
Bihar Chunav: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों के ऐलान के बाद सियासी पारा और चढ़ गया है. इस बार दो चरणों में 6 नवंबर और 11 नवंबर 2025 को मतदान होना है. वोटों की गिनती 14 नवंबर को होगी. बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA में सीटों का बंटवारा हो गया है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) दोनों ने चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के लिए अपनी-अपनी सीटों का त्याग किया है.
इस बार जेडीयू और बीजेपी दोनों 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी जबकि चिराग पासवान की पार्टी LJP(RV) को 29 सीटें मिली हैं. जीतन राम मांझी की हम और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6-6 सीटें मिली हैं. इस सीट बंटवारे के बाद नीतीश कुमार अब बड़े भाई नहीं रहे. दरअसल, विधानसभा चुनाव 2005 से लेकर 2020 तक के चुनावों में बड़े भाई की भूमिका निभाने वाले नीतीश कुमार पहली बार एनडीए में बीजेपी के बराबर सीटों पर लड़ते दिखाई देंगे. इस बार सीट बंटवारे में बहुत हद तक चिराग पासवान अपनी बात मनवाने में सफल रहे हैं. अब ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर कैसे बिहार विधानसभा में एक भी विधायक नहीं होने के बावजूद NDA में सहयोगियों पर चिराग पासवान भारी पड़े?
एनडीए में किसकों मिलीं कितनी सीटें
BJP: 101 सीट
JDU: 101 सीट
LJP (RV): 29 सीट
RLM: 6 सीट
HUM: 6 सीट
चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-रामविलास की मिली ये विधानसभा सीटें
1. बखरी 2. तारापुर 3. साहिबपुर कमाल 4. रोसड़ा 5. राजा पाकड़ 6. अगिआंव 7. ओबरा 8. अरवल 9. बोधगया 10. लालगंज 11. हायघाट 12. गायघाट 13. एकमा 14. मढ़ौरा 15. हिसुआ 16. फतुहा 17. दानापुर 18. ब्रह्रपुर 19. राजगीर 20. कदवा 21. सोनबरसा 22. बलरामपुर 23. हिसुआ 24. सुगौली 25. मोरवा 26. गोविंदगंज 27. सिमरी बख्तियारपुर 28. मखदूमपुर 29. कसबा
सीट बंटवारे में चिराग अपनी बात मनवाने में रहे सफल
एनडीए में सीट बंटवारे में इस बार चिराग पासवान अपने सहयोगियों जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा पर भारी पड़े हैं. बीजेपी जहां शुरू में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को 22 सीटों से ज्यादा देना नहीं चाह रही थी, वहीं फाइनल सीट बंटवारे में 29 सीटें लेकर चिराग पासवान अपनी बात मनवाने में सफल रहे. आपके मालूम हो कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में चिराग की पार्टी अकेले चुनाव लड़ी थी. लोजपा (तब अविभाजित) ने अकेले 135 सीटों पर चुनाव लड़ा था. सिर्फ एक प्रत्याशी जीतने में सफल रहा था. मटिहानी से राजकुमार सिंह जीते थे. वह भी पार्टी के नाम पर नहीं बल्कि अपने बल पर जीतने में सफल हुए थे. हालांकि बाद राजकुमार सिंह ने जदयू का दामन थाम लिया था. इस तरह से वर्तमान में लोजपा का एक भी विधायक विधानसभा में नहीं है. इसके बावजूद चिराग 29 सीटें लेने में सफल हो गए हैं.
चिराग पासवान का एनडीए में बढ़ गया और कद
चिराग पासवान सीट बंटवारे में अपनी बात मनवाने में सफल रहे, इस तरह से उनका एनडीए में अब और कद बढ़ गया है. राजनीतिक जानकर चिराग को बिहार की राजनीति में अब किंगमेकर के तौर पर देख रहे हैं. कुल लोग तो अगले सीएम के रूप में भी देख रहे हैं. चिराग पासवान के कंधे पर अपने पिता और बिहार के दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के जिम्मा है. राम विलास पासवान का बिहार में दलित वोट बैंक पर काफी पकड़ रहा है. दलितों में खासकर दुसाध समुदाय में, यह समुदाय राज्य में एक बड़ा जनसमूह है. ऐसे में एनडीए में चिराग पासवान का होना जातीय समीकरण को संतुलित करता है.
बीजेपी को जहां सवर्ण और शहरी वोटरों का समर्थन मिलता है, वहीं जेडीयू को कुर्मी और पिछड़े वर्ग का, ऐसे में चिराग की पार्टी दलित समुदाय को जोड़ती है, जिससे गठबंधन की सामाजिक पकड़ और मजबूत होती है. एनडीए में चिराग का होना जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है. चिराग पासवान लोकसभा चुनाव 2024 में इस बात को सिद्ध भी कर चुके हैं. इस चुनाव में उनकी पार्टी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था और सभी पर जीत दर्ज की थी. यह नतीजा चिराग के संगठन और जनाधार की मजबूती को दिखाता है. इस लोकसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी और जदयू दोनों को ये समझ में आ गया कि चिराग पासवान अब केवल सहयोगी दल के नेता नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक बड़ी ताकत बन चुके हैं. चिराग को किसी भी चुनाव में नजरअंदाज करना एनडीए को नुकसान पहुंचा सकता है.
चिराग की सीएम की कुर्सी पर है नजर
चिराग पासवान की नजर सीएम की कुर्सी पर है. चिराग को स्वयं को बिहार की अगली पीढ़ी के नेताओं में स्थापित करना चाहते हैं. वह बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर भरोसा जताते हैं, जिससे बीजेपी के साथ उनका रिश्ता और मजबूत हुआ है. चिराग इस बार विधानसभा चुनाव में एक-एक सीट पर जीत की रणनीति बना रहे हैं. उधर, जदयू-भाजपा की बराबर सीटें तय कर NDA ने यह जताने की कोशिश की है कि बिहार में कोई बड़ा भाई नहीं है, बल्कि दोनों जुड़वां भाई हैं. आपको मालूम हो कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नीतीश की पार्टी जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था. भाजपा 110 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी.
इस बार टिकट बंटवारे में JDU का कद घट गया है. बीजेपी पहली बार अपनी बराबरी पर जदयू को लेकर आई है. ऐसे में नीतीश कुमार अब बड़े भाई की भूमिका में नहीं हैं. अब न सिर्फ बाकी सहयोगियों की कमान भाजपा के हाथ में है बल्कि जदयू भी अब भाजपा से ही निर्देशित हो रही है. अब नेतृत्वकर्ता की भूमिका में भाजपा है. इस बराबरी के बंटवारे ने नीतीश कुमार के घटते कद को जताया है. ऐसे में यह भी कहा जा सकता है कि आने वाले चुनाव में यदि एनडीए की सरकार बनती है तो क्या नीतीश कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने पाएंगे. यदि चिराग पासवान की पार्टी सभी सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही तो वह सीएम पद के लिए भी दावेदारी कर सकते हैं. भाग्य ने साथ दिया तो मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं.