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कभी रेहड़ी पटरी पर थी दुकान, कोविड के दौर में ऑनलाइन हुए दुकानदार, अब बढ़िया चल रहा कारोबार

कोरोना का बार-बार नए-नए रूप में आना स्ट्रीट वेंडर्स को परेशान करता है. ऐसे में कई स्ट्रीट वेंडर्स ने यह रास्ता निकाला कि वह अपना सामान ऑनलाइन भी बेचेंगे. स्ट्रीट वेंडर्स ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते लेकिन लोगों ने सीखा और आगे बढ़े.

  कोविड के दौर में ऑनलाइन हुए दुकानदार-16:9 कोविड के दौर में ऑनलाइन हुए दुकानदार-16:9
हाइलाइट्स
  • कोरोना में लॉकडाउन के दौरान में सड़क से ऑनलाइन हुए स्ट्रीट वेंडर

  • लॉकडाउन खत्म होने पर ऑफलाइन और ऑनलाइन दोनों मोड में कमाई

कहते हैं ऊपर वाला अगर कोई संकट देता है तो उससे निकलने के रास्ते भी बता ही देता है. दिल्ली के रेहड़ी पटरी दुकानदारों पर यह बात काफी हद तक फिट बैठती है. कोरोना का सबसे ज्यादा असर रेहड़ी पटरी पर दुकान लगाने वाले दुकानदारों पर ही पड़ा. ओम‍िक्रॉन ने एक बार फिर से उनकी दुकानदारी आधी कर दी है. लेकिन अब रेहड़ी पटरी के कुछ दुकानदारों ने अपने धंधे के लिए नया रास्ता ढूंढ लिया है.

गौरतलब है क‍ि दिल्ली में 5 लाख से ज्यादा स्ट्रीट वेंडर्स हैं. आप जानकर हैरान होंगे कि कोरोना के बाद उनकी संख्या कम नहीं हुई बल्कि और बढ़ गई.

रॉबिन दिल्ली के नेहरू प्लेस मार्केट में मोबाइल एसेसरीज की दुकान लगाते हैं. 2007 से रॉबिन इसी जगह पर दुकान लगाते आए हैं. कोरोना के पहले सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन लॉकडाउन में हुए नुकसान से रॉबिन अब तक उबर नहीं पाए लेकिन दोस्तों की सलाह पर रॉबिन ने अब अपना बिजनेस ऑनलाइन कर लिया है. सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर रॉबिन अपनी चीज बेचते हैं और आराम से अपने रोटी पानी का खर्चा निकाल लेते हैं. रॉबिन बताते हैं कि लॉकडाउन में उनको 75 हज़ार रुपये का घाटा हो गया था जिसकी भरपाई ऑनलाइन कमाई से हो रही है. 

कोरोना का बार-बार नए-नए रूप में आना स्ट्रीट वेंडर्स को परेशान करता है. ऐसे में कई स्ट्रीट वेंडर्स ने यह रास्ता निकाला कि वह अपना सामान ऑनलाइन भी बेचेंगे. स्ट्रीट वेंडर्स ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते लेकिन लोगों ने सीखा और आगे बढ़े. अनिल कुमार गुप्ता लोधी रोड पर फल की दुकान लगाते हैं. अनिल बताते हैं कि लॉकडाउन से पहले इसी दुकान पर इतना काम था कि पांच लोग एक साथ काम करते थे लेकिन लॉकडाउन ने ऐसा झटका दिया सब कुछ खत्म होता दिखने लगा. हालांकि लॉकडाउन में उनकी दुकान लगती थी लेकिन बिक्री लगभग जीरो थी फिर अनिल को भी किसी ने अपनी दुकान ऑनलाइन करने की सलाह दी. अनिल कहते हैं कि अगर यह आइडिया नहीं आया होता तो अब तक शायद वह अपने परिवार के साथ अपने गांव सुल्तानपुर लौट गए होते.

पिछले दिनों सरोजनी नगर मार्केट में भीड़ की तस्वीरों ने हड़कंप मचा दिया. फिलहाल सरोजनी नगर में और जीवन के आधार पर दुकानें खुल रही है. मिथुन इसी मार्केट में जींस की दुकान लगाते हैं. मिथुन बताते हैं तो उनसे पहले उनके पिता 22 साल से यहीं पर दुकान लगाते हैं. मिथुन बताते हैं कि बार-बार कोविड-19 लॉकडाउन के चलते बिक्री बिल्कुल आधी रह गई थी. घर चलाना मुश्किल हो गया था. उसके बाद इन्होंने यूं ही अपना प्रोडक्ट फेसबुक और व्हाट्सएप पर दोस्तों के ग्रुप में डालना शुरू किया. शुरू के 6 महीने अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला लेकिन फिर धीरे धीरे रिस्पॉन्स आने लगा. फिर लगा क‍ि इसे आगे भी बढ़ा सकते हैं.

फुटपाथ विक्रेता एकता मंच एक ऐसी संस्था है जो दिल्ली के 121 मार्केट के स्ट्रीट वेंडर्स के साथ जुड़ी हुई. इसके अध्यक्ष श्री राम बताते हैं क‍ि अधिकतर स्ट्रीट वेंडर पढ़े-लिखे नहीं होते लेकिन हमने उनके घर के युवाओं को प्रेरित किया कि वह अपना बिजनेस ऑनलाइन करें. कई लोगों ने सीख लिया है लेकिन अभी बहुत सारे लोगों को सीखना बाकी है.

लॉकडाउन में बिजनेस को ऑनलाइन कर लेने का एक फायदा यह भी हुआ जब स्थिति सामान्य होती है तो दुकानदार ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह के भेजने से कमाई कर पाते हैं. स्ट्रीट वेंडर्स ने आत्मनिर्भर होने की कोशिश की है लेकिन बहुत जरूरी है कि उन्हें सरकारी सिस्टम से भी कुछ मदद मिले.