
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई गांव में हाल ही में हुआ एक विवाह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है. इस विवाह में एक महिला, सुनीता चौहान, ने दो सगे भाइयों- प्रदीप और कपिल नेगी, से एक साथ विवाह किया. यह प्रथा ‘जोड़िदारा’ (Polyandry) कहलाती है और यह हिमाचल की हाट्टी जनजाति की एक पुरानी परंपरा है.
इस अनोखे विवाह ने जहां सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर कई सवाल खड़े किए, वहीं सबसे बड़ा सवाल यह है- क्या भारत में एक महिला का दो पुरुषों से विवाह करना कानूनी है?
बहुपति विवाह परंपरा की जड़ें कहां हैं?
हिमाचल की हाट्टी जनजाति में वर्षों से यह परंपरा रही है कि जब एक महिला दो भाइयों से शादी करती है तो परिवार की संपत्ति बंटने से बचती है. यह सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को संतुलित रखने का तरीका रहा है. इस तरह का विवाह आमतौर पर भाईयों के बीच संपत्ति और जिम्मेदारियों के बंटवारे को रोकता है, जिससे पारिवारिक एकता बनी रहती है.
इस प्रथा का एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ भी है. महाभारत की द्रौपदी की तरह, जहां उन्होंने पांच पांडवों से विवाह किया था, उसी तरह यहां की जोड़िदारा परंपरा भी एक महिला के दो या अधिक भाइयों से विवाह को स्वीकृति देती है.
क्या भारत में बहुपति विवाह कानूनी रूप से मान्य है?
उत्तर है . नहीं. भारत में बहुपति विवाह (Polyandry) कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है.
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 के अनुसार: "विवाह के समय दोनों पक्षों में से किसी का भी कोई अन्य जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए."
इसका मतलब है कि अगर किसी के पहले से पति/पत्नी जीवित हैं, तो दूसरा विवाह अवैध माना जाएगा.
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 और 495 के तहत भी ऐसे विवाह "बायगैमी" (Bigamy) की श्रेणी में आते हैं, और यह दंडनीय अपराध है.
स्पेशल मैरिज एक्ट भी इसी सिद्धांत पर आधारित है- एक समय पर एक ही वैध जीवनसाथी.
लेकिन Scheduled Tribes पर लागू नहीं होता Hindu Marriage Act?
यहीं पर आता है एक महत्वपूर्ण मोड़. भारतीय संविधान के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) पर स्वतः लागू नहीं होता, जब तक कि केंद्र सरकार विशेष अधिसूचना जारी न करे.
अनुच्छेद 342 के अनुसार, जो समुदाय अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित हैं, उनकी व्यक्तिगत और सांस्कृतिक परंपराओं को कानूनी मामलों में मान्यता मिल सकती है.
कानून में ‘Custom’ की क्या भूमिका होती है?
इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 13 के अनुसार, यदि कोई पक्ष किसी परंपरा या रिवाज का पालन करता है, तो उसे अदालत में "प्रासंगिक तथ्य" के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स ने कई मामलों में ये स्पष्ट किया है कि किसी भी परंपरा को कानूनी मान्यता पाने के लिए यह साबित होना चाहिए कि वह:
वकीलों की राय में अंतर
India Today से बातचीत में वरिष्ठ वकील रजत नायर ने कहा, “ऐसे विवाह को कानूनन अमान्य (void) माना जाएगा, लेकिन जब तक कोई इसे अदालत में चुनौती नहीं देता, तब तक यह निजी सहमति का मामला रहेगा. अगर परिवारों में कोई विरोध नहीं है, तो अदालत का हस्तक्षेप शायद ही हो.”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि विवाह कानूनन केवल एक व्यक्ति के साथ ही मान्य होता है.
वहीं वकील इबाद मुश्ताक ने कहा, “अगर हाट्टी समुदाय अनुसूचित जनजाति के तहत आता है, तो उन पर हिंदू विवाह अधिनियम लागू नहीं होता. ऐसे में अगर यह प्रथा उनकी परंपरा का हिस्सा है, तो इसे अमान्य नहीं कहा जा सकता.”
वकील तारिणी नायक का एक दिलचस्प नजरिया सामने आया, “हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 यह कहती है कि ‘विवाह के समय दोनों में से किसी का भी जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए’. यदि कोई व्यक्ति एक ही समय पर दो विवाह करता है और दोनों विवाहों की शपथ साथ में होती है, तो उस समय कोई भी ‘कानूनी’ जीवनसाथी मौजूद नहीं होता – यह एक कानूनी शून्य (loophole) पैदा कर सकता है.”
क्या यह विवाह वैध है?
कानून के दृष्टिकोण से, ऐसे विवाह को अदालत में चुनौती दी जा सकती है. लेकिन जब तक कोई विरोध नहीं करता और यह विवाह एक सामुदायिक परंपरा के अनुसार हुआ है, तब तक यह सामाजिक रूप से वैध माना जा सकता है- खासकर तब जब संबंधित जनजाति पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता.