scorecardresearch

32 सालों से जरूरतमंदों के लिए मसीहा बना हुआ है ये संगठन, हर दिन हजारों लोगों का भर रहा पेट

हर साल 13 नवंबर को World Kindness Day मनाया जाता है. इस मौके पर आज हम आपको बता रहे हैं दिल्ली के एक ऐसे संगठन के बारे में, जो पिछले 32 सालों से गरीब और जरूरतमंदों का मसीहा बना हुआ है. यह कहानी है 'वीरजी दा डेरा' संगठन की, जहां हर दिन गरीब लोगों को मुफ्त में खाना खिलाया जाता है और घायलों का इलाज किया जाता है.

वीरजी दा डेरा वीरजी दा डेरा
हाइलाइट्स
  • 1989 में पड़ी थी इस संगठन की नींव

  • 25 जगहों पर बांटते हैं लंगर

  • बीमारों का करते हैं मुफ्त इलाज

हर साल 13 नवंबर को World Kindness Day मनाया जाता है. इस मौके पर आज हम आपको बता रहे हैं दिल्ली के एक ऐसे संगठन के बारे में, जो पिछले 32 सालों से गरीब और जरूरतमंदों का मसीहा बना हुआ है. यह कहानी है 'वीरजी दा डेरा' संगठन की, जहां हर दिन गरीब लोगों को मुफ्त में खाना खिलाया जाता है और घायलों का इलाज किया जाता है.

साल 1989 में इस संगठन की शुरुआत स्वर्गीय त्रिलोचन सिंह ने की थी. और अब इस संगठन को उनके बेटे ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह और कमलजीत सिंह आगे बढ़ा रहे हैं. कमलजीत सिंह अपना व्यवसाय करते हैं, वहीं प्रेमजीत भारतीय सेना से रिटायर्ड हैं. 

त्रिलोचन सिंह का जन्म म्यांमार में हुआ था और फिर वह दिल्ली आकर बस गए. उनका मानना था कि जरूरतमंदों की सेवा ही सच्ची सेवा है. इसलिए अपनी रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना जीवन लोगों की भलाई के लिए समर्पित कर दिया. 

लोगों ने बना दिया 'वीरजी' 

कमलजीत बताते हैं कि उनके पिता दिल्ली के शीशगंज गुरूद्वारे के पास बैठने वाले बेसहारा और लाचार लोगों की मदद करते थे. वहीं से यह सिलसिला शुरू हुआ. उन्हें अगर कोई घायल दिखता तो उसके घावों को साफ़ करके, उसकी मरहम पट्टी करते थे. 

धीरे-धीरे घायलों के इलाज के साथ-साथ उन्होंने मुफ्त में खाना बाँटना भी शुरू कर दिया. उनकी सेवा से कृतज्ञ लोग उन्हें प्रेम से 'वीरजी' कहने लगे. फिर जैसे-जैसे उनका काम बढ़ा और लोग जुड़ने लगे तो उनका एक संगठन बन गया और यही संगठन आज 'वीरजी दा डेरा' के नाम से जाना जाता है. 

साल 2010 में त्रिलोचन सिंह के देहांत के बाद उनके बेटों ने यह जिम्मेदारी संभाल ली. कमलजीत कहते हैं कि अब सिर्फ वे इस संगठन को नहीं चला रहे हैं बल्कि सैकड़ों लोग उनसे जुड़े हुए हैं. जो अलग-अलग तरह से सेवा करके अपना योगदान दे रहे हैं. 

दिल्ली में 25 जगहों पर बांटते हैं लंगर: 

वीरजी का संगठन से हर रोज बेसहारा और गरीब लोगों को लंगर बांटा जाता है. जिसमें दाल, रोटी और चावल दिए जाते हैं. पूरा लंगर एक जगह पर तैयार किया जाता है. यहां से कार्यकर्ता शहर में 25 अलग-अलग जगहों पर, इस लंगर को लोगों में बांट कर आते हैं. 

हर दिन वे 1000 से ज्यादा लोगों का पेट भर रहे हैं. खाना खिलाने के साथ-साथ वे घायलों का इलाज भी करते हैं. उनके कार्यकर्ता अपने साथ बुखार की दवाई, विटामिन कैप्सूल तथा मरहम-पट्टी आदि रखते हैं. ताकि जरूरत पड़ने पर तुरंत मदद की जा सके. 

कमलजीत का कहना है कि हर दिन वे लगभग 100 बीमार लोगों की मदद भी कर रहे हैं. इन लोगों में बेघर, बेसहारा लोगों के साथ-साथ दिहाड़ी-मजदूरी करने वाले गरीब लोग भी शामिल होते हैं. ये लोग इलाज और दवाइयों का खर्च नहीं उठा सकते हैं. इसलिए, ये लोग डेरा के कार्यकर्ताओं के पास मदद की उम्मीद से पहुँचते हैं.

मदद के लिए जुड़े हैं 250 से ज्यादा परिवार: 

वीरजी दा डेरा के साथ आज 250 से ज्यादा परिवार जुड़े हुए हैं. जो राशन से लेकर सेवा करने तक, हर तरह से मदद करते हैं. संगठन कभी किसी से पैसे की मदद नहीं लेता है बल्कि लोग दाल, चावल, आटा, दवा जैसी चीजों से मदद करते हैं. 

कमलजीत कहते हैं कि यह पूरा काम एक-दूसरे के सहयोग से चल रहा है. बहुत से लोग निःस्वार्थ भाव से जुड़े हुए हैं.  तो कुछ लोग आज उनकी मदद से अच्छा जीवन जी रहे हैं और लोगों की सेवा कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे बेहतर क्या होगा कि उन्हें न तो कभी साधनों की कमी हुई है और न ही मदद करने वाले हाथों की.