
केंद्र सरकार ने नगालैंड, असम और मणिपुर में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA)के तहत आने वाला इलाका घटा दिया है. दशकों बाद सरकार के फैसले के बाद अशांत क्षेत्र का दायरा कम किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्विट्स के जरिए इसकी जानकारी दी. अमित शाह ने पीएम नरेंद्र मोदी को इसका श्रेय देते हुए इस कदम को नॉर्थ ईस्ट की सुरक्षा की स्थिति से बेहतर फैसला और विकास का नतीजा बताया. शाह ने पूर्वोत्तर के लोगों को इसकी बधाई दी और कहा कि अब इस क्षेत्र को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा जोकि सालों से होता चला आया है.
कहीं आंशिक तो कहीं पूरी तरह से हटा अफस्पा
असम में, जहां अशांत क्षेत्र अधिसूचना 1990 से लागू है वहां AFSPA को 1 अप्रैल, 2022 से पूरी तरह से 23 जिलों से और आंशिक रूप से एक जिले से हटाया जा रहा है. अशांत क्षेत्र घोषणा जो 2004 से पूरे मणिपुर (इंफाल नगर पालिका क्षेत्र को छोड़कर) में लागू है. मणिपुर के छह जिलों के पंद्रह पुलिस थाना क्षेत्रों को 1 अप्रैल से अधिनियम के दायरे से बाहर रखा जाएगा. गृह मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि नगालैंड में केंद्र ने सोम हत्याकांड के बाद गठित एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिश को चरणबद्ध तरीके से अफस्पा को वापस लेने के लिए स्वीकार कर लिया है. नागालैंड के सात जिलों के 15 पुलिस थानों से एक अप्रैल से अशांत क्षेत्र की अधिसूचना वापस ली जा रही है.
विज्ञप्ति में कहा गया है, "2014 की तुलना में 2021 में आतंकवाद की घटनाओं में 74 फीसदी की कमी आई है. इसी तरह, इस अवधि के दौरान सुरक्षा कर्मियों और नागरिकों की मौत में भी क्रमश: 60 फीसदी और 84 फीसदी की कमी आई है."
अफस्पा क्या है?
अफस्पा को 11 सितंबर, 1958 में लागू किया गया था. शुरुआत में यह पूर्वोतर और पंजाब के उन क्षेत्रों में लगाया गया था, जिनको अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया गया था. यह अधिनियम सेना, राज्य और केंद्रीय पुलिस बलों को सरकार द्वारा "अशांत" घोषित क्षेत्रों में आतंकवादियों द्वारा उपयोग की जाने वाली किसी भी संपत्ति को गोली मारने, तलाशी लेने और किसी भी संपत्ति को नष्ट करने के लिए विशेष शक्तियां प्रदान करता है.अफस्पा के तहत सुरक्षा बलों को कई विशेष अधिकार दिए गए हैं. इसके तहत बिना वारंट के गिरफ्तारी भी की जा सकती है. वहीं इसके लिए सुरक्षा बलों पर किसी भी तरह की कानूनी कार्यवाही या मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.
किन सुरक्षाबलों के पास होता है यह अधिकार?
अफस्पा सुरक्षा बलों को कानूनी कार्यवाही से बचाता है. यह कानून तीनों सेनाओं के साथ अर्धसैनिक बलों जैसे सीआरपीएफ और बीएसएफ पर भी लागू होता है.
कब-कब उठी मांग
नगालैंड में दिसंबर में सुरक्षाबलों द्वारा 14 नागरिकों की मौत हो गई थी, जिसको लेकर खूब बवाल मचा था. राज्य में हिंसा की घटनाओं को लेकर स्थिति बेहद तनावपूर्ण बनी हुई थी. उस दौरान राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्र से अफ्सपा को हटाने की मांग को लेकर एक बैठक की थी. बाद में यह मांग सांसद में भी उठी थी. इसके बाद एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया गया ताकि इस कानून को हटाने की संभावना का पता लगाया जा सके. कमेटी की सिफारिश के बाद ही मोदी सरकार ने अशांत क्षेत्र को कम करने का फैसला लिया.
उग्रवादी घटनाओं में आई कमी
केंद्र सरकार के अनुसार 2014 के मुकाबले साल 2021 में उग्रवादी घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है. वहीं नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की मौत के मामलों में भी 84 से 60 प्रतिशत की कमी देखी गई है. पिछले कुछ सालों में 7 हजार उग्रवादियों ने सरेंडर किया है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के तहत सुरक्षा स्थिति में सुधार के कारण, 2015 में त्रिपुरा और 2018 में मेघालय से अफस्पा के तहत अशांत क्षेत्र अधिसूचना को पूरी तरह से हटा दिया गया था.