
पूरी दुनिया में सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म को मानने वाले घरों में ‘गीता प्रेस’ (Gita Press) की धार्मिक पुस्तकें मिलना बहुत ही आम बात है. 100 साल से गीता प्रेस का धार्मिक साहित्य में एकछत्र राज्य रहा है. वजह है इन किताबों की त्रुटि रहित प्रिंटिंग और कम दाम.
अब तक 73 करोड़ धार्मिक पुस्तकें छापने वाली गीता प्रेस ने नए ज़माने के साथ क़दमताल करते हुए सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों को आर्ट पेपर (Art Paper) में और ज़्यादा तस्वीरों के साथ छापने की पहल की है. रामचरितमानस से इसकी शुरुआत की गयी है और जल्द ही Art Paper पर सचित्र ‘दुर्गा सप्तशती’ भी लोगों के सामने आने वाली है.
100 सालों का है इतिहास
गोरखपुर की गीता प्रेस वह जगह है जहां से प्रकाशित हुई धार्मिक किताबों के ज़रिए देवी-देवताओं और पौराणिक पात्रों की तस्वीरें लोगों के मन मस्तिष्क में बस गई हैं. ’सत्यम वद, धर्मम चर’ यानि सत्य बोलो और धर्म का पालन करो- यह सूत्र वाक्य और जीवन के सार को बताने वाले पार्थसारथी, इस गीता प्रेस की बिल्डिंग के मुख्य द्वार पर ही दिखते हैं.
क़रीब 100 साल से सनातन धर्म की किताबों में अगर कोई एक नाम रहा है तो वह नाम गोरखपुर की गीता प्रेस का है. सब घरों में गीता प्रेस की किताबें मिलती हैं, चाहे रामचरितमानस हो, श्रीमद्भागवदगीता या हनुमान चालीसा या दुर्गा सप्तशती.
और भी ज्यादा आकर्षक होंगी किताबें
अब गीता प्रेस में नयी आधुनिक ऑफ़्सेट मशीन (offset machine) के ज़रिए रामचरितमानस को आर्ट पेपर पर छापा जा रहा है. हाल ही में, यह पहल की गयी है ताकि लोगों तक ज़्यादा आकर्षक रूप में रामकथा पहुंच सके. 1208 पेज की सचित्र रामचरितमानस में 300 से ज़्यादा तस्वीरें हैं.
गीता प्रेस भवन के प्रथम तल पर बनी ‘लीला चित्र मंदिर’ वह फ़ोटो गैलरी मान सकते हैं जहां हज़ारों धर्मिक चित्र लगे हैं. इन्हीं में से रामकथा के लिए इन 300 चित्रों का चयन किया गया है. गीता प्रेस में इन ख़ूबसूरत तस्वीरों को सही रंग और सटीक हाव भाव के साथ छापने के लिए नयी मशीनें काम कर रही हैं।
पहले राष्ट्रपति ने किया था उद्घाटन
'लीला चित्र मंदिर' का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने किया था. यहां के गौरवशाली इतिहास से जुड़ा एक अध्याय यह भी है कि गीता प्रेस के प्रमुख ट्रस्टी रहे हनुमान प्रसाद पोद्दार (Hanuman Prasad Poddar ) ने जगन्नाथ, भगवान, बी के मित्रा और अन्य चित्रकारों से हिंदू देवी-देवताओं के ये चित्र बनवाए थे.
इनमें कलाकारों की दक्षता तो थी ही, साथ ही हनुमान प्रसाद पोद्दार की आध्यात्मिक प्रेरणा भी थी. किस चित्र को कैसा होना चाहिए, यह उन्होंने ही चित्रकारों को बताया और चित्रकार ने हू-ब-हू उनको कैनवास पर उतार दिया. वही चित्र गीता प्रेस की अलग-अलग पुस्तकों के माध्यम से घर-घर पहुंचे.
युवा पीढ़ी तक पहुंचने की कोशिश
अब ऑर्ट पेपर पर इन चित्रों को ज़्यादा संख्या में छापा जा रहा है ताकि युवा पीढ़ी तक पहुंच सकें. अब तक क़रीब 73 करोड़ पुस्तकें और अपनी पत्रिका ‘कल्याण’ के क़रीब 16 करोड़ प्रतियां छापने वाले गीता प्रेस का यह बदलाव युवाओं के लिए है.
नए बदलावों के साथ-साथ यहां परंपराओं का पालन आजतक हो रहा है. जैसे आज भी यहां अक्षर छपने के बाद, पृष्ठों की बाइंडिंग होने और बाज़ार तक पहुंचाने के तक, कभी ज़मीन पर नहीं रखा जाता है. इसके लिए लड़की के प्लेट्फ़ॉर्म होते हैं.