी जैसे आसपास के स्टेशनों के स्टेशन मास्टरों को भोपाल के लिए सभी ट्रेन यातायात को निलंबित करने के लिए सतर्क किया.

खतरे का पता चलते ही ट्रेन को 20 मिनट पहले किया रवाना 

हालांकि, खचाखच भरी गोरखपुर-कानपुर एक्सप्रेस पहले से ही एक प्लेटफार्म पर खड़ी थी और उसके जाने का समय 20 मिनट बाद का था. जल्दी से आगे बढ़ते हुए, उन्होंने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया और गोरखपुर ट्रेन को प्रस्थान के लिए खाली करने के लिए कहा. उनके अधीनस्थ गार्ड और अन्य कर्मचारियों ने उन्हें प्रधान कार्यालय से जांच करने की सलाह दी क्योंकि ट्रेन का निर्धारित प्रस्थान का समय अभी भी 20 मिनट दूर था. लेकिन दस्तगीर ने कहा कि वह एक मिनट की भी देरी का जोखिम नहीं उठा सकते हैं और वह ट्रेन के जल्दी प्रस्थान की पूरी जिम्मेदारी लेंगे. वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि ट्रेन बिना किसी देरी के तुरंत चले.

अपनी नौकरी को खतरे में डाला 

उनके सहयोगियों ने बाद में बताया कि दस्तगीर बहुत मुश्किल से खड़े हो पा रहे थे और उन्हें बात करते हुए सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थी. सभी नियमों को तोड़ते हुए और बिना किसी से अनुमति लिए, उन्होंने और उनके बहादुर कर्मचारियों ने ट्रेन को झंडी दिखाकर रवाना कर दिया. उस रात, स्टेशन मास्टर गुलाम के त्वरित निर्णय ने सैकड़ों लोगों की जान बचा दी, जो अधिक समय तक जहरीली गैस के संपर्क में रहने पर मर सकते थे.

अपनी जान जोखिम में डाल की दूसरों की मदद 

लेकिन दस्तगीर का काम अभी खत्म नहीं हुआ था, वह कंट्रोल रूम में पहुंचे और रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को सतर्क किया. उन्होंने तुरंत सेवाएं बंद कर दीं. रेलवे स्टेशन उस वक्त जहरीले धुएं से बचने को बेताब लोगों से खचाखच भरा हुआ था. कोई हांफ रहा था, कोई उल्टी कर रहा था और अधिकांश रो रहे थे. दस्तगीर ने उस समय अपनी जान बचाना छोड़ कर ड्यूटी पर बने रहना, एक मंच से दूसरे मंच पर दौड़ना, पीड़ितों की मदद करना, उनकी मदद करना और उन्हें सांत्वना देना चुना.

परिवार भी बना इस त्रासदी का शिकार 

दस्तगीर ने आस-पास के सभी स्टेशनों पर एक एसओएस भेजा. उसी वक्त पैरामेडिक्स के साथ चार एम्बुलेंस पहुंचीं और रेलवे के डॉक्टर जल्द ही उनके साथ जुड़ गए. स्टेशन एक बड़े अस्पताल के इमरजेंसी रूम जैसा बन गया था. दस्तगीर को जलन और खुजली हो रही थी, लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया. उन्होंने उस वक्त अपने परिवार के बारे में भी नहीं सोचा. उनकी पत्नी और चार बेटे जो पुराने शहर में रह रहे थे जो गंभीर रूप से गैस के संपर्क में था.

जहरीले धुएं के संपर्क में आने से हुई मौत 

गुलाम दस्तगीर की कर्तव्यनिष्ठा ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई. हालांकि, गैस त्रासदी ने उन्हें और उनके परिवार को बर्बाद कर दिया. त्रासदी की रात उनके एक बेटे की मृत्यु हो गई और दूसरे को पूरे जीवन के लिए स्किन इंफेक्शन हो गया. उनके आखिरी 19 सालों का अधिकतर समय  अस्पतालों में बीता. जहरीले धुएं के संपर्क में आने के कारण उनके गले में बहुत अधिक दर्द की शिकायत हो गई. जब 2003 में उनका निधन हुआ, तो उनके मृत्यु प्रमाण पत्र में लिखा गया था कि वे एमआईसी (मिथाइल आइसोसाइनेट) गैस के सीधे संपर्क में आने से होने वाली बीमारियों से पीड़ित थे.

गुलाम दस्तगीर एक भूले-बिसरे नायक

भारतीय रेलवे ने उन लोगों की याद में एक स्मारक स्थापित किया है, जिन्होंने 2 दिसंबर, 1984 की रात को ड्यूटी के दौरान अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. गुलाम दस्तगीर का नाम उस लिस्ट  में शामिल नहीं है. डिप्टी एसएस गुलाम दस्तगीर एक भूले-बिसरे नायक हैं जिनकी कर्तव्य की भावना और प्रतिबद्धता ने अनगिनत लोगों की जान बचाई थी. दस्तगीर की पत्नी, जो इन दिनों गरीबी में जी रही हैं, का कहना है कि उनके बलिदान को सही पहचान नहीं मिली. वह कहती हैं कि रेलवे ने उन्हें उनके कर्तव्य की भावना और पीड़ितों की मदद करने की प्रतिबद्धता के लिए पुरस्कृत नहीं किया गया. वैसे दस्तगीर जैसी शख्सियत किसी पुरस्कार की मोहताज नहीं है.