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बस चाहत यही कि परंपरा बची रहे...कश्मीर के ट्रेडिशनल फूड को संरक्षित करने के लिए मिशन पर छात्रा

इसे एक जुनून ही कहेंगे कि आज कल की भागदौड़ की जिंदगी में जहां हर कोई आगे बढ़ने के लिए दौड़ रहा है वहीं ऐसे समय में कोई अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाने के लिए मिशन पर निकल पड़ता है. जम्मू-कश्मीर की ऐसी ही एक छात्रा है अस्मा भट. कश्मीर के ट्रेडिशनल फूड को संरक्षित करने के लिए छात्रा मिशन पर निकल पड़ी है.

कश्मीरी व्यंजन कश्मीरी व्यंजन
हाइलाइट्स
  • कश्मीरी व्यंजनों का लेती हैं ऑनलाइन ऑर्डर

  • परंपरा और संस्कृति बचाने की मुहिम

बदलते लाइफस्टाइल के साथ सबकुछ बदलता जा रहा है. भागदौड़ भरी जिंदगी के बीच हम अपनी संस्कृति और परंपराओं को भूलते जा रहे हैं. कई लोग इसे देखकर दुखी हैं और चाहते हैं कि परंपरा और संस्कृति बची रहे. वह सब कुछ बचा रहे जिसे हमारे पूर्वज करते और निभाते हुए आ रहे हैं. कुछ ऐसा ही दर्द जम्मू कश्मीर की रहने वाली कॉलेज छात्रा अस्मा भट के दिल में है. कश्मीर के ट्रेडिशनल फूड को संरक्षित करने के लिए छात्रा मिशन पर निकल पड़ी है.

कश्मीरी व्यंजनों का लेती हैं ऑनलाइन ऑर्डर
अमर सिंह कॉलेज श्रीनगर में बैचलर फर्स्ट ईयर की छात्रा अस्मा भट ने कश्मीर के पारंपरिक व्यंजन को संरक्षित करने के लिए एक बड़ी पहल की है. कश्मीर के पारंपरिक व्यंजनों में केक, रोटे, अचार, कॉर्न ब्रेड, नमकीन चाय(जिसे नून चाय के रूप में भी जाना जाता है), सूखे मेवे के साथ दूध से बना मीठा कद्दू और कहवा शामिल है. छात्रा ने एक सोशल मीडिया हैंडल भी बनाया है जिसके माध्यम से वह ऑनलाइन ऑर्डर लेती है

अस्मा ने बताया कि पहले इन व्यंजनों को लोग घर में आसानी से बना लेते थे और इसे तैयार करने में सभी सक्षम थे. लेकिन, बदलते लाइफस्टाइल के साथ अब स्थिति काफी बदल गई है. आधुनिकीकरण और पश्चिमी संस्कृति के विस्तार के साथ काफी कुछ बदलता गया.

"इसमें कोई संदेह नहीं है कि पारंपरिक व्यंजन वज़वान अभी भी प्रसिद्ध है, लेकिन बाकी अन्य पारंपरिक खाद्य पदार्थ दिन-ब-दिन अपनी लोकप्रियता खो रहे हैं. इसलिए मैं कश्मीरी संस्कृति और परंपराओं को दर्शाने वाले सभी खाद्य उत्पादों को पुनर्जीवित करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं ताकि युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों को हमारी परंपराओं के बारे में पता चले. उन्हें पता चले कि हमारा अतीत क्या था".

अस्मा भट, युवा उद्यमी