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Husband-Wife Phone Password: पति नहीं मांग सकता पत्नी का फोन या बैंक पासवर्ड, माना जाएगा घरेलू हिंसा! छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला

कोर्ट ने साफ इनकार किया. पति ने फैमिली कोर्ट और फिर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से पत्नी की कॉल रिकॉर्ड्स मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शक के आधार पर किसी की प्राइवेसी में दखल नहीं दिया जा सकता. 

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के हालिया फैसले के अनुसार, अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसका मोबाइल फोन या बैंक अकाउंट का पासवर्ड मांगता है, तो यह उसकी प्राइवेसी का उल्लंघन माना जाएगा.  ऐसा करना घरेलू हिंसा (domestic violence) के तहत आता है. 

यह फैसला किस केस से जुड़ा है?
यह फैसला एक तलाक के मामले से जुड़ा है, जहां छत्तीसगढ़ के एक पति ने अपनी पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाते हुए, हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13(1)(i-a) के तहत तलाक की अर्जी दी थी.  पति ने पत्नी के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और निजी जानकारी की मांग की थी. 

क्या पति कोर्ट में पत्नी की कॉल डिटेल या चैट की मांग कर सकता है?
कोर्ट ने साफ इनकार किया. पति ने फैमिली कोर्ट और फिर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से पत्नी की कॉल रिकॉर्ड्स मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि सिर्फ शक के आधार पर किसी की प्राइवेसी में दखल नहीं दिया जा सकता. 

क्या शादी के बाद भी किसी व्यक्ति की निजता (Privacy) बनी रहती है?
हां, बिल्कुल. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादी का मतलब यह नहीं कि पति या पत्नी को एक-दूसरे की निजी बातचीत, मोबाइल फोन, या संपत्ति तक पहुंच का हक मिल जाए.  प्राइवेसी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार (fundamental right) है. 

कोर्ट ने किन ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया?
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का ज़िक्र किया- KS Puttaswamy vs Union of India- जिसमें प्राइवेसी को मौलिक अधिकार माना गया. इसमें निजता (Privacy) को भारतीय नागरिक का अधिकार बताया गया है. 

इस फैसले का क्या सामाजिक संदेश है?
इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि:

  • शादी का मतलब विश्वास है, निगरानी नहीं. 
  • बिना सबूत के निजी जिंदगी में ताक-झांक करना अवैध और असंवैधानिक है. 
  • यह फैसला महिलाओं की निजता की रक्षा करता है और घरेलू हिंसा के खिलाफ सुरक्षा देता है. 

क्या पति के लिए यह याचिका मान्य नहीं थी?
नहीं. कोर्ट ने पति की याचिका को खारिज कर दिया.  जज ने कहा कि बिना ठोस सबूत के सिर्फ शक के आधार पर किसी की निजता भंग नहीं की जा सकती.  यह कानून और संविधान दोनों के खिलाफ है. 

क्या यह फैसला सिर्फ महिलाओं के लिए लागू है?
यह फैसला खासतौर पर महिला की निजता की रक्षा के लिए था, लेकिन इसका सिद्धांत सभी नागरिकों पर लागू होता है- चाहे पुरुष हों या महिला.  कोई भी अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में पार्टनर की निजता का उल्लंघन नहीं कर सकता. 

क्या यह मामला IPC की किसी धारा से जुड़ा है?
यह मामला Hindu Marriage Act, Section 13(1)(i-a) (Cruelty) से जुड़ा था, लेकिन कोर्ट ने प्राइवेसी को Article 21 (Right to Life and Liberty) के तहत संरक्षित किया. 

क्या सिखाता है ये फैसला?
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से नहीं, सामाजिक जागरूकता की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है. यह हमें यह सिखाता है कि "शादी प्यार और सम्मान का बंधन है, न कि जासूसी और अविश्वास का. "

अगर आप किसी रिश्ते में हैं, तो सम्मान और सीमाओं की अहमियत को समझें.  अदालत का यह फैसला निश्चित तौर पर प्राइवेसी और महिला अधिकारों की रक्षा में मील का पत्थर है.