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Disputed Territory PoK: गिलगिट और बाल्टिस्तान का क्या है पूरा मामला, जानिए

1947 के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच गिलगिट और बाल्टिस्तान विवाद का विषय है.भारत कई बार पाकिस्तान से इस क्षेत्र को जल्द खाली करने को बोल चुका है. अब एक बार फिर भारतीय सेना के उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि PoK को वापस लेने के लिए सेना पूरी तरह से तैयार है.

PoK को लेकर है भारत-पाक में विवाद PoK को लेकर है भारत-पाक में विवाद
हाइलाइट्स
  • भारतीय सेना के उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा-PoK को वापस लेने के लिए सेना तैयार

  • सरकार की तरफ से जब भी आदेश होगा, सेना अपनी पूरी ताकत से आगे बढ़ेगी

गिलगिट और बाल्टिस्तान कश्मीर का हिस्सा है.इसकी सीमायें पश्चिम में खैबर-पख्तूनख्वा से, उत्तर में अफगानिस्तान के वखान कॉरिडोर से, उत्तरपूर्व में चीन के शिन्जियांग प्रान्त से, दक्षिण में पाकिस्तान प्रशासित गुलाम कश्मीर और दक्षिणपूर्व में भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य से लगती हैं.पाकिस्तान इस क्षेत्र को विवादित भूतपूर्व रियासत जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र से पृथक क्षेत्र मानता है जबकि भारत और यूरोपीय संघ के अनुसार यह भूतपूर्व रियासत जम्मू-कश्मीर के वृहत विवादित क्षेत्र का ही हिस्सा है.लद्दाख का यह वृहत क्षेत्र सन 1947 के बाद से ही भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय है.भारत कई बार पाकिस्तान से इस क्षेत्र को जल्द खाली करने को बोल चुका है. चीन-पाकिस्तान के आर्थिक कॉरीडोर पर होने के बाद कूटनीतिक तौर पर भी ये क्षेत्र भारत के लिए अहम हो जाता है. अब एक बार फिर पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर को लेकर भारतीय सेना के उत्तरी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी का बड़ा बयान आया है.उन्होंने कहा कि PoK (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) को वापस लेने के लिए भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार है.जब भी सरकार आदेश देगी, हम उसपर अमल कर देंगे.इससे भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल बढ़ गई है. इसके पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह भी PoK को वापस हासिल करने के लिए बयान दे चुके हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भारत PoK को वापस हासिल करने के लिए तैयारी कर रहा है? सेना के कमांडर के बयान का क्या मतलब है? 

PoK को लेकर पूछा था सवाल
गत मंगलवार को उत्तरी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी मीडिया से बातचीत कर रहे थे.इस दौरान उनसे एक मीडियाकर्मी ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का जिक्र करते हुए PoK को लेकर सवाल पूछा था.इसमें उस बयान का जिक्र किया गया, जिसमें रक्षामंत्री ने कहा था कि हमने अभी जम्मू-कश्मीर व लद्दाख की विकास यात्रा शुरू की है.जब हम गिलगिट-बाल्टिस्तान तक पहुंच जाएंगे तभी लक्ष्य पूरा होगा. इसपर जवाब देते हुए लेफ्टिनेंट जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने कहा, PoK के विषय पर संसद में प्रस्ताव पास हो चुका है, इसमें कुछ भी नया नहीं है.यह संसद के प्रस्ताव का हिस्सा है.सरकार का हर आदेश मानने के लिए सेना तैयार है.सरकार की तरफ से जब भी आदेश होगा, सेना अपनी पूरी ताकत से आगे बढ़ेगी. 
 
प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और गृहमंत्री तक दे चुके हैं बयान
PoK को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह तक बयान दे चुके हैं.15 अगस्त 2016 को स्वतंत्रता दिवस का भाषण देते हुए पीएम ने लाल किले की प्राचीर से इसका जिक्र किया था.गिलगिट- बाल्टिस्तान, बलूचिस्तान, PoK में नागरिकों पर होने वाले जुल्म का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा था, 'दूरदराज के लोग जिन्हें मैंने देखा तक नहीं.जिनसे मैं मिला तक नहीं, जब ऐसे लोग भारतीय प्राानमंत्री का शुक्रिया अदा करते हैं, उनका अभिवादन करते हैं तो यह देश के 125 करोड़ लोगों का सम्मान होता है.' जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने का विधेयक पेश करते हुए संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने भी PoK का जिक्र किया था. उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.जब भी मैं जम्मू-कश्मीर कहता हूं तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और अक्साई चीन भी इसके अंदर आता है. लोकसभा में शाह ने कहा था, हमारे एजेंडे में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी शामिल है. हाल ही में चुनावी दौरे पर हिमाचल गए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने PoK को लेकर नया बयान दिया.उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) पर फैसला भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के दौरान ही ले लिया जाना चाहिए था. कांगड़ा में चुनावी रैली के दौरान लोगों ने पीओके चाहिए के नारे लगाए.इसपर राजनाथ सिंह ने मंच से कहा- धैर्य रखें, जल्द मिलेगा. 

क्षेत्र का इतिहास
गिलगिट पहले जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा हुआ करता था, जिस पर ब्रिटिश सरकार का शासन था, ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र को हरिसिंह ( जो इस मुस्लिम बाहुल्य राज के शासक थे) से लीज पर लिया था. जब 26 अक्टूबर,1947 को हरिसिंह ने भारत के साथ मिलना स्वीकार किया, तब गिलगिट में ब्रिटिश कमांडर मेजर विलियम एलेक्जेंडर ब्राउन के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा और गिलगिट के सिपाही बाल्टिस्‍तान पर कब्जा जमाने के लिए आगे बढ़े, जो उस वक्त लद्दाख का हिस्सा हुआ करता था और विद्रोहियों ने स्कार्दु, करगिल और द्रास पर भी कब्जा जमा लिया. आगे की लड़ाइयों में भारत की सेना ने अगस्त 1948 को द्रास और करगिल को वापस हासिल कर लिया. इसके पहले 1 नवंबर, 1947 को एक कथित राजनीतिक संगठन गिलगिट-बाल्टिस्‍तान क्रांतिकारी परिषद ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया. 15 नवंबर को उसने पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा कर दी, लेकिन पाकिस्तान को केवल प्रशासनिक नियंत्रण ही मिला और इस क्षेत्र को सीधे फ्रंटियर क्राइम रेग्यूलेशन के तहत शासित करने का फैसला लिया गया, ये वो कानून था जिसे ब्रिटिश सरकार ने उत्तर पश्चिम के अशांत आदिवासी क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए बनाया था. आगे 1 जनवरी, 1949 में भारत-पाकिस्तान युद्धविराम के बाद उसी साल अप्रैल में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर की अंतरिम सरकार के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत वो हिस्से जिस पर पाकिस्तानी सेना और अनियमित सैनिकों ने कब्जा किया था उसके रक्षा और विदेशी मामले को अपने काबू में कर लिया. इस समझौते के तहत जम्मू-कश्मीर सरकार ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान का प्रशासन भी पाकिस्तान को सौंप दिया.