
मेक इन इंडिया मिशन सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि सशक्त भारत की मुहिम है. इसी मुहीम के तहत भारत ने डिफेंस क्षेत्र में काफी हद तक आत्मनिर्भरता हासिल की है. आज देश में सिर्फ हथियार ही नहीं बन रहे बल्कि यहां उस भरोसे को भी मजबूत किया जा रहा है जिसके दम पर सेना वीरता का नया इतिहास लिख रही है.
भारत ने मेक इन इंडिया मिशन के तहत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक प्रगति की है. आइए, इस यात्रा को विस्तार से समझते हैं.
डिफेंस उत्पादन में हुई रिकॉर्ड वृद्धि
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत के स्वदेशी हथियारों की ताकत पूरी दुनिया ने देखी. स्वदेशी मिसाइलें, ड्रोन्स और एयर डिफेंस सिस्टम ने आत्मनिर्भर भारत की शक्ति को साबित किया है. पिछले पांच वर्षों में भारत ने रक्षा उत्पादन में 90% की वृद्धि दर्ज की है. साल 2023 में भारत का रक्षा उत्पादन 1.27 लाख करोड़ रुपए था, जो 2025 में बढ़कर 1.50 लाख करोड़ को पार कर गया.
मेक इन इंडिया ने रक्षा क्षेत्र में भारत को एक प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग शक्ति बना दिया है. रक्षा विशेषज्ञ रिटायर्ड ब्रिगेडियर शारदेंदू कहते हैं, "जहां तक डिफेंस का सवाल है, हिंदुस्तान की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता है. आप ऐसे समय में दूसरे देशों पे निर्भर ना रहे जब आपको उस इक्विपमेंट की उस हथियार की उस गोला बारूद की उस ऐमनेशन की जरूरत है."
उन्होंने कहा, "आपको स्वावलंबन की तरफ जाना पड़ेगा. हिंदुस्तान धीरे-धीरे इसकी तरफ अग्रसर हो रहा है. यह मेक इन इंडिया मिशन की वह तैयारी है जिसमें हर स्क्रू, हर सिस्टम, हर सॉफ्टवेयर भारत का है और भारत के लिए है."
स्वदेशीकरण से कम हुआ निर्यात
भारत ने पॉज़िटिव इंडिजेनाइजेशन लिस्ट के तहत 5000 आइटम्स के आयात पर रोक लगाई है. अब ये सभी उपकरण स्वदेशी कंपनियों से खरीदे जा रहे हैं. भारत ने रक्षा निर्यात में भी बड़ी छलांग लगाई है. 2014-24 के बीच निर्यात 88,300 करोड़ रुपए तक पहुंच गया. भारत का लक्ष्य 2029 तक डिफेंस एक्सपोर्ट को सालाना 50,000 करोड़ रुपए तक ले जाना है.
जल, थल, वायु में भारत हुआ मज़बूत
डीआरडीओ ने भारत को स्वदेशी मिसाइलें जैसे अग्नि, पृथ्वी, आकाश और नाग प्रदान की हैं. इंटिग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत भारत ने मिसाइल निर्माण में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई. आईएनएस विक्रांत जैसे स्वदेशी एयरक्रॉफ्ट करियर ने भारत की नौसेना को दुनिया के टॉप 10 में शामिल कर दिया है.
अगर ज़मीन की बात करें तो भारत ने धनुष और अटैक्स जैसी स्वदेशी तोपें विकसित की हैं, जो दुनिया की सबसे बेहतरीन तोपों में से एक हैं. धनुष तोप की मारक क्षमता 30 किलोमीटर है और यह हर मौसम में काम करने में सक्षम है. इसके अलावा तेजस फाइटर जेट और एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने भारत की वायु शक्ति को नई ऊंचाई दी है. भारत अब लंबी रेंज के एयर डिफेंस सिस्टम पर भी काम कर रहा है.
डिफेंस कॉरिडोर का महत्व
उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में स्थापित डिफेंस कॉरिडोर भारत को आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. एक ऐसा रक्षा क्षेत्र है जहां पर हथियार बनाए जाते हैं. यहां पर रिसर्चेस भी होते हैं. सीधे शब्दों में अगर हम इसको समझें तो ये है कि यहां पर स्वदेशी तकनीक के जरिए अत्याधुनिक हथियार बनाए जाते हैं.
फिलहाल तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के डिफेंस कॉरिडोर में भी यही हो रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत अपनी डिफेंस क्षमता को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है. ऐसे में राजस्थान में तीसरे डिफेंस कॉरिडोर की योजना पर भी चर्चा हो रही है.
डिफेंस कॉरिडोरका मकसद है की भारत अब हथियार, मिसाइल, लड़ाकू विमान और उनके जरुरी पार्ट्स विदेशों से ना मंगाए बल्कि खुद बनाये और दूसरे देशो को भी निर्यात करे. इनमें सबसे खास है टाइटेनियम और सुपर अलॉय मटेरियल प्लांट, जिसे दुनिया के सबसे बड़े टाइटेनियम रिमेल्टिंग यूनिट में से एक में बनाया जा रहा है, जो भारत के उत्तर प्रदेश में है.
आप सोच रहे होंगे कि इसका फायदा क्या होगा? आपको बता दें कि टाइटेनियम और सुपर अलॉय का इस्तेमाल लड़ाकू विमानों के इंजन, हेलिकॉप्टर, मिसाइल, ड्रोन और यहां तक की नेवी के जहाजों और पनडुब्बियों में होता है. ये मटेरियल हल्के होते हैं मगर बेहद मजबूत और हीट रेसिस्टिंग भी होते हैं.
इस प्लांट से भारत तेजस एएम जैसे नए जेट इंजन प्रोजेक्ट्स, ब्रह्मोस जैसी मिसाइलों और अडवांस्ड ड्रोन्स के लिए ज़रूरी पार्ट्स खुद ही बनाएगा.