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ISRO ने लॉन्च किया सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2, जानें क्यों है खास

इसरो ने आज अंतरिक्ष में कामयाबी की एक और इबारत लिख दी. SSLV रॉकेट के सफल लॉन्च के साथ इसरो ने तीन सैटेलाइट को पृथ्वी की सही कक्षा में स्थापित कर दिया. इस कामयाबी के साथ ही इसरो ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और मुकाम हासिल कर लिया है.

इसरो ने लॉन्च किया सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2 इसरो ने लॉन्च किया सबसे छोटा रॉकेट SSLV-D2
हाइलाइट्स
  • इसरो की कामयाबी की फेहरिस्त में SSLV का नाम शुमार

  • गगनयान मिशन पर भी तेजी से काम कर रहा है इसरो

आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से जब SSLV -D2 का सफल लॉन्च हुआ तो इसरो का दफ्तर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. इसरो चीफ एस सोमनाथ ने इस कामयाबी के लिए सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी. इस उड़ान के साथ इसरो ने अंतरिक्ष की दुनिया में काबिलियत की एक और इबारत लिख दी. 

पिछले साल भी की गई थी कोशिश
भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को इस पल का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था. इसरो ने 7 अगस्त, 2022 को भी इसी रॉकेट को लॉन्च किया था लेकिन आखिरी स्टेज में कुछ तकनीकी गड़बड़ी की वजह से सैटेलाइट सही कक्षा में स्थापित नहीं हो पाए. पिछले अनुभव से सबक लेते हुए इसरो ने इस लॉन्च में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी. 

SSLV-D2 की खासियत
SSLV-D2 का ये  लॉन्च सभी मानकों पर खरा उतरा और इस बार इसरो ने इस रॉकेट की मदद से तीन सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित कर दिया. इनमें पहला सेटेलाइट अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइ EOS -07 है. इस सैटेलाइट का वजन 156.3 किलो है. इसके अलावा अमेरिका का जानुस -1 सैटेलाइट भी सही कक्षा में स्थापित हुआ. SSLV-D2 में आजादी सैट - 2 सैटेलाइट भी सवार था. इस सैटेलाइट का वजह 8.7 किलो है. भारत के स्टार्टअप स्पेसकिड्स ने इसे तैयार किया है. SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसकी चौड़ाई करीब 2 मीटर होती है. SSLV का वजह 120 टन होता है. ये 500 किलोमीटर ऊंचाई तक उड़ान भर सकते हैं.

इसरो की कामयाबी की फेहरिस्त में SSLV का नाम शुमार
इस लॉन्च के साथ ही इसरो की कामयाबी की फेहरिस्त में SSLV यानी स्मॉल सैटेलाइट लॉन्ट वेहिकल का नाम भी शुमार हो गया. एसएसएलवी का इस्तेमाल छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए किया जाता है. इस रॉकेट का इस्तेमाल 500 किलो तक वजन वाले सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए किया जाता है. SSLV सैटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करते हैं. 

कामयाब हुआ SSLV
सतीश धवन सेंटर से आज लॉन्च हुए SSLV ने महज 15 मिनट की उड़ान के बाद ही तीनों सैटेलाइट को सही कक्षा में स्थापित करने में कामयाबी हासिल कर ली. ये कामयाबी इसरो की बरसों की कड़ी मेहनत का नतीजा है. कम से कम लागत में अंतरिक्ष में कामयाबी की ऊंची उड़ान हासिल करने में इसरो ने पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान बना ली है. SSLV का ये सफल लॉन्च अंतरिक्ष की दुनिया में इसरो की इस काबिलियत का नया प्रमाण है. 

गगनयान मिशन पर भी तेजी से काम कर रहा है इसरो
अंतरिक्ष की दुनिया में इसरो की कामयाबी की उड़ान ने एक नया मुकाम हासिल कर लिया है. सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए पूरी दुनिया इसरो की काबिलियत का लोहा मानती है. लेकिन अब गगनयान मिशन के तहत एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष का महफूज सफर कराने के लिए भी इसरो तेजी से आगे बढ़ रहा है.

क्या है मिशन गगनयान?
इसरो ने गगनयान मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षित वापसी के लिए क्रू मॉड्यूल की सेफ रिकवरी का परीक्षण किया. ये परीक्षण वाटर सर्वाइवल टेस्ट फेसिलिटी में किया गया और इस परीक्षण के लिए इसरो और भारतीय नौसेना ने मिलकर काम किया. क्रू मॉड्यूल में ही एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष से लौटते है. आखिरी चरण में इस मॉड्यूल को समंदर में उतारा जाता है. क्रू मॉड्यूल समंतर की तेज़ लहरों का सामना आसानी से कर सके और मुश्किल हालात में भी ये सतह पर बना रहे. यही इस परीक्षण का मकसद है. 

अंतरिक्ष के सफर में सबसे अहम होता है अंतरिक्ष यात्रियों की हिफाजत. गगनयान मिशन के तहत इसरो तीन अंतरिक्ष यात्रियों तीन दिनों के मिशन पर अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में है. इन यात्रियों को पृथ्वी से 400 किलोमीटर दूर पृथ्वी की कक्षा में जाकर सुरक्षित धरती पर वापस लाया जाएगा. लौटने पर ये अंतरिक्ष यात्री भारत के समंदर में उतरेंगे. सबकुछ तय वक्त पर हुआ तो साल 2024 के अंत में या 2025 की शुरुआत में गगयन मिशन के तहत इसरो एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष में भेजकर नया इतिहास रचेगा.