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जहांगीरपुरी हिंसा में 5 लोगों पर लगा NSA, जानिए क्या है ये कानून और क्यों रहता है विवादों में

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका में संविधान से मिले सबसे बड़े अधिकार मतलब आजादी के अधिकार पर रोक लगाई जाती है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के तहत किसी को भी 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है. साथ ही अगर जरूरत पड़ती है तो 3-3 महीने के लिए हिरासत की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है.

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हाइलाइट्स
  • जहांगीरपुरी हिंसा में शामिल पांच दंगाइयों के खिलाफ अब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई की जाएगी.

  • इससे पहले कई मौकों पर NSA का इस्तेमाल किया गया है

राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हुई हिंसा मामले में गृह मंत्रालय ने बड़ा एक्शन लिया है. हिंसा में शामिल पांच दंगाइयों के खिलाफ अब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की जाएगी. गृह मंत्रालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि हिंसा के मुख्य आरोपी अंसार, सलीम, इमाम शेख उर्फ ​​सोनू, दिलशादी और आहिदी पर एनएसए लगा है. 

गृह मंत्रालय के इस एक्शन के बाद दिल्ली पुलिस सीसीटिवी फुटेज के आधार पर आरोपियों को पकड़ने की कोशिश में लगी हुई है. बता दें कि मंगलवार की शाम दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रान्च ने गुलाम रसूल को गिरफ्तार किया है. इससे पहले राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए)  का जिक्र कई बार सामने आ चुका है. इससे पहले गोरखपुर के डॉक्टर काफिल खान मामले में भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) का जिक्र सामने आया था. डॉ कफील पर दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था.  ऐसे में जायज सवाल ये है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून क्या है और इसे किस तरह के अपराधों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है. आइए जानते हैं-

क्या है राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका?

नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (एनएसए) या राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या फिर रासुका, एक ऐसा कानून है जिसके तहत किसी खास खतरे के चलते किसी की गिरफ्तारी होती है.  अगर स्थानीय प्रशासन को किसी शख्स से देश की सुरक्षा पर किसी तरह का कोई खतरा महसूस होता है तो इस कानून के तहत ऐसा होने से पहले ही पुलिस  उस शख्स को गिरफ्तार कर लेती है. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के तहत 
प्रशासन किसी व्यक्ति को महीनों तक हिरासत में रख सकता है.  इस कानून के तहत अगर सरकार को ये लगे कि किसी खास शख्स से 
देश की सुरक्षा तय करने वाले कामों पर किसी भी तरह की कोई रोक लग सकती है तो भी उस शख्स को गिरफ्तार किया जा सकता है. बता दें कि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को 1980 में देश की सुरक्षा के लिए सरकार को ज्यादा शक्तियां देने के लिए जोड़ा गया था.

कौन कर सकता है इस कानून का इस्तेमाल 

इस कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार कर सकती है , कानून के इस्तेमाल के लिए सभी के पास एक अपने सीमित दायरे  हैं. अगर सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति बिना किसी मतलब के देश में रह रहा है और उसे गिरफ्तार किए जाने की जरूरत है तो सरकार उसे भी गिरफ्तार करवा सकती है. 

इस कानून के नियम-कायदे

  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका में संविधान से मिले सबसे बड़े अधिकार मतलब आजादी के अधिकार पर रोक लगाई जाती है.  इसे ऐसे समझ सकते हैं 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के तहत किसी को भी 3 महीने तक बिना जमानत के हिरासत में रखा जा सकता है. साथ ही अगर जरूरत पड़ती है तो  3-3 महीने के लिए हिरासत की अवधि बढ़ाई भी जा सकती है. 
  • रासुका या एनएसए के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी  आरोप के  12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है. 
  • अगर किसी  संदिग्ध व्यक्ति  की गिरफ्तारी  होती है तो  जिला अधिकारी को राज्य सरकार को गिरफ्तारी के पीछे की वजह और आधार बताना पड़ता है. 
  • रासुका या एनएसए के तहत हिरासत में लिये गए शख्स को सिर्फ हाई कोर्ट के एडवाइजरी बोर्ड के सामने ही अपील करने की इजाजत होती है. मुकदमे के दौरान रासुका लगे व्यक्ति को वकील की इजाजत नहीं मिलती. जब कोर्ट में मामला जाता है तो सरकारी वकील मामले की तफ्सील कोर्ट को देता है और जज ही उसकी मेरिट जांचता है. बता दें कि रासुका या एनएसए 1980 में इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते वक्त लाया गया था.

इस कानून का इतिहास

एनएसए एक प्रिवेंटिव कानून है, और  प्रिवेंटिव कानूनों का इतिहास आजादी  से पुराना है.  मतलब इसमें किसी घटना के होने से पहले ही सरकार किसी को अरेस्ट कर सकती है. अग्रेंजी हकूमत ने 1881 में बंगाल रेगुलेशन थर्ड नाम का एक्ट बनाया था , इसके मुताबिक घटना होने से पहले ही संदिग्ध को गिरफ्तार किया जा सकता था.  फिर 1919 के रौलट एक्ट में भी गिरफ्तार शख्स को  ट्रायल की व्यवस्था नहीं थी, मतलब हिरासत में लिया शख्स कोर्ट भी नहीं जा सकता था. इसे गलघोंटू या गैंगिंग एक्ट कहा गया.  इसके विरोध प्रदर्शन के दौरान ही जलियांवाला बाग कांड हुआ था.

वहीं आजाद हिन्दुस्तान में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सबसे पहले 1950 में प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट लाए थे. बाद में इंदिरा गांधी के पीएम रहते हुए 1971 में सरकार विवादित कानून मीसा या मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट (MISA) लाई. 1975 में इमरजेंसी के दौरान इस राजनैतिक विरोधियों के दमन के लिए इस कानून का बहुत सख्ती से इस्तेमाल हुआ था. इंदिरा गांधी जनवरी 1980 में फिर प्रधानमंत्री बनीं. उनकी सरकार ने 23 सितंबर 1980 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून संसद से पास करवाया. 27 दिसबंर 1980 को ये तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी की मंजूरी के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या रासुका के रूप में जाना जाने लगा. 

हाल में कहां-कहां लगा रासुका

बीते समय में कई लोगों पर रासुका के तहत कार्रवाई हुई. कोरोना काल में बी रासुका काफी चर्चा में रहा था. गाजियाबाद में कथित तौर पर अस्पताल स्टाफ से खराब बरताव करने वालों पर रासुका लगाया गया था. ठीक इसी तरह कोरोना संक्रमितों के पास गए अस्पताल स्टाफ पर पथराव करने वालों पर भी रासुका के तहत कार्रवाई की गई थी.  इसके अलावा गोकशी से जुड़े लोगों पर कार्रवाई करने के लिए भी रासुका का इस्तेमाल किया गया है , साल 2020 में यूपी पुलिस ने 139 लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई की है. इनमें से 76 मामले गोकशी से जुड़े हैं. इसपर विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि सत्ता पार्टी अपने राजनैतिक मकसद साधने के लिए रासुका का  गलत इस्तेमाल कर रही है.